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प्रधानपति: एक अनोखा पद

संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद बैकफुट पर महिलाएं

कानपुर/चित्रकूट - प्रधानपति, एक ऐसा पद जो अपने आप में ही मजेदार है।। इसके लिए आपकी योग्यता आप की पत्नी की जीत पर तय की जाती है।यह पद इतना मजेदार है।इसकी संविधान निर्माताओं, कानूनकारों ने अपने लेखों में कल्पना तक नहीं कर सके।लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रधानपति का काम क्या होता है.प्रधानपति का काम होता है। संविधान में महिला आरक्षण सीट पर निर्वाचित हुई प्रधान पत्नी को खुश रखना।उनके अधिकारों का खुद प्रयोग करना। भारत के ग्रामीण इलाकों में प्रचलित ‘प्रधान-पति’ व्यवस्था को समझना हो तो ऐमज़ॉन प्राइम पर हाल ही में प्रसारित ‘पंचायत’ वेब सीरीज इसका एक सटीक उदाहरण है। इस सीरीज़ में गांव की आधिकारिक प्रधान मंजू देवी चुनाव तो लड़ती हैं लेकिन असल में केवल उनके नाम से चुनाव लड़ा जाता है, बाकी सब कुछ उनके पति बृजभूषण दुबे देखते हैं। मंजू देवी घर के भीतर चूल्हा-चौका संभालती हैं, प्रधानी के किसी भी काम से उन्हें कोई मतलब नहीं होता। ठीक यही हालत ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए पंचायत में आरक्षित सीटों पर होता है। चुनाव के समय घर की किसी महिला का नामांकन कर दिया जाता है और उसके बाद पूरी कार्यप्रणाली से उसे कोई मतलब नहीं होता। घर के पुरुष ‘प्रधान’ बन जाते हैं और असली प्रधान चूल्हे में उनके लिए भोजन बनाती रहती है, अपने क्षेत्र के किसी कामकाज में उसकी कोई निर्णायक भूमिका नहीं रहती। अक्सर देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं कम पढ़ी लिखी या अनपढ़ होती हैं।इसका फायदा उनके पति प्रधानापति बनकर उठा रहे होते हैं।ऐसे में उन्हें न कार्यप्रणाली, पंचायतीय कार्यों की जानकारी होती है न ही अपने अधिकारों और भूमिकाओं की, पुरुष सामाजिक पूंजी होने के कारण उनसे अधिक सक्षम महसूस करते हुए उन्हें आसानी से प्रतिस्थापित कर देता है।चुनाव के बाद महिला प्रधान केवल नाम की प्रधान रह जाती है और तमाम सरकारी कामों में पति अथवा ससुर सीधे तौर पर हस्तक्षेप करते हैं।

यूनिसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश की 10 में से 7 महिला प्रधान अपने संवैधानिक अधिकारों के बारे में नहीं जानती हैं। केवल 2 महिलाएं यह जानती हैं कि प्रधान के रूप से उनकी क्या भूमिकाएं और जिम्मेदारियां हैं। इस प्रकार अगर देखा जाए तो संविधान द्वारा दिए गए 33 प्रतिशत आरक्षण में महज़ 3 प्रतिशत महिलाएं असलियत में प्रतिनिधित्व करती हैं। बहुस्तरीय सरकारी तन्त्र में पंचायती राज व्यवस्था लोगों के सबसे नज़दीक होती है, इसमें सुधार करते हुए यह सोचा गया था कि सभी व्यक्तियों को निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी करने का अवसर मिलेगा, इससे लोकतंत्र की वास्तविक छवि उभरकर सामने आएगी लेकिन भारत में अभी भी जातीय सर्वोच्चता और पित्रसत्ता की जड़ें गहराई तक जमी हैं, प्रधान-पति जैसी व्यवस्थाएं इन्हीं का परिणाम हैं।

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