बैर ओर वैराग्य वायव्य के वास्तु दोषों की देन है-डॉ भूपेंद्र वास्तुशास्त्री
बैर ओर वैराग्य वायव्य के वास्तु दोषों की देन है-डॉ भूपेंद्र वास्तुशास्त्रीहोशियारपुर/दलजीत अज्नोहा अचानक कोई व्यक्ति वैराग्य की तरफ मुड़ जाता है, परिवार के न चाहते हुए भी गृह त्याग कर सन्यासी बन जाता है, विवाह करने के लिए मना कर देता है । जीवन को एकाकी बना देता है। यह सब बातें व्यक्ति खुद नही करता है उस भवन की वास्तु ऐसा करवाती है जहां पर वह वास करता हैं। ऐसा मानना है अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वास्तुविद एंवम लेखक डॉ भूपेंद्र वास्तुशास्त्री का!कहने ओर सुनने में थोडा अटपटा लगता है पर होता वही है जो आपके भवन की वास्तु चाहती हैं। जहां से कोई संन्यासी , बैरागी या सांसारिक जीवन को त्याग कर साधु संत, ओर वैरागी बना उस घर का वायव्य कोण दूषित होता है या वायव्य में द्वार दोष होता है। किसी व्यक्ति विशेष से बैर भाव,दुश्मनी भी वायव्य कोण की मुख्य देन मानी जाती हैं!उपरोक्त दोनों ही कारणों में वायव्य के साथ पश्चिमी दिशा बाहरी दोषों से पीड़ित होती हैं। नेरित्य बड़ा हुआ नीचा और ज्यादा दूषित होगा। इन दोषों के साथ ईशान का कट जाना घट जाना दूषित होना भारी निर्माण होना आदि दोष होते हैं । कहीं कही तो ऐसे भवनों में ब्रह्म स्थान में कोई कुंआ या गहरा खड्डा भी हो सकता है। कहीं कही घरों में व्यक्ति गुप्त साधक, रहस्मयी जीवन शैली अपना बैठता है, वहां पर नेरित्य दिशा संपूर्ण दूषित होगी। उपरोक्त दोषों में वायव्य दोष के लिए एक कहावत प्रचलित हैं "योगी भोगी और जोगी वायव्य की देन होगी “।हमारा भवन हमारे भाग्य और भविष्य का निर्णायक होता है। सही वास्तु हमे जीवन में सही दिशा प्रदान करता है।