
बिहार चुनाव में रोजगार और पलायन बने बड़े मुद्दे, नई सरकार के सामने चुनौती गहरी
✍️ हरिदयाल तिवारी
बिहार के विधानसभा चुनावों में इस बार रोजगार और पलायन दोनों ही मुद्दे असाधारण रूप से प्रमुख रहे। पिछले चार दशकों में राज्य से मजदूरी और काम की तलाश में पलायन इतनी तेज़ी से बढ़ा है कि अब यह नई सरकार के लिए सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती बन चुका है।
1981 में केवल 10–15% परिवारों में कोई प्रवासी मजदूर था, जबकि 2017 तक यह आँकड़ा बढ़कर 65% पर पहुँच गया। हालिया रिपोर्टों के अनुसार 2023 में देश के चार सबसे व्यस्त अनारक्षित रेल मार्ग बिहार से शुरू होने वाले थे—यह स्पष्ट संकेत है कि राज्य का श्रमबल बड़ी मात्रा में बाहर जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार छोटी जोत, उद्योग व कारखानों की कमी और कमज़ोर मैन्युफैक्चरिंग बेस ने हालात को बदतर किया है। बिहार का 54% कार्यबल अब भी खेती पर निर्भर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 46% है। वहीं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में केवल 5% लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 11% है।
बिहार भारत के सबसे युवा राज्यों में से एक है—यहाँ आधे से अधिक लोग 15–59 वर्ष की कामकाजी आयु में आते हैं। इसके बावजूद गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की कमी राज्य के युवाओं को बाहर जाने के लिए मजबूर कर रही है।
इस चुनाव का सकारात्मक पहलू यह रहा कि रोजगार और पलायन पहली बार सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में मजबूती से शामिल थे। अब चुनौती यह है कि नई सरकार इन मुद्दों पर कितना ठोस और प्रभावी समाधान प्रस्तुत करती है।