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अपने बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी समझिए पालक,शिक्षक के लिये एक लेख


🖋️मो. जावेद शेख
उप संपादक
राईट हेडलाईन्स नासिक

आजकल एक बात अक्सर सुनने में आती है कि “अपने बच्चों को फिर आप ही पढ़ा लो, क्योंकि आपके पास शिक्षक की अहमियत नहीं है।” यह शिकायत सिर्फ शिक्षकों की नहीं है, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की एक गहरी सच्चाई बताती है।

स्कूल और माता-पिता दोनों का लक्ष्य एक ही है। बच्चे का भविष्य। मगर कई बार भावनाओं, अपेक्षाओं और गलतफहमियों की वजह से यह रिश्ता टकराव में बदल जाता है। कुछ माता-पिता छोटी-छोटी बातों पर बवाल कर देते हैं, और इसका असर बच्चों पर पड़ता है। वे समझने लगते हैं कि शिक्षक की कोई इज़्ज़त नहीं है।

शिक्षक सिर्फ पढ़ाते नहीं, चरित्र बनाते हैं
एक अच्छा शिक्षक बच्चे को सिर्फ किताबें नहीं सिखाता। वह अनुशासन, मॅनर्स, सोचने का तरीका, मेहनत की आदत और कई बार जिंदगी की बुनियादी समझ भी देता है। यह योगदान घर पर हर माता-पिता भी नहीं दे पाते।

जब बच्चों के सामने शिक्षक की इज़्ज़त कम होती है, तो वे सीखने की जिम्मेदारी से भी दूर हो जाते हैं। उनका ध्यान पढ़ाई से हटने लगता है और वह घर और स्कूल दोनों में लापरवाह हो जाते हैं।

माता-पिता का गुस्सा बच्चे को गलत संदेश देता है
अगर किसी बात पर शिकायत है, तो बात करने का तरीका शांत और समझदार होना चाहिए। लेकिन जब कोई पैरेंट स्कूल में हंगामा करता है, तो बच्चा यही समझता है कि गलती हमेशा शिक्षक की है। फिर वह खुद कभी अपनी गलती मानना नहीं सीख पाता।

सच्चाई यह है कि बच्चे को गढ़ने में परिवार और शिक्षक दोनों की बराबर भूमिका है।
अगर हम दोनों मिलकर चलें, तो बच्चा आगे बढ़ेगा।
अगर हम एक-दूसरे को कमतर समझेंगे, तो बच्चा बीच में फँस जाएगा।

शिक्षक की अहमियत मानिए।
यह बात सिर्फ शिक्षकों के सम्मान की नहीं है, बच्चों के भविष्य की है।

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