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जननायक राजागणपति आर के स्थान्तरण से फेसबुक की हलचल के बीच जनता दिखी दुखी।

सिद्धार्थनगर।
जिले में हाल ही में हुए प्रशासनिक फेरबदल के बाद जिलाधिकारी राजा गणपति आर का स्थानांतरण चर्चा का विषय बना हुआ है।
जहां कुछ लोगों ने उनके स्थानांतरण को लेकर सोशल मीडिया पर खुशी जाहिर की, वहीं अधिकतर लोगों में निराशा और भावनात्मक जुड़ाव स्पष्ट रूप से दिखाई दिया।

गणपति जी अपने कार्यकाल में ऐसे अफसर साबित हुए, जिनसे जनता जब चाहे मिल सकती थी।
वे न तो भीषण गर्मी की परवाह करते, न बारिश की बाधा देखते — जनसमस्याओं के समाधान में हमेशा अग्रणी रहे।
गाँव-गाँव जाकर लोगों की परेशानियाँ सुनना, बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्यों की निगरानी करना, विद्यालयों की व्यवस्था सुधारना — ये सब उनकी कार्यशैली का हिस्सा था।


जनता से सीधा संवाद, खुले दरबार में सुनवाई

गणपति साहब ने सिद्धार्थनगर में जनदरबारों को सशक्त माध्यम बनाया।
हर सोमवार को कलेक्ट्रेट में होने वाले जनसुनवाई में वे स्वयं बैठकर हर फरियादी की बात ध्यान से सुनते और तत्काल कार्रवाई के निर्देश देते थे।
कई लोगों ने कहा कि उनके कार्यकाल में “कलेक्ट्रेट का दरवाज़ा आम जनता के लिए खुला था।”


विकास योजनाओं में तेजी, प्रशासनिक सख्ती भी बरकरार

उनके नेतृत्व में जिले में कपिलवस्तु पर्यटन परियोजनाओं पर तेजी आई।
करीब ₹6 करोड़ की योजनाएँ स्वीकृत हुईं, जिससे क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े।
सीमा क्षेत्र में अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हुई —
400 से अधिक अवैध ढाँचों को ध्वस्त कर प्रशासन ने कड़ा संदेश दिया।
शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता अभियानों में भी उन्होंने व्यक्तिगत रुचि दिखाई।


फेसबुक पर छिड़ी बहस: किसे मिला श्रेय?

स्थानांतरण की खबर के साथ ही फेसबुक पर बवाल मच गया।
कुछ समूहों ने इसे “अपनी जीत” बताया, तो कुछ ने कहा कि “यह राजनीति का परिणाम है।”
लोगों में श्रेय लेने की होड़ मच गई —
किसी ने लिखा, “हमारी मुहिम रंग लाई।”
तो किसी ने कहा, “जिन्होंने जिले को जगाया, उन्हें हटाया जा रहा है।”

हालांकि ज़मीनी स्तर पर अधिकांश लोग इस बदलाव से दुखी नज़र आए।
कलेक्ट्रेट से लेकर ग्रामीण इलाकों तक चर्चा रही —

“गणपति जी जैसे ईमानदार और जनसेवी अधिकारी कम ही आते हैं।”

जनता की भावनाएँ: विदाई में छलके आँसू

स्थानांतरण की सूचना के बाद गणपति जी ने जब जिले का चार्ज छोड़ा,
तो ग्रामीण इलाको शोक की लहर दौड़ गई।

एक वृद्ध किसान ने कहा —

“बाबूजी, आपने हमारा हाल सुना, गाँव की सड़क तक पहुँचे — अब कौन सुनेगा?”



गणपति जी ने मुस्कुराकर कहा —

“जहाँ भी रहूँगा, जनता का सेवक रहूँगा।”

सिद्धार्थनगर की जनता की जुबान पर एक ही नाम

आज भी जिले में लोग कहते हैं —

“वो दौर याद है जब गणपति साहब खुद मौके पर पहुँचते थे।”

उनका स्थानांतरण एक प्रशासनिक प्रक्रिया जरूर है,
पर सिद्धार्थनगर की जनता के लिए यह एक भावनात्मक विदाई बन गई है।
सोशल मीडिया पर बहसें भले थम जाएँ,
लेकिन जनता के दिलों में जननायक आर. आर. गणपति की छवि आज भी जिंदा है।

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