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शिक्षा की वास्तविक स्थिति में सुधार लाना होगा।



“केवल ‘शिक्षा दिवस’ मनाना पर्याप्त नहीं — शिक्षा की वास्तविक स्थिति में सुधार लाना होगा”

रिपोर्टर भगवानदास शाह ✍️
जिला बुरहानपुर
मध्यप्रदेश


आज राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर पालक महासंघ, बुरहानपुर, प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की दीर्घकालीन चुनौतियों को उजागर किया और मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री-मध्यप्रदेश शासन (म.प्र.) को एक ज्ञापन सौंपकर तत्काल सुधार की मांग कि । इस अवसर पर समिति जिला अध्यक्ष श्रीमती सरिता राजेश भगत ने कहा यह सिर्फ एक दिन मनाने का मामला नहीं—यह बच्चों, पालकों, समाज और राज्य के भविष्य की जिम्मेदारी है।

समिति सदस्य धर्मेन्द्र सोनी ने इस और ध्यान दिलाते हुए बताया कुछ प्रमुख तथ्य प्रस्तुत किए , जो यह दर्शाते हैं कि हमारी शैक्षणिक व्यवस्था कितनी संवेदनशील अवस्था में है :

मध्यप्रदेश में सरकारी विद्यालयों की संख्या में तेज गिरावट आई है: वर्ष 2014-15 में लगभग 1,21,849 थे, जबकि 2023-24 में ये घटकर लगभग 92,439 हो गए—लगभग 24.1% की कमी।

विद्यालयों में नामांकन बेहद कम हो रहा है: वर्ष 2024-25 में राज्य में लगभग 5,501 सरकारी स्कूलों में कक्षा-1 में एक भी प्रवेश नहीं हुआ।

अधिकांश विद्यालय अधोसंरचना की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, चार में से एक सरकारी प्राथमिक/मध्यम विद्यालय बिजली और हाथ धोने की सुविधा से वंचित है।

विशिष्ट रूप से, बिजली सुविधा से वंचित विद्यालयों की संख्या आज भी बड़ीहै, एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 9,500 से अधिक विद्यालयों में बिजली नहीं है।

विद्यालयों का बंद हो जाना या समेकित (merge) हो जाना बच्चों तक शिक्षा पहुँचने का अवसर सीमित करता है—त्रिपक्षीय आंकड़े बताते हैं कि इससे दूरदराज के इलाकों में “विद्यालय बंद → बच्चों को जाने के लिए दूर” जैसी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सिर्फ “शिक्षा दिवस” मनाकर पीठ थपथपाना पर्याप्त नहीं है; हमें ठोस, तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने होंगे।

पालकों को होने वाली परेशानी के बारे में अताउल्ला खान ने कहा-
पालकों को बार-बार जाति प्रमाण पत्र, अन्य दस्तावेज़ अपडेट करने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है—जबकि एक बार डेटा विद्यालय/प्रशासन के पास उपलब्ध हो जाने के बाद इस तरह की पुनरावृत्ति न केवल भीड़भाड़ और मानसिक तनाव बढ़ाती है बल्कि बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है।

ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों के विद्यालय भवन जर्जर पड़ गए हैं; बिजली नहीं है; शिक्षक नहीं हैं—इनसे बच्चों की शिक्षा बाधित हो रही है, और कई बार पालक निजी विद्यालयों का सहारा ले रहे हैं।

प्रेमलता सांकले ने बताया, हमारी मुख्य माँगें है-
राज्य-स्तर पर बंद किए गए विद्यालयों की तत्काल समीक्षा हो; जरूरतमंद विद्यालयों को पुनः खोलने की प्रक्रिया शुरू हो।

जर्जर विद्यालय भवनों की मरम्मत या पुनर्निर्माण को प्राथमिकता दी जाए।

हर सरकारी विद्यालय में बिजली, पीने का पानी, शौचालय-सुविधा अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराई जाए।

विद्यार्थियों के प्रमाण पत्रों, जाति-दस्तावेज़ आदि का एकीकृत डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जाए—बार-बार दस्तावेज माँगने की प्रक्रिया समाप्त हो।

जिले-स्तर पर “पालक परामर्श एवं सहायता प्रकोष्ठ” गठित किया जाए, जिससे पालकों की आवाज सुनने और समाधान की प्रक्रिया जल्दी हो सके।

अंत में उपस्थित सदस्यों ने प्रमुखता से कहा शिक्षा दिवस हमें याद दिलाता है कि शिक्षा सिर्फ एक उत्सव या कार्यक्रम नहीं — एक जीवन­धारा, एक भविष्य­निर्माण की प्रक्रिया है। यदि हम आज बच्चों की समस्या नहीं समझेंगे, आवश्यकता अनुसार कार्यवाही नहीं करेंगे, तो यही उत्सव कल बेकार साबित हो सकता है।
हम पुनः आग्रह करते हैं कि शासन एवं सम्बंधित अधिकारी मौजूदा डेटा एवं वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखते हुए तुरंत सक्रिय हों, ताकि हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। इस अवसर पर श्रीमती सरिता भगत अध्यक्ष सचिव धर्मेंद्र सोनी उपाध्यक्ष अताउल्लाह खान अभय बालापुरकर पुनीत साकले रियाजुल्क अंसारी बसंत पाल बलराम सुखदाने डॉक्टर युसूफ साहब राजेश भगत आदि मौजूद थे।

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