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दानवीर सेठ छज्जुराम।

हरियाणा, हांसी के सेठ छज्जुराम जी जो गांव अलखपुरा के थे।
आज यह गांव भिवानी जिले की बवानीखेङा तहसील में है लेकिन यह कभी हांसी तहसील में था।
छाजुराम बचपन से ही कुशाग्र थे। वह पढलिख कर कलकता गये और एक सफल व्यापारी बने। धनमाया के भंडार भरे तो उन्होंने अनेक जनहित के कार्यों में भी धन लगाया। बताया जाता है कि लाहौर से कलकता तक शायद ही कोई ऐसा शहर या गांव देहात रहा होगा जहां उनके द्वारा बनवाये गये स्कूल, कालेज, धर्मशाला,कुए,तालाब,सराय न हों।
अमर शहीद सरदार भगतसिंह की सहायता करना उनके देश प्रेम का उदाहरण है। इतना धन माया आ जाने के बाद भी उनमें घमंड नहीं था। जरूरतमंदों की मदद करना वो अपना फर्ज समझते थे। कलकता में रहते हुए भी व अपनी मिट्टी से जुङु रहे गांव अलखपुरा में कुआ तालाब, स्कूल,धर्मशाला का निर्माण करवाया। गांव अलखपुरा और गांव शेखपुरा में आलीशान भव्य हवेली और कोठी का निर्माण करवाया। हांसी रेलवे स्टेशन से शेखपुरा कोठी तक उनकी बग्गी के आने जाने कै लिए स्पेशल रोङ भी था। जिसे सेठ छज्जुराम की बग्गीलेट कहा जाता था।अंग्रेज हकूमत ने उनकी जनहित की भावना को देखते हुए विशेष सम्मान से नवाजा था। उन्हें जनसाधारण दानवीर कहता था। हिसार का सी.आर.एम. जाट कालेज व साथ लगता जाट स्कूल, रोहतक का जाट कालेज व जाठ स्कूल, नीली कोठी रोहतक उनकी याद दिलाते हैं।.जाट नेता सर छोटूराम को भी शिक्षित करने में सेठ छज्जुराम का बहुत बङा योगदान रहा है।
वह आर्य समाजी थे अपनी हवेली व कोठी में हर रोज हवन करते थे।
उनका मानना था कि।
संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं !
प्रथम - जो अपना फल स्वयं दे देते हैं... जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि !
द्वितीय - अपना फल छिपाकर रखते हैं... जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि !
जो अपने फलों को स्वयं दे देते हैं, ऐसे वृक्षों को आंधी तूफान भी झेलने पड़ते हैं और पत्थर भी खाने पड़ते हैं...फिर भी ये जनसेवा के लिए दोबारा से फल देने के लिए सक्षम होते हैं ! किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाता है !
ठीक इसी प्रकार...
जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन और शक्ति को स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान के लिए लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है !
वही दूसरी तरफ...
जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं, किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते है !
प्रकृति कितना महत्वपूर्ण संदेश देती है, बस समझने, सोचने और
कार्य में परिणित करने की बात है...

#प्रकृति #संदेश #सेवा #कर्म
जगदीश

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