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SIR पर BLO की मौत पर राजनीति: लोकतंत्र के चौखट पर खड़ा एक असहज सच......एक विश्लेषण


भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाना केवल राजनीतिक दलों या चुनाव आयोग का काम नहीं है। इस विराट व्यवस्था की रीढ़ वे लाखों छोटे-छोटे कर्मचारी हैं, जिनके कंधों पर चुनावों की वास्तविक जिम्मेदारी टिकी होती है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं — BLO (Booth Level Officer)।
घर-घर जाकर वोटर लिस्ट अपडेट करना, नए मतदाता जोड़ना, पुराने हटाना, पात्र नागरिकों को उनका मतदान अधिकार दिलवाना — BLO लोकतंत्र का सबसे ज़मीनी प्रहरी है। परंतु विडंबना यह है कि वही BLO सबसे अधिक असुरक्षित, सबसे अधिक उपेक्षित और सबसे अधिक दबाव में काम करता है।

हाल ही में ड्यूटी के दौरान एक BLO की SIR पर अचानक मौत होने की घटना ने न केवल प्रशासनिक कवच-कवच को उजागर किया, बल्कि इस त्रासदी पर खुलकर राजनीति भी शुरू हो गई। मौत, जिसने परिवार की दुनिया उजाड़ दी, राजनेताओं के लिए एक अवसर बन गई—आरोप लगाने का, बयान जारी करने का, और खुद को संवेदनशील बताने का। लेकिन इस राजनीतिक शोर में असल मुद्दा कहीं खो जाता है—क्या BLO सुरक्षित हैं? क्या उनके लिए कोई ठोस नीति है? क्या उनकी मृत्यु सिर्फ एक आंकड़ा है?

इस विस्तृत रिपोर्ट में हम उसी कठोर यथार्थ की पड़ताल करेंगे।

1. BLO का कार्यक्षेत्र: लोकतंत्र का सबसे कठिन और अनदेखा मोर्चा

भारतीय चुनाव आयोग BLO को "मतदाता सूची प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण कड़ी" मानता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि उनकी जिम्मेदारियाँ किसी भी सरकारी स्टाफ से कम नहीं, बल्कि अधिक जटिल होती हैं।

BLO की मुख्य जिम्मेदारियाँ:

इलाके के हर घर में जाकर मतदाता सूची का सत्यापन

नए मतदाताओं के फॉर्म भरवाना

मृत अथवा स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाना

दिव्यांग, वरिष्ठ नागरिक और महिलाओं को विशेष सहायता प्रदान करना

चुनावी जागरूकता अभियान में भागीदारी

चुनाव के दौरान मतदान केंद्रों पर निगरानी

परिस्थिति यह है कि ये सब जिम्मेदारियाँ BLO अपने मूल विभाग (स्कूल, पंचायत, स्वास्थ्य, कार्यालय आदि) की ड्यूटी करते हुए निभाते हैं।

अर्थात्—
दोगुना काम, आधी सुविधाएँ, चौगुना दबाव।

देश के कई राज्यों में BLO सुबह से शाम तक सैकड़ों घरों में चक्कर लगाते हैं। भीषण गर्मी, कड़कड़ाती ठंड और भारी बारिश में भी उनका काम बंद नहीं होता। नगरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में कई बार उन्हें असुरक्षित जगहों तक जाना पड़ता है।

कई BLO बताते हैं कि काम का इतना दबाव होता है कि वे बीमारी या थकावट की परवाह किए बिना काम करते रहते हैं, क्योंकि लक्ष्य पूरा न होने पर अधिकारियों की ओर से फटकार, चेतावनी या नोटिस मिल जाता है।

2. मौत की घटना: त्रासदी या प्रशासनिक असफलता?

जब किसी BLO की ड्यूटी के दौरान मौत होती है, तो प्रशासन उसकी जांच को अक्सर एक सामान्य घटना, ‘हार्ट अटैक’ या ‘अचानक बीमारी’ का मामला बताकर आगे बढ़ जाता है। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और कहती है।

अक्सर ये मौतें होती हैं:

अत्यधिक काम के दबाव से

घंटों पैदल चलने से

अपर्याप्त विश्राम

सही मेडिकल सुविधा न मिलने से

जोखिम भरे इलाकों में काम करने से

कई मामलों में BLO बढ़ती गर्मी के बीच 40-45 डिग्री तापमान में भी घर-घर जाकर फॉर्म भरवाते हैं। ऐसे में दिल का दौरा, स्ट्रोक या हीट स्ट्रेस होना स्वाभाविक है।

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मौत के बाद असल मुद्दे पर चर्चा नहीं होती—बल्कि राजनीति होने लगती है।

3. मौत पर राजनीति: संवेदनाओं का राजनीतिक दोहन

BLO की मौत के बाद राजनीति का दृश्य लगभग हर जगह एक जैसा देखने को मिलता है।

(1) विपक्ष सरकार को घेरता है

विपक्ष इसे सरकार की विफलता बताते हुए कहता है कि प्रशासन ने सुरक्षा, स्वास्थ्य और सुविधा का इंतज़ाम नहीं किया।
वे इसे मुद्दा बनाकर सरकारी तंत्र की आलोचना करते हैं और मुआवजे की मांग उठाते हैं।

(2) सत्ताधारी दल सफाई देता है

सत्ताधारी दल इसे "दुर्भाग्यपूर्ण प्राकृतिक घटना" बताते हुए अपना बचाव करता है।
कई बार बयान आते हैं—
“यह कोई चुनावी दबाव नहीं था, अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने से यह घटना हुई।”

(3) स्थानीय नेताओं का दुख जताने का दौरा

कई नेता मृतक के घर जाकर संवेदना प्रकट करते हैं।
लेकिन कई बार यह भी फोटो-ऑप और राजनीतिक उपस्थिति बनकर रह जाता है।

(4) मीडिया में बयानबाजी का दौर

टीवी, अख़बार और सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप का बाज़ार गर्म।
लेकिन कहीं भी BLO की कार्यस्थितियों पर ठोस चर्चा नहीं होती।

सवाल यह है—
क्या BLO की मौत केवल राजनीतिक मुद्दा है, या यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है?

4. BLO का सिस्टम: सुविधाएँ कम, जिम्मेदारियाँ ज्यादा

भारत में हर BLO के पास कोई अतिरिक्त स्वास्थ्य बीमा, सुरक्षा भत्ता या जोखिम भत्ता नहीं होता।

कई राज्यों में BLO को सर्वोच्च काम का भार दिया जाता है, लेकिन सुरक्षा न्यूनतम।

कोई मानक आराम समय नहीं।

कोई ट्रांसपोर्ट व्यवस्था नहीं।

ग्रामीण क्षेत्रों में कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

कई जगह दुर्गम क्षेत्र, जंगल, पहाड़ी मार्ग, नक्सलप्रभावित क्षेत्र शामिल हैं।

इतना सब होने के बावजूद, BLO को मिलने वाला मासिक भत्ता कई बार उनकी मेहनत के मुकाबले बेहद कम होता है।

5. परिजनों की पुकार: “सिर्फ मुआवज़ा नहीं, न्याय चाहिए”

BLO की मृत्यु के बाद परिवार आर्थिक और भावनात्मक संकट में आ जाता है।
कई परिवार मीडिया से बात करते हुए कहते हैं:

“हमारे घर के कमाने वाले को वापस नहीं ला सकते, पर कम से कम सिस्टम यह स्वीकार करे कि उसे ड्यूटी की वजह से जान गंवानी पड़ी।”

“सिर्फ 4–5 लाख का मुआवजा देना समाधान नहीं है।”

“सरकार को BLO के लिए सुरक्षा नीति बनानी चाहिए।”

कई बार परिवार आरोप लगाते हैं कि अधिकारियों ने समय पर मदद नहीं पहुंचाई, या दबाव डालकर काम करवाया।

परिवार की यह पीड़ा राजनीति की भीड़ में अक्सर अनसुनी रह जाती है।

6. विशेषज्ञों की राय: “BLO को फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा मिलना चाहिए”

चुनाव विशेषज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय है कि BLO के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य की एक समर्पित नीति बनना बेहद जरूरी है।

उनके अनुसार—

BLO के लिए ‘जोखिम भत्ता’ अनिवार्य।

एक राष्ट्रीय BLO बीमा योजना बने।

अत्यधिक गर्मी/ठंड में फील्ड ड्यूटी पर रोक हो।

डिजिटल वेरिफिकेशन के विकल्प को बढ़ाया जाए।

काम का बोझ आधा किया जाए।

विशेषज्ञ कहते हैं—“लोकतंत्र सिर्फ वोट डालने से नहीं चलता।
यह उन लोगों के कंधों पर चलता है जो चुनाव की नींव संभालते हैं—BLO उनमे सबसे अहम हैं।”

7. प्रशासन का पक्ष — ‘हम नियमों के अनुसार काम करते हैं’

अधिकतर मामलों में प्रशासन का यही कहना होता है कि:

BLO को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है।

सुरक्षा संबंधी दिशानिर्देश जारी होते हैं।

स्वास्थ्य जांच कैंप लगाए जाते हैं।

दुर्घटना होने पर नियमों के अनुसार मुआवजा दिया जाता है।

लेकिन ज़मीनी स्तर पर BLO इन दावों से सहमत नहीं दिखते।
उनका कहना है कि निर्देशों का पालन केवल कागजों में होता है, और दबाव भ्रमित करने वाला होता है।

8. काम का दबाव: लक्ष्य, टाइमलाइन और फील्ड वेरिफिकेशन

मतदाता सूची संशोधन (Voter List Revision) सबसे ज़्यादा तनाव का दौर होता है।
इस दौरान:

अवधि सीमित होती है

लक्ष्य भारी होता है

हर BLO को सैकड़ों घरों तक पहुंचना पड़ता है

छुट्टी लगभग नहीं मिलती

कई BLO बताते हैं कि जिन इलाकों में असल में 2 घंटे लगने चाहिए, वहां 6–7 घंटे लग जाते हैं।

कई बार अधिकारी अचानक निरीक्षण करते हैं, और काम अधूरा मिलने पर फटकार पड़ती है।
ऐसे में BLO मजबूर होकर बीमार होने पर भी फील्ड में उतरते हैं।

9. चुनाव आयोग की भूमिका: नीतियाँ हैं, लेकिन ज़मीन पर लागू नहीं

चुनाव आयोग समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता है—
जैसे:

अत्यधिक गर्मी में फील्ड वर्क सीमित

पर्याप्त पेयजल

वरिष्ठ नागरिक BLO को दिक्कत न हो

स्वास्थ्य जांच

लेकिन वास्तविकता यह है कि ज़िला स्तर पर ये निर्देश अक्सर नजरअंदाज किए जाते हैं।
और जब हादसा हो जाता है, तो नियमों का हवाला देकर जिम्मेदारी टाल दी जाती है।

10. मौत पर राजनीति: असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की तकनीक

इस तरह की घटनाओं पर राजनीति होना केवल हमारी व्यवस्था की संवेदनहीनता नहीं, बल्कि समस्या से ध्यान हटाने की पुरानी राजनीतिक तकनीक भी है।

राजनीति इस तरह होती है:

विपक्ष: “ये सरकार की नाकामी है”

सरकार: “ये प्राकृतिक हादसा है”

मीडिया: “दोनों पक्षों में आरोपों की जंग”

और इस बीच… BLO की मौत, उसके परिवार का दर्द, और इस समस्या के समाधान की जरूरत — सब पीछे छूट जाता है।

11. समाधान क्या हैं?

विशेषज्ञ और प्रशासनिक अनुभवी लोग कुछ ठोस सिफारिशें देते हैं।

(1) BLO को फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा मिले

जिससे उन्हें सुरक्षा, स्वास्थ्य और सुविधा मिल सके।

(2) राष्ट्रीय स्तर पर BLO सुरक्षा कानून बने

जिसमें शामिल हो:

स्वास्थ्य बीमा

दुर्घटना बीमा

जोखिम भत्ता

सुरक्षित परिवहन

मेडिकल सहायता


(3) डिजिटल प्रणाली मजबूत हो

ताकि BLO को घर-घर जाने की जरूरत कम पड़े।
जैसे—

ऑनलाइन Aadhaar आधारित वेरिफिकेशन

मोबाइल ऐप द्वारा दस्तावेज जमा

रिमोट वेरीफिकेशन सिस्टम


(4) अत्यधिक गर्मी/ठंड में फील्ड वर्क पर रोक

WHO भी सलाह देता है कि 40+ डिग्री में फील्ड वर्क जानलेवा हो सकता है।

(5) मुआवजा प्रणाली पारदर्शी हो

और एक निर्धारित समय सीमा में परिवार को सहायता मिले।

12. समाज का दृष्टिकोण: BLO की भूमिका को समझना होगा

आम जनता की भी एक जिम्मेदारी है।
अक्सर लोग BLO के साथ ठीक व्यवहार नहीं करते—
कई बार फॉर्म नहीं भरते, दस्तावेज नहीं देते, बहस करते हैं, और उन्हें घंटों इंतजार करवाते हैं।

सच्चाई यह है कि BLO आपका काम कर रहा है—
वह आपके मतदान अधिकार को सुनिश्चित करता है।

अगर समाज BLO के काम को सम्मान दे, तो उनकी परेशानी आधी हो सकती है।

13. निष्कर्ष: लोकतंत्र खड़ा है, पर उसके पहरेदार खतरे में

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
लेकिन इसका आधार जिन लोगों पर टिका है—BLO, शिक्षकों, कर्मचारियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पुलिसकर्मियों—
उनकी सुरक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता।

BLO की मौत केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की संरचना पर एक बड़ा सवाल है।

राजनीति, चाहे सत्ता पक्ष की हो या विपक्ष की, तब तक अधूरी है जब तक वह BLO के लिए ठोस नीतियाँ न बनाए।

यह जरूरी है कि

BLO के जीवन की सुरक्षा,

उनके कार्य का सम्मान,

उनके परिवार का सहारा, और

उनके स्वास्थ्य की जिम्मेदारी


राज्य और केंद्र दोनों लें।

इस देश में हर वोटर को अपने मतदान अधिकार का गर्व है —
तो उसी गर्व से हमें उन लोगों का भी सम्मान करना होगा जो हमारे अधिकार को सुरक्षित रखते हैं।
उनकी मौत पर राजनीति नहीं, बल्कि नीति बननी चाहिए।

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