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“देश को ‘टैलेंट निर्यातक’ बना कर गर्व? अब मंत्री विदेश में जाकर बोलेंगे — ‘नौकरी दे दो नौकरी!’”

भोपाल।✍️ डॉ. महेश प्रसाद मिश्रा, भोपाल की कलम से:

जब किसी देश के विदेश मंत्री खुद मंच पर खड़े होकर यह सीख देने लगें कि “टैलेंट को मत रोको, नहीं तो नुकसान करोगे”, तब समझ लीजिए कि देश में हालात कितने ‘आदर्श’ होंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर जी का ताज़ा बयान पढ़कर पहले तो लगा कि इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी देश के साथ इतना बड़ा मज़ाक कर सकता है? लेकिन फिर सोचा—बेचारा करे भी तो क्या? राजनीति है, सब कुछ करवा लेती है।
देश के भीतर टैलेंट की जो हालत है, उसकी बात करने की बजाय मंचों पर जाकर दुनिया को सीख दी जा रही है कि—“टैलेंट को मत रोको, नौकरी दो, विकास करो।”अरे साहब, पहले ये तो बताइए कि हमारे अपने देश में टैलेंट की क्या इज़्ज़त बची है?

आरक्षण की जंजीरों में लिपटा देश: भारत आज उस हालत में पहुँच गया है जहाँ
घोड़ों के पैरों में जंजीरें बाँध दी जाती हैं और गधों को कहा जाता है कि लो, अब तुम घोड़े के बराबर दौड़ो। नतीजा?
– 90-100% लाने वाले बेरोजगार घूम रहे हैं
– और माइनस 20% वाले लेक्चरर, इंजीनियर और डॉक्टर बन रहे हैं।

WHO की ताज़ा रिपोर्ट भी यही चीख-चीख कर कह रही है कि भारत में 55% डॉक्टर नाकारा हैं। पर कौन बोले? ये सब तो ‘सरकारी दामाद’ हैं—आरक्षण जीवि प्राणी।

मंत्री महोदय का विदेश प्रेम: लगता है वो दिन दूर नहीं जब हमारे माननीय मंत्री विदेश जाकर कटोरा लेकर बैठ जाएँगे और कहेंगे—“हमारे टैलेंटेड युवाओं को नौकरी दे दो… प्लीज़!”यह कैसा विकास मॉडल है?देश का टैलेंट बाहर भेजकर हम दुनिया को समझा रहे हैं कि “टैलेंट मत रोको”—और भीतर?
भ भीतर तो हम खुद ही टैंलेंट को दम घोंट कर मार रहे हैं।

देश की गिरती हालत किसी से छिपी नहीं: आज हालत यह है कि भारतीय रुपया अफगानिस्तान की करेंसी से भी नीचे जा चुका है।पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका की आर्थिक स्थिति पर तो हम भाषण देते हैं, पर अपनी गिरती हालत पर चुप्पी साध लेते हैं।कब तक जनता को बेवकूफ बनाया जाएगा?कब तक वोट बैंक के नाम पर देश के भविष्य की बलि चढ़ाई जाएगी?

देश में ऐसी लूट कि शब्द कम पड़ जाएँ: आज इस देश में टैलेंट का कोई मूल्य नहीं बचा।लूट ही लूट है, सिस्टम से लेकर संस्थानों तक सब वोट बैंक की राजनीति के कब्जे में है।और नेता—देश को अपनी राजनीति की थाली में परोसकर खा रहे हैं।

देश को बचाना है तो एक ही रास्ता—अर्थिक आधार पर आरक्षण:
अगर आरक्षण देना मजबूरी है तोइसे आर्थिक आधार पर दीजिए।और उसमें भी न्यूनतम पासिंग मार्क्स अनिवार्य कीजिए।नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश भी उन देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा जिनकी हालत सुनकर हम आज सिर हिलाते रहते हैं।

देश को समझना होगा—टैलेंट को रोकोगे तो देश डूबेगा,पर बिना टैलेंट वालों को आगे करोगे… तो देश बर्बाद होना तय है।अगर कुछ नहीं बदलता तो समझ लीजिए—देश को नेता नहीं, जनता सड़क पर आकर ही बचाएगी।

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