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अतिका की आवाज़ — संघर्ष, जुनून और आत्म-विश्वास विशेष रिपोर्ट

श्रीनगर | सूत्र
कश्मीर की 11 साल की अतिक़ा मीर ने अंतरराष्ट्रीय कार्टिंग रेसिंग में लगातार मिल रही ऐतिहासिक कामयाबियों के साथ भारत का नाम दुनिया में चमका दिया है। कम उम्र, सीमित संसाधन और कई चुनौतियों के बावजूद अतिक़ा आज देश की उभरती हुई महिला रेसर के रूप में पहचान बना चुकी हैं।

अतिक़ा का सफर छह साल की उम्र में यूएई के एक छोटे-से कार्टिंग ट्रैक से शुरू हुआ। शुरुआत में लोग उन्हें यह कहकर हतोत्साहित करते थे कि रेसिंग लड़कियों के लिए नहीं है, लेकिन अतिक़ा ने अपने फैसले से समझा दिया कि हुनर और हिम्मत का कोई लिंग नहीं होता। तेज़ी, तकनीक और अनुशासन को मिलाकर उन्होंने हर रेस के साथ अपना स्तर ऊपर उठाया।

पिछले दो वर्षों में उन्होंने कई बड़े रिकॉर्ड अपने नाम किए। रोटैक्स चैलेंज इंटरनेशनल ट्रॉफी में उनकी जीत ने उन्हें पहली भारतीय लड़की बना दिया जिसने यह सफलता हासिल की। इसके बाद यूरोपीय कार्टिंग फाइनल में क्वालिफाई कर उन्होंने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि जोड़ दी। हाल ही में यूएई में आयोजित ‘चैंपियंस ऑफ द फ्यूचर’ सीरीज़ में पोल पोज़ीशन लेकर वे अपने वर्ग में विश्व की पहली महिला पोल-सिटर बनीं। फाइनल रेस में उनका दमदार प्रदर्शन फिर चर्चा में रहा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके लगातार बढ़ते प्रभाव को देखते हुए F1 अकादमी ने उन्हें अपने विकास कार्यक्रम में शामिल किया। यह मौका किसी भी युवा ड्राइवर के लिए बड़ा कदम माना जाता है और अतिक़ा एशिया की पहली बालिका हैं जिन्हें यह अवसर मिला है। यूएई की एक प्रोफेशनल टीम भी उन्हें अपने साथ जोड़ चुकी है, जिससे उनके प्रशिक्षण और तकनीकी कौशल को नई दिशा मिल रही है।

अतिक़ा की कामयाबियों ने कश्मीर समेत पूरे देश में नई ऊर्जा पैदा की है। परिवार का समर्थन, पिता का रेसिंग अनुभव और अतिक़ा का अनुशासन उनकी प्रगति की सबसे बड़ी ताकत माने जाते हैं। खेल विशेषज्ञों का मानना है कि जिस गति से वह आगे बढ़ रही हैं, आने वाले वर्षों में वे उच्च स्तर की अंतरराष्ट्रीय रेसिंग में भारत की मजबूत दावेदार बन सकती हैं।

अतिक़ा मीर ने यह दिखा दिया है कि छोटे सपनों से बड़े रास्ते भी निकलते हैं। उनकी कहानी उन सभी लड़कियों और बच्चों के लिए प्रेरणा है जो सीमाओं को तोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं। देश अब उनकी अगली जीत का इंतजार कर रहा है।

राईट हेडलाईन्स ब्युरो

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