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ध्यान दिवाकर मुनि प्रवर 108 जय कीर्ति जी गुरुराज के सानिध्य में राम कथा में उमड़े श्रद्धालु।

कोटा। विशिष्ट राम कथाकार, अनुष्ठान विशेषज्ञ एवं ध्यान दिवाकर परम पूज्य मुनि प्रवर 108 श्री जयकीर्ति जी गुरुराज अंकलविद्यालय रामपुरा, कोटा में रामकथा के चतुर्थ दिवस में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
एसोसिएशन के अध्यक्ष पीयूष बज एवं सचिव अनिमेष जैन ने कहा कि पुण्यार्जक परिवार द्वारा जिनवाणी भेंट कमला भाई, दीपक स्वेटर, सन्नी तथा आंचल गंगवाल द्वारा की गई, जबकि राजाश्रेणिक के रूप में विनोद–सुनीता, सीमा–जम्बू, राहुल–वैशाली एवं लोचन बज (विजयपाड़ा, रामपुरा) परिवार ने सौभाग्य अर्जित किया।
पूज्य गुरुदेव ने धर्मसभा में आहार दान की महिमा का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि “आहार दाता केवल अन्न नहीं देता, बल्कि वह साधु को आरोग्य, संयम, ज्ञान, ध्यान, तप, रत्नत्रय और मोक्षमार्ग का बल प्रदान करता है। यह दान उसी जीव के हाथों होता है जिसका भविष्य सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य से परिपूर्ण होने वाला हो।”
गुरुदेव ने बताया कि गुप्ति–सुगुप्ति रूप से सम्यक आहारदान के प्रभाव से भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को दिव्य रथ की प्राप्ति हुई, जिसके सहारे वे दंडक वन और हिमगिरि पर्वत तक पहुंचे तथा लक्ष्मण ने वहां सुंदर कुटिया का निर्माण किया।

रावण की उत्पत्ति, तप और दशानन नामकरण का रहस्य
गुरुदेव ने राक्षस वंश की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए रावण के जन्म, बाललीला और उनके दशानन नामकरण का कारण बताया। उन्होंने कहा कि कठिन तप के समय यक्षों द्वारा किए गए उपद्रवों के बावजूद रावण और उसके भाइयों ने अदम्य धैर्य से अनेक विद्याओं की सिद्धि प्राप्त की।गुरुदेव ने कहा—“यदि ऐसे ही अविचल तप में कोई मुनिराज स्थित होता, तो वह तत्काल मुक्त हो जाता।”

शम्बुक का तप, सूर्यहास खड्ग और युद्ध प्रसंग
गुरुदेव ने आगे शम्बुक के 12 वर्षों के कठोर साधना, गुरु वचनों की अवहेलना तथा पुण्योदय–पापोदयो के सिद्धांतों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि लक्ष्मण को पुण्यबल से सूर्यहास खड्ग प्राप्त हुआ और उसी के प्रभाव से शम्बुक का वध हुआ।
शम्बुक के धड़ से अलग सिर को देख चंद्रनखा का शोकाकुल होना, तत्पश्चात राम–लक्ष्मण के स्वरूप से मोहित होना तथा उनके विवाह प्रस्ताव को राम द्वारा अस्वीकार करना—इन सभी प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण कथा में हुआ।
इसके बाद खरदूषण की सेना से युद्ध, रावण की दृष्टि का पहली बार सीता पर पड़ना, छलपूर्वक सीता हरण और उसके बाद राम की व्याकुलता व करुण विलाप के प्रसंग का गुरुदेव ने अत्यंत मार्मिक वर्णन किया, जिसे सुनकर उपस्थित श्रोताओं की आंखें नम हो गईं।

जटायु का बलिदान और विराधित प्रसंग का वर्णन
कथा में जटायु द्वारा रावण से युद्ध कर सीता की रक्षा का प्रयास, गंभीर रूप से घायल जटायु को राम द्वारा णमोकार मंत्र का उच्चारण करवाकर देवगति प्रदान करने का प्रसंग अत्यंत भावविभोर करने वाला रहा।आगे राजा विराधित की सहायता से खरदूषण वध और अलंकार नगर में राम–लक्ष्मण का स्वागत, तथा चारों दिशाओं में सीता की खोज हेतु निर्देश देने तक के प्रसंगों का गुरुदेव ने नवरसपूर्ण एवं नीतिपरक शैली में उत्कृष्ट वर्णन किया।

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