
फेलियर सिस्टम के कारण मुन्नी की तरह बदनाम हुई मोदी सरकार की आयुष्मान योजना
स्वामी विवेकानन्द हॉस्पिटल पर गंभीर आरोप – 2 लाख लेने के बाद अब 55 हजार की और मांग
घर बेचकर स्कूल में रह रही पुन्नी बाई का परिवार**
बिलासपुर। आयुष्मान भारत योजना—जिसे मोदी सरकार करोड़ों गरीबों की स्वास्थ्य सुरक्षा का कवच बताती है—उसकी जमीनी हकीकत एक बार फिर शर्मसार करती तस्वीर सामने आई है। पुन्नी बाई के दर्द ने साबित कर दिया कि योजना कागजों और विज्ञापन बोर्डों में भले ही सफल दिखाई देती हो, लेकिन हकीकत में यह सिस्टम “मुन्नी की तरह बदनाम” होकर निजी अस्पतालों की दलाली और मनमानी के आगे पूरी तरह धराशायी है।
पुन्नी बाई अपने घायल बेटे के इलाज के लिए घर तक बेच चुकी है। दो लाख रुपये अस्पताल में जमा कराने के बाद अब स्वामी विवेकानन्द हॉस्पिटल प्रबंधन उन्हें बेटे को डिस्चार्ज करने के लिए 55 हजार रुपये और देने का दबाव बना रहा है। मजबूरी ऐसी कि पूरा परिवार अब अपने ही गाँव का घर छोड़कर स्कूल में डेरा डालकर रहने को विवश है।
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कैसे एक गरीब मां का सहारा बना अस्पतालों की लूट का शिकार
कोरबा के 100 बिस्तर अस्पताल से घायल युवक को बेहतर इलाज के लिए सिम्स बिलासपुर रेफर किया गया था। लेकिन एंबुलेंस चालक ने मरीज को सिम्स न ले जाकर सीधे स्वामी विवेकानंद हॉस्पिटल पहुंचा दिया। इतना ही नहीं, उसने परिजनों को यह कहकर भ्रमित किया कि “यह भी सरकारी अस्पताल है।”
इलाज शुरू होते ही अस्पताल प्रबंधन ने लगातार पैसे जमा करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। जब परिजनों ने अपना आयुष्मान कार्ड प्रस्तुत किया, तो अस्पताल ने उसे स्वीकार करने से ही इंकार कर दिया।
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मीडिया कवरेज में कई और पीड़ित सामने आए
घटना की कवरेज के दौरान कई अन्य परिजन भी सामने आए—
किसी ने घर गिरवी रखा
किसी ने खेत बेचकर
किसी ने महिलाओं के मंगलसूत्र गिरवी रखकर
अपने परिजनों का इलाज कराया।
सभी का एक ही आरोप—“अस्पताल प्रबंधन लगातार पैसे की मांग करता रहा, मजबूरी में हमने रकम दी।”
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5 लाख दे चुके, अब कहां से लाएं पैसे?
परिजनों का कहना है कि कुल मिलाकर वे 5 लाख रुपये तक अस्पताल को दे चुके हैं। इसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन मरीज को नहीं छोड़ रहा और 55 हजार रुपये और मांग रहा है।
यह घटना न सिर्फ अस्पताल प्रबंधन बल्कि सिस्टम और सरकार के उस ‘स्वास्थ्य क्रांति’ के दावे पर भी बड़ा सवाल है जो लगातार आयुष्मान योजना को देशभर का सबसे सफल कार्यक्रम बता रही है।
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योजना फेल क्यों? जनप्रतिनिधि और सिस्टम की चुप्पी जिम्मेदार
निजी अस्पताल:
आयुष्मान कार्ड मानने से इंकार
इलाज के नाम पर लूट
पैसों के लिए मरीज को रोककर रखने जैसे अमानवीय आरोपों में बार-बार पकड़े जा रहे हैं
लेकिन सिस्टम और जनप्रतिनिधि:
कार्रवाई करने से बचते हैं
निजी अस्पतालों से रिश्ते बिगड़ने के डर से चुप रहते हैं
किसी तरह की जवाबदेही तय नहीं होती
इसका सीधा नुकसान पुन्नी बाई जैसे गरीब परिवारों को हो रहा है, जो इलाज के नाम पर अपना घर, जमीन और गहने तक बेचने को मजबूर हैं।
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दुर्गा जगत, मरीज की बहन का बयान:
“हमने घर बेच दिया। अब ढिया बिल स्कूल में रह रहे हैं। फिर भी अस्पताल वाले मरीज को नहीं छोड़ रहे। आयुष्मान कार्ड लेकर गए, लेकिन उन्होंने मानने से मना कर दिया।”
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पुन्नी बाई पाटले – टूटा हुआ परिवार, टूटा हुआ सिस्टम
पुन्नी बाई की आंखों में सिर्फ एक ही सवाल—
“जब गरीब के लिए बनाई गई योजना मदद नहीं करेगी, तो फिर हम कहां जाएं?”