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26 नोव्हेंबर संविधान दिवस



26 नवंबर केवल एक तारीख नहीं है। यह वह दिन है जब हमने अपने देश की दिशा और चरित्र तय करने वाला दस्तावेज अपनाया था। संविधान ने हमें लोकतंत्र दिया, अधिकार दिए और यह भरोसा दिया कि हर नागरिक बराबरी के साथ जी सकेगा। लेकिन आज सवाल यह है कि क्या हम इस उम्मीद पर खरे उतर रहे हैं?

संविधान दिवस हमें बार-बार यह सोचने पर मजबूर करता है कि अधिकारों की बात तो हम सब करते हैं, पर कर्तव्यों पर कितनी गंभीरता है? संविधान ने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी दी, लेकिन उसी के साथ जिम्मेदारी भी दी कि इस आज़ादी का इस्तेमाल समाज को जोड़ने के लिए हो, तोड़ने के लिए नहीं।

देश की विविधता हमारी ताकत मानी जाती है। लेकिन यह तभी ताकत बनती है जब हम एक-दूसरे की बात सुनें, समझें और मतभेदों के बावजूद सम्मान बनाए रखें। लोकतंत्र बहस चाहता है, संघर्ष नहीं; विचार चाहता है, हिंसा नहीं।

संविधान दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि न्याय, स्वतंत्रता और समानता सिर्फ किताबों के शब्द नहीं होने चाहिए। इन्हें हर नागरिक के जीवन में महसूस होना चाहिए। यह काम सिर्फ सरकारों का नहीं है, समाज और नागरिक दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी है।

आज जब दुनिया तेजी से बदल रही है, भारत को भी आगे बढ़ना है। लेकिन यह प्रगति तभी सार्थक होगी जब वह संविधान के मूल्यों के साथ हो। जिन आदर्शों के लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने इतनी मेहनत की, उन्हें बचाए रखना हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी परीक्षा है।

26 नवंबर हमें यह संदेश देता है कि लोकतंत्र कोई तैयार चीज नहीं, बल्कि एक निरंतर प्रक्रिया है। इसे हर दिन निभाना पड़ता है। अधिकारों की रक्षा करनी पड़ती है और कर्तव्यों को गंभीरता से निभाना पड़ता है।

अगर हम संविधान के दिए रास्ते पर ईमानदारी से चलें, तो देश न सिर्फ आगे बढ़ेगा, बल्कि मजबूत, न्यायपूर्ण और सुरक्षित भी बनेगा।

राईट हेडलाईन्स ब्युरो

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