
चमचों_के_नेहरू
#चमचों_के_नेहरू
1962 में हिसार से एक सांसद थे -
जिनका नाम था मनीराम बागडी।
बागडी जी को नेहरू की नौटंकी से
बड़ी नफ़रत थी। बागड़ी जी को पता था नेहरू 14 नवम्बर को सफ़ेद अचकन पर गुलाब का फूल टाँग कर आयेगा और चमचे चाचा नेहरू ज़िन्दाबाद के नारे लगायेंगे, बागड़ी जी ने एक झुग्गी झोपड़ी का भारत की माटी का साँवला सा बच्चा जिसकी नाक बह रही थी, थोड़ी सी राख व कालिख उसके मुँह पर
और लगादी, उसको अपनी गोद में उठाकर अपने शाल में ढककर चुपचाप जा कर संसद में अपनी सीट पर बैठ गये।
ज्यों ही गुलाब का फूल टाँगकर
नेहरू जी संसद में घुसे तो
उनके चमचों ने चाचा नेहरू ज़िन्दाबाद के नारों से हाल को गुँजा दिया और जब नेहरू का महिमा मण्डन होने लगा, तो बागड़ी जी एकाएक उठ खड़े हुए और बोले -नेहरू को भारतीय बच्चों से प्यार नहीं, इसको तो अंग्रेज़ी मेमों के बच्चे प्यारे लगते हैं !
अगर सच में नेहरू को भारतीय बच्चों से प्यार है तो मेरी गोद में जो भारतीय बच्चा बैठा है ,
उसको सबके सामने एक बार चूमकर दिखाएं, यह कहकर बागड़ी जी ने उस काले कलूटे बच्चे को नेहरू के सामने कर दिया।
उसके बाद नेहरू आगे आगे और
बागड़ी जी पीछे पीछे,
बागड़ी जी ने नेहरू को संसद भवन से बाहर तक भगा दिया था।
कहने का मतलब यह है कि नेहरू का बच्चों से कोई लेना देना नहीं था ,
यह केवल उसको महान दिखाने के लिए दिया गया केवल एक दिखावी तगमा था,एक परिवार के नाम पर देश में बहुत अति हो चुकी है,
अब समय आ गया है कि
चाचा व बापू नामक तगमे
अब हटा देने चाहिएँ...आपकी क्या राय है?