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शक्ति नहर का मलबा और 14 नवंबर का काफिला – एक ही सिक्के के दो पहलू

इंद्रपाल सिंह, विकास नगर (देहरादून), 26 नवंबर

शक्ति नहर किनारे अभी मलबा साफ भी नहीं हुआ है। 23 नवंबर को ऊर्जा विभाग की जमीन पर बने 111 मकान, दुकानें और मदरसा ध्वस्त हो गए। इनमें से कई कब्जे दशकों पुराने थे – 50 साल, 20 साल, 10 साल पुराने। नोटिस के बावजूद सालों-साल चलता रहा। फिर एक दिन बुलडोजर आया और सब मिट्टी में मिल गया।

ठीक 12 दिन पहले, 14 नवंबर को यहीं विकास नगर में प्रशासन का काफिला गरजा था। धर्मावाला से कुल्हाल, ढालीपुर, ढकरानी, शिमला बायपास तक गाड़ियां दौड़ी थीं। नाला गायब, पुलिया मौजूद – सबूत लिए गए, अभिलेख तलब किए गए, चेतावनी दी गई थी – “जल्द कार्रवाई होगी”।

शक्ति नहर ने दिखा दिया कि दशकों तक चलने वाला कब्जा भी एक पल में खत्म हो सकता है।
अब यही सबक MDDA और राजस्व विभाग के लिए भी है – जिनके कंधों पर कृषि भूमि पर हो रही अवैध प्लाटिंग की रोकथाम और निगरानी की कानूनी जिम्मेदारी है (उत्तराखंड भू-कानून 2025 व MDDA नियमावली के तहत)।

अगर ये विभाग शक्ति नहर से सीख लेकर अभी सक्रिय हो जाएं, 14 नवंबर के निरीक्षण को तार्किक अंजाम तक पहुंचाएं, तो अनजान लोग सस्ते प्लॉट के जाल में फंसकर अपनी जीवन भर की कमाई बर्बाद होने से बच जाएंगे।

प्लॉट खरीदने से पहले सिर्फ यही पांच बातें जरूर देख लें –
DM का लैंड यूज चेंज आदेश, MDDA का मैप अप्रूवल, सॉइल टेस्ट व जियो-टेक्निकल रिपोर्ट, खसरा-खतौनी में “आवासीय” का स्पष्ट उल्लेख, और बाढ़-भूस्खलन जोन में न होने का प्रमाण-पत्र।

शक्ति नहर का मलबा चीख-चीखकर बता रहा है –
जिम्मेदार विभाग अभी जागें तो कई परिवारों का आशियाना बच सकता है।
अगर नहीं जागे, तो कल फिर कोई नई शक्ति नहर बनेगी।

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