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हिटमैन

जब भी लगता है कि रोहित शर्मा अब ढलान पर है,
जब लोग कहना शुरू कर देते हैं- अब बल्‍ले में वह दम नहीं,
अब वह जादू नहीं, अब वह ताकत, क्‍लास नहीं,
उसी वक्त कुछ ऐसा घटता है जो क्रिकेट से कहीं बड़ा लगता है।

रोहित शर्मा की कहानी मुझे भीष्म पितामह के उस धनुर्धर “अर्जुन” की याद दिलाती है,
जो तब तक मौन रहता है जब तक युद्ध का शंख नहीं बजता।
लेकिन जैसे ही रणभूमि में पहला तीर निकलता है,
वह ऐसा वार करता है कि पूरा युद्ध ही पलटकर रख देता है।

रोहित भी वैसा ही है, शांत, संयमी, कभी-कभी उदास-सा दिखने वाला योद्धा,
जिसे देखने वाले कहते हैं, “अब इसमें पुरानी चमक नहीं रही।”
और तभी, अगले ही मैच में वो वही चमक लेकर लौटता है,
जो पूरे स्टेडियम को सूरज की तरह रोशन कर देती है।

कभी वह 2019 वर्ल्ड कप की तरह पांच-पांच शतक लगाता है,
तो कभी युवाओं के फॉर्मेट में तुरूप का इक्‍का बन जाता है,
तो कभी ऐसा लीडर बनता है जो टीम के ल‍िए सेनापती भी खुद ही रहता है,

रोहित की कहानी किसी पुराने बरगद के पेड़ जैसी है,
जिसे लोग सूखा समझ लेते हैं,
लेकिन एक बारिश आती है और उसकी जड़ों से नई हरियाली फूट पड़ती है।

कई बार आलोचक उसे चुप कराने की कोशिश करते हैं,
मगर रोहित कभी शब्दों से जवाब नहीं देता,
वह जवाब देता है बल्ले से,
वह बल्ला जो कभी-कभी देर से बोलता है,
पर जब बोलता है, तो इतिहास लिखता है।

और यही वजह है कि रोहित शर्मा सिर्फ़ एक खिलाड़ी नहीं,
वह उस धैर्य का प्रतीक है जो आज के शोरगुल भरे दौर में लुप्त होता जा रहा है।

क्योंकि जिसे सबने ख़ामोश समझ लिया,
वह ही अक्सर सबसे गूंजदार वापसी करता है।
और जब वह लौटता है,
तो मैदान में सिर्फ़ गेंद नहीं उड़ती,
बल्कि आलोचना भी राख बनकर हवा में बिखर जाती है।

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