
कितना बदल गया इंसान, क्या हो गया भगवान ?
शिर्षक और गोपी फिल्म पर चिंतन से ही मानव का चरित्र का आकलन किया जा सकता है। हंस चुगेगा दाना तिनका कौआ मोती खायेगा। पूज्य विवेकानंद जी ने कहा था। मनुष्य तो ढेर सारे हैं, लेकिन मनुष्यता
विरले में।अंग्रोज ने कहा था कि कुछ जाति में न्याय की प्रवृत्ति नहीं होती। ये भी कहा गया है कुछ जाति कौबरा से भी विषैला होता है। कौबरा और एक विशेष जाति दोनों से मुकाबला एक साथ हो जाय तो पहले विशेष जाति को मारो बाद में कौबरा को। विशेष जाति के मीठा जहर का इलाज नहीं है, जबकि कौबरा का इलाज है।उस वाणी पर चिंतन करने पर मन विचलित सा हो जाता है। रक्षक ही भक्षक प्रबृत्ति का हो गया है। जितना ज्यादा पढ़ा लिखा उतना बेईमान, इमानदारी बचा भी है तो गरीब गौरबा में। उच्च पदासिन मानव ही मानवीय मूल्यों को तोड़ता है। जहां तक मेरा विचार है पति पत्नी का सम्बन्ध भी मधुर नहीं है। इतने लोग ऐश आराम सुख भोग में लिप्त हो गया है।पिता को भी वृद्धावस्था में अनाथालय में वही लोग रखते हैं जो उच्चासिन पद पर आसीन हैं। याने सर्टिफिकेटधारी है। इस शिक्षा से समाज और देश को क्या फायदा। हद तो तब पार देखने को मिलता है जब टीवी यूं ट्यूब पर अश्लील फोटो और विचार देखने और सुनने को मिलती हैं। जिसका असर बच्चे मन के सच्चे ,जो देश का भविष्य है, पर पड़ता है। अंधविश्वास और पाखंड के विचार से मिडिया खचाखच भरा हुआ है। विज्ञान अच्छा या बूरा पर विशेष मंथन की जरुरी है। कार्ल मार्क्स ने कहा था। भगवान एक सोची समझी साजिश है, जिसका भय दिखाकर गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का साधन है। यदि दुनिया भगवान ने बनाया तो एक ही जाति और एक ही भगवान भी होना चाहिए। फिर भिन्न-भिन्न भगवान और जाति क्यों। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई का भगवान और क्रिया कर्म अलग अलग क्यों।राम ,अल्लाह, वाहेगुरु एवं ईषुमसीह भगवान में से दुनिया किसने बनाई। सब का पूजा पाठ विधि व्यवस्था में भिन्नता क्यों। हिन्दू धर्म में माता पिता के लिए स्वर्ग में सभी साधन मुहैया कराई जाती है मृत्यु के बाद। उनके लिए अलग-अलग विधि विधान है। जबकि अन्य धर्मों में अलग-अलग। कुछ धर्म में अस्त शस्त्र धारी भगवान भी है तो कुछ में निहत्थे। भगवान को पूरी दुनिया में एक भाषा एक रिती रिवाज बनाकर एकीकरण करनी चाहिए। ताकि मानव मानव से नफ़रत न करें। एक धर्मावलंबी दूसरे पर छिटाकसी न करें।मजहब आपस में बैर करना क्यों सिखाती है। मजहब की आर में शासक बनने के लिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप क्यों लगता है। फिर ऐसे व्यक्ति धनी और बाहुबली कैसे बन जाता है।मानव मानवीय खून के प्यासा क्यों है। नारी पर बूरी नजर रखने वाले पर आदि शक्ति भस्म क्यों नहीं कर देती। दुख अबला को होता है सबला को नहीं। जो मानव अपने माता-पिता ,भाई-बहन ,अरोस - परोस ,सर -समाज एवं देश -विदेश का नहीं कल्याण करता ,उस पर भगवान का कहर क्यों नहीं पड़ता है। विश्व कल्याण की बात गौतम बूद्ध का संदेश है।वसुधैव कुटुम्बकम भी बौद्ध का ही कथन है। जिन्होंने अपने को भगवान नहीं कहा।न अपने को पूजने को कहा। हां इतनी बात जरूर कहा कि मेरी वाणी अच्छी लगे तो अपने जीवन में उतार कर प्रचार भी करना। जो वाणी नहीं जचे उसे मत मानना। ये दोहा क्यों नहीं मानते,
दया धर्म का मूल है ,पाप मूल अभियान।
तुलसी दया न छोरियों, जब लगी घट में प्राण।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय सांच है, वाके हृदय आप।
अष्टादस पुरानेषु,ब्यासस, वचन द्वयम्।
परोपकाराय पूण्याय,पापाय पर पीरनम ।
फिर इसपर अमल नहीं कर देश मे अशांति फैलाना पापी नहीं तो धर्मात्मा कहलाएगा।
सम्राट अशोक राजपाट त्याग कर विश्वशांति का संदेश, सर्वै भवन्तु सुखिन,सर्वे सन्तू निरामया का संदेश दिया। आज सभी सम्पत्ति एक ही व्यक्ति को हो, ये नारा है।आज लोग संन्यासी से सत्ता की ओर जा रहा है।किसे मानना चाहिए समझ नहीं आता।
जागेश्वर मोची मधुबनी संवाददाता।