
मानसिक संकट में जी रहे लोगों की पीड़ा न बढ़ाए न्याय प्रणाली
नैनीताल, संवाददाता। हाईकोर्ट ने आत्महत्या के प्रयास के एक मामले में एक सरकारी कर्मचारी की दोषसिद्धि को यह कहते हुए रद कर दिया कि उसकी सजा नाममात्र की थी, लेकिन दोषसिद्धि के कलंक ने उसके रोजगार और - मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करके गंभीर पूर्वाग्रह पैदा किया है।
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि न्याय प्रणाली को पहले से ही मानसिक संकट में जी रहे लोगों की पीड़ा और नहीं बढ़ानी चाहिए। न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने शुक्रवार को नगर पालिका परिषद मंगलौर के कर्मचारी कमल दीप के खिलाफ निचली न्यायालय के निर्णय को रद कर दिया। उन्हें 21 फरवरी 2011 को उसके कार्यस्थल पर धारा 309 का अपराध करने के मामले में दोषी ठहराया गया था, जब उन्होंने माचिस की डिब्बी पकड़े हुए खुद पर मिट्टी का तेल डाल लिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि दीप को आत्महत्या की किसी भी प्रत्यक्ष कार्रवाई से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था और मेडिकल रिपोर्ट में उनके ऊपरी शरीर से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि कार्यस्थल पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था और अपने वरिष्ठों के खिलाफ शिकायतों से उत्पन्न आधिकारिक दबाव के कारण वह गंभीर तनाव में था। निचली अदालत इस महत्वपूर्ण पहलू को समझने में विफल रही है और इस प्रकार पुनरीक्षणकर्ता को दोषी ठहराने में एक स्पष्ट त्रुटि की है।