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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद – आज़ादी के सच्चे मसीहा 137 वी जयंती पर विशेष लेख


भारत की आज़ादी की कहानी उन नेताओं के बिना अधूरी है जिन्होंने अपने जीवन का हर पल देश की सेवा में समर्पित कर दिया। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद उन्हीं में से एक थे — एक विद्वान, विचारक, स्वतंत्रता सेनानी और आधुनिक भारत के पहले शिक्षा मंत्री।

1888 में मक्का में जन्मे मौलानाzz आज़ाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था। उनका परिवार जल्द ही भारत लौट आया और कोलकाता में बस गया। कम उम्र में ही उन्होंने अरबी, फारसी और उर्दू में महारत हासिल कर ली। उनका ज्ञान इतना गहरा था कि लोग उन्हें "मौलाना" कहकर सम्मान देते थे।

आजाद ने अपनी कलम को स्वतंत्रता का हथियार बनाया। उन्होंने "अल-हिलाल" और "अल-बलाग" जैसी पत्रिकाओं के ज़रिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनकी लेखनी ने युवाओं के दिलों में आज़ादी की आग जलाई। अंग्रेज़ सरकार ने उनके अख़बार बंद कर दिए और उन्हें कई बार जेल भी भेजा गया, लेकिन वे झुके नहीं।

राजनीति में उनका सफर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरू हुआ। वे 1923 में कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने और आगे चलकर गांधीजी के सबसे भरोसेमंद साथियों में शामिल हुए। मौलाना आज़ाद ने हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता पर ज़ोर दिया और देश के बंटवारे का खुलकर विरोध किया। उनका मानना था कि भारत की असली ताकत उसकी एकता में है।

आज़ादी के बाद उन्होंने देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में नई दिशा दी। उनके प्रयासों से IIT, UGC, साहित्य अकादमी और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद जैसी संस्थाओं की स्थापना हुई। उन्होंने शिक्षा को हर बच्चे का अधिकार माना और कहा, “एक शिक्षित समाज ही सच्चे अर्थों में आज़ाद हो सकता है।”

मौलाना आज़ाद की आत्मकथा “India Wins Freedom” उनके जीवन के संघर्षों और भारत की आज़ादी की गाथा का सच्चा चित्रण है। यह किताब हमें बताती है कि आज़ादी सिर्फ़ राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी भी है।

22 फरवरी 1958 को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इस दुनिया से रुख़सत हो गए, लेकिन उनके विचार आज भी भारत के हर नागरिक के दिल में ज़िंदा हैं। उन्होंने कहा था —
“हमारा देश तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक शिक्षा हर दिल की ज़रूरत न बन जाए।”

राईट हेडलाईन्स ब्युरो

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