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सावधान: क्या आप भी किसी जमीन की रजिस्ट्री में 'गवाह' बन रहे हैं? एक हस्ताक्षर आपको जेल की सलाखों तक पहुँचा सकता है!

हम भारतीय रिश्तों और दोस्ती को बहुत महत्व देते हैं। जब कोई दोस्त या रिश्तेदार जमीन खरीदता या बेचता है और कहता है, "अरे भाई, बस गवाही में एक साइन करना है, तू तो अपना आदमी है," तो हम बिना सोचे-समझे हस्ताक्षर कर देते हैं। हमें लगता है कि हम सिर्फ मदद कर रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कानून की एक धारा ऐसी है जिसका आज धड़ल्ले से दुरुपयोग हो रहा है, और वह बेकसूर गवाहों को भी अपराधी बना रही है? वह धारा है—IPC 120B (आपराधिक साजिश)।
​क्या है यह खेल?
​अक्सर जमीन-जायदाद के मामलों में बाद में विवाद हो जाता है। मान लीजिए जमीन पर रास्ता नहीं निकला, या नाप-जोख में कमी आ गई। यह मूल रूप से एक दीवानी मामला (Civil Dispute) है, जिसे कोर्ट में सुलझने में सालों लग सकते हैं।
​यहीं से शुरू होता है कानून के दुरुपयोग का खेल।
​खरीददार पक्ष अपना पैसा जल्दी वापस पाने या दबाव बनाने के लिए दीवानी मामले को आपराधिक (Criminal) केस में बदल देता है। वे पुलिस में FIR दर्ज करवाते हैं और उसमें जमीन मालिक के साथ-साथ गवाहों का नाम भी लिखवा देते हैं।
​IPC 120B: पुलिस और शिकायतकर्ता का सबसे आसान हथियार
​पुलिस और वकील जानते हैं कि अकेले जमीन मालिक पर केस करने से शायद वह न डरे। इसलिए वे धारा 120B (Criminal Conspiracy) का इस्तेमाल करते हैं। इसका मतलब है "साजिश रचना"।
​एक गवाह, जिसने न तो जमीन के पैसे लिए, न उसे डील का तकनीकी ज्ञान था, और न ही उसका कोई निजी स्वार्थ था—उसे भी एफआईआर (FIR) में यह कहकर मुलजिम बना दिया जाता है कि:
"इस गवाह को सब पता था, फिर भी इसने चुप रहकर हमारे साथ धोखा करवाया। यह भी इस साजिश में शामिल है।"
​गवाह का असली काम क्या है?
​कानूनन, गवाह (Attesting Witness) का काम केवल पहचान की तस्दीक करना है। गवाह अपने हस्ताक्षर से सिर्फ यह कहता है कि "हाँ, मेरे सामने फलां व्यक्ति ने साइन किए हैं और मैं इसे जानता हूँ।"
​गवाह जमीन के मालिकाना हक (Title) या जमीन पर रास्ता है या नहीं, इसकी गारंटी नहीं लेता। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह स्पष्ट किया है, लेकिन निचले स्तर पर पुलिस और प्रशासन इस फर्क को नजरअंदाज कर देते हैं।
​दबाव की राजनीति (Pressure Tactics)
​शिकायतकर्ता गवाहों को एफआईआर में इसलिए घसीटते हैं ताकि गवाह डर जाए और अपनी जान बचाने के लिए जमीन मालिक (खातेदार) पर दबाव बनाए—"भाई, मेरे ऊपर केस हो गया है, तू इनके पैसे लौटा दे या मामला रफा-दफा कर।"
​यह सीधे तौर पर कानून का दुरुपयोग (Abuse of Process of Law) है। एक निर्दोष व्यक्ति, जिसने सिर्फ भलमनसाहत में साइन किए थे, उसे कोर्ट-कचहरी और गिरफ्तारी के डर से गुजरना पड़ता है।
​आम जनता के लिए सलाह: अपना बचाव कैसे करें?
​अनजान डील में गवाह न बनें: जब तक आप दोनों पार्टियों (लेने और देने वाले) को बहुत अच्छे से न जानते हों, गवाह न बनें।
​दस्तावेज पढ़ें: साइन करने से पहले रजिस्ट्री में क्या लिखा है, उसे मोटे तौर पर जरूर पढ़ें।
​अपनी भूमिका सीमित रखें: यदि संभव हो, तो हस्ताक्षर के नीचे एक नोट लिख सकते हैं—"मैं केवल पहचान का गवाह हूँ, संपत्ति के तथ्यों का नहीं।"
​डरें नहीं, लड़ें: अगर आप पर झूठा 120B का केस हुआ है, तो घबराकर ब्लैकमेल न हों। हाई कोर्ट में ऐसे केस टिकते नहीं हैं। अपने बैंक स्टेटमेंट सुरक्षित रखें जो साबित करें कि आपने डील से कोई पैसा नहीं कमाया।
​निष्कर्ष
​कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल हथियार की तरह निर्दोषों को फंसाने के लिए किया जाता है, तो यह चिंता का विषय है। IPC 120B का यह अंधाधुंध इस्तेमाल रुकना चाहिए, ताकि समाज में एक-दूसरे की मदद करने का भरोसा कायम रहे। अगली बार "गवाह" बनने से पहले सौ बार सोचें—कहीं आप किसी और की लड़ाई में मोहरा तो नहीं बन रहे?
​जनहित में जारी

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