असम सरकार द्वारा की गई इस बड़ी नीति घोषणा ने पूरे राज्य में नई चर्चा छेड़ दी है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण बयान जारी करते हुए कहा कि चाय जनजाति और चाय बागान समुदाय के नाम पर मिलने वाले लाभों का दुरुपयोग लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ लोग फर्जी चाय बागान प्रमाणपत्र जमा कर शैक्षणिक कोटा, छात्रवृत्ति, सरकारी नौकरियों में आरक्षण और विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे थे। इस तरह के फर्जीवाड़े ने वास्तविक चाय बागान युवाओं को उनके अधिकार और अवसरों से सीधे वंचित किया है।मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि “अब से कोई भी व्यक्ति सिर्फ प्रमाणपत्र दिखाकर लाभ नहीं ले सकेगा; यह साबित करना होगा कि वह वास्तव में चाय जनजाति या चाय बागान समुदाय से संबंधित है।” इसके लिए सरकार एक विशेष नीति लागू कर रही है, जिसके अंतर्गत प्रमाणपत्रों की कड़ी जांच होगी, सभी दस्तावेज़ डिजिटल ऑथेंटिकेशन सिस्टम से सत्यापित किए जाएंगे, और एक विशेष जांच प्रकोष्ठ बनाया जाएगा जो प्रमाणपत्रों के दुरुपयोग और फर्जीवाड़े की शिकायतों की जांच करेगा। इसके अलावा, जो लोग फर्जी प्रमाणपत्र का उपयोग करते हुए पकड़े जाएंगे, उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई और दंड का प्रावधान भी होगा। सरकार का कहना है कि इस नीति से चाय बागान समुदाय को न केवल न्याय मिलेगा, बल्कि वर्षों से जारी फर्जी लाभ उठाने की प्रवृत्ति पर भी प्रभावी रोक लगेगी। चाय बागान कर्मचारियों और यूनियनों ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि लंबे समय से उनकी शिकायत थी कि बाहरी लोग उनकी जगह अवसरों का लाभ ले रहे थे। इस नीति को चाय जनजाति और चाय बागान समुदाय के सामाजिक एवं शैक्षणिक सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक और निर्णायक कदम माना जा रहा है।