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बिहार चुनाव ने बता दिया कि चिराग पासवान और उसकी पार्टी का भविष्य उज्जवल है कांग्रेस और राजद के नेताओं को उनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए

चिराग पासवान से राहुल और तेजस्वी को बहुत कुछ सीखना चाहिये, चिराग, राहुल और तेजस्वी अपनी पारिवारिक राजनीत के उत्तराधिकारी के रूप में आये हैं!
पहले हम चिराग की बात करते है रामविलास पासवान की मृत्यु होती है उस समय लोजपा के 6 सांसद थे, एक चिराग पासवान और दूसरे पशुपति नाथ पारस रामविलास के छोटे भाई शेष 4 और थे रामविलास की मृत्यु के बाद नेतृत्व की बात आई तो चिराग को छोड़कर शेष 4 पशुपति के साथ चले गये पार्टी टूट गई एक तरफ अकेला चिराग और दूसरी तरफ पशुपति नाथ और 4 सांसद पशुपति नाथ को मोदी सरकार में मंत्री पद मिला चिराग की उपेक्षा हुई लेकिन उसने एनडीए नही छोड़ा वह अकेला लड़ता रहा 2020 का विधान सभा आया उसने एनडीए में रहते हुये अपनी पार्टी के प्रत्यासियों को खड़ा किया उसने नीतीश की सभी सीटों पर प्रत्यासी उतारे उसका एक भी विधायक नही बना लेकिन नीतीश को काफी नुकशान हुआ चिराग अपने आपको मोदी जी का हनुमान कहता रहा उसने बता दिया कि वह जीत नही सकता लेकिन नुकसान करने की ताकत रखता है.
2024 का लोकसभा चुनाव आया चिराग का दबाब काम आया भाजपा ने एनडीए में चिराग को रखकर उसे 6 सीटें दी पांच पर उसे जीत मिली और पशुपति बिहार की राजनीति में अप्रसांगिक हो गये
चिराग की ताकत की कारण उसे इस बार 19 सीटों पर जीत हासिल हुई चिराग ने बुरे वक्त में भी राजनीतिक समझदारी दिखाई उसने मोदी जी का साथ नही छोड़ा उसने एनडीए नही छोड़ा और उसने आज अपने आपको बिहार में स्थापित कर दिया.
अब बात करते है तेजस्वी की वह बिना किसी एंजेंडा के चुनाव में उतर गया उसने कोई नीतीश के खिलाफ नैरेटिव सेट नही किया कॉन्ग्रेस के साथ समझौता भी ठीक से नहीं हो सका राहुल और तेजस्वी बिहार में एकजुटता का संदेश नही दे सके कई सीटों पर आधारित आपस मे ही लड़ रहे थे तेजस्वी और राहुल मुकेश साहनी के सामने नतमस्तक हो गये उसे उपमुख्यमंत्री बनाने के घोषणा कर दी उससे मुस्लिम वोटर जो कि गठबंधन का महत्वपूर्ण घटक था वह भी नाराज हो गया तेजस्वी ने पार्टी के अन्य बड़े नेताओं को घर बिठा दिया कोई दूसरा बड़ा नेता राजद में नही था जिसकी सभा बिहार में हो सके एक हेलीकॉप्टर तेजस्वी के पास था दूसरा मुकेष साहनी के पास दोनों लोग एक दिन में 10 से ज्यादा सभा करने के नाम पर सिर्फ सभा स्थल पर हाथ हिलाकर और वोट देने की अपील करके अगली सभा के लिए भाग जाते थे कांग्रेस के पास में बिहार राज्य का कोई बड़ा नेता नहीं था जिसको कांग्रेस ने पूरी जिम्मेदारी थी उसे बिहार की कोई समझ नहीं थी और तेजस्वी ने जिसे जिम्मेदारी थी वह राजस्व के नेताओं को खत्म कर रहा था कांग्रेस शुरू में जी कन्हैया कुमार को लेकर आगे चली वह चुनाव के दौरान कहां गायब हो गया पता ही नहीं चला तेजस्वी राहुल पूरे चुनाव में रणनीति नहीं बना पाए एक दूसरे के खिलाफ ही कभी-कभी अपने मंचों से बोलते रहे एक मंच पर तो राहुल ने ही कहा था की जो अंबानी के नौकर होते हैं वह उसकी शादी में जाते हैं जबकि तेजस्वी का पूरा परिवार अंबानी की शादी में गया था मतलब राहुल गांधी ने अपने ही गठबंधन को नीचा दिखाने के लिए जनता में बात की तेजस्वी और राहुल को चिराग से सीख लेनी चाहिए की उसने मोदी एनडीए नहीं छोड़ा और आज अपने आप को स्थापित कर दिया वहीं दूसरी और राहुल और तेजस्वी आज अपनी पार्टी का बिहार में अस्तित्व ढूंढ रहे हैं .
एक और बात चिराग दलितों की राजनीति करते हैं लेकिन माथे पर लंबा तिलक लगाते है हाथ में हमेशा कलावा भी बांध कर रहते है! उसने कभी भी सनातन परंपराओं का मुसलमानों और कथित अम्बेडकर वादियों के वोट लेने के लिए अपमान नहीं किया वहीं दूसरी तरफ राहुल तेजस्वी कथित दलितों के वोट लेने के लिए और मुसलमान के वोट लेने के लिए सत्य सनातन और सनातनियों का विरोध करते ही नजर आते हैं!

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