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आंबेडकर की दूसरी पत्नी की जाति पर तीखी बहस: कबीर उपनाम या ब्राह्मण? वहीं, बहनों के विवाह पर ऐतिहासिक तथ्य चौंकाते हैं:

तथाकथित संविधान निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर के निजी जीवन को लेकर वर्तमान में 'अंबेडकरवादी' और आलोचकों के बीच एक नया वैचारिक युद्ध छिड़ गया है। यह विवाद उनकी दूसरी पत्नी डॉ. सविता अंबेडकर (शारदा कबीर) की जाति पर केंद्रित है, जिसके साथ ही उनकी बहनों के विवाह को लेकर स्थापित ऐतिहासिक तथ्य भी चर्चा के केंद्र में आ गए हैं।

विवाद का केंद्र: 'कबीर' उपनाम और ब्राह्मण जाति का दावा-मुख्य रूप से अंबेडकरवादियों का एक वर्ग ये दावा करता है की करता है कि डॉ. अंबेडकर की दूसरी पत्नी ब्राह्मण थीं। उनका तर्क है कि उनका उपनाम 'कबीर' था और यह भी ब्राह्मण जाति समूह में पाया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे 'नेहरू' उपनाम। यह समूह जोर देता है कि 'कबीर' एक ऐसा उपनाम हो सकता है जो किसी पारंपरिक जाति का संकेतक नहीं है। हालांकि, स्थापित ऐतिहासिक और जीवनी संबंधी स्रोत इस बात की पुष्टि करते हैं कि डॉ. सविता अंबेडकर (जन्म शारदा कबीर) मूल रूप से एक मराठी परिवार से थीं। कुछ विद्वान बताते हैं कि वे चितपावन ब्राह्मण समुदाय से थीं। यह विरोधाभास आज भी सामाजिक-राजनीतिक बहस का एक प्रमुख विषय बना हुआ है, जहाँ एक पक्ष इसे 'झूठ' बताकर नकार रहा है।

ऐतिहासिक प्रमाण: अंबेडकर की बहनों के विवाह 'सवर्ण' परिवारों में-इस विवाद के बीच, डॉ. अंबेडकर की बहनों के विवाह के बारे में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ऐतिहासिक जानकारी एक और गंभीर बहस को जन्म दे रही है। आधिकारिक स्रोतों से यह स्पष्ट होता है कि डॉ. अंबेडकर के पिता रामजी सकपाल ने अपनी बेटियों के विवाह तत्कालीन सवर्ण समुदायों में किए थे:
• गंगाबाई का विवाह भोईनी ब्राह्मण परिवार के लाखवडेकर से हुआ था।
• मंजुलाबाई का विवाह ब्राह्मण पारिंदकर परिवार में हुआ था।
• तुलसाबाई का विवाह ब्राह्मण कांटेकर परिवार में संपन्न हुआ था।
एक अन्य बहन रामाबाई का विवाह क्षत्रिय मराठा मालवणकर परिवार में हुआ था।
अम्बेडकर उपनाम खुद भी भीमराव सकपाल को उनके ब्राह्मण शिक्षक ने दिया था I

यह जानकारी डॉ. अंबेडकर के परिवार की सामाजिक स्थिति को दर्शाती है। अंबेडकर के आलोचकों का कहना है कि यह तथ्य यह संकेत देता है कि डॉ. अंबेडकर के परिवार में सामाजिक गतिशीलता और उच्च जातियों के साथ संबंध स्थापित करने की इच्छा थी। डॉ. अंबेडकर के निजी जीवन से जुड़े ये ऐतिहासिक बिंदु आज भी उनके अनुयायियों और विरोधियों के बीच गहन वैचारिक मतभेद और तीखी बयानबाजी का कारण बने हुए हैं।

इसलिए इन तथाकथित अम्बेडकर वादियों के द्वारा चिल्ला चिल्ला कर ब्राह्मण समाज को बदनाम करने से कुछ हाशिल नहीं होना है, तथ्यों और इतिहास के पन्नो से तो यही साबित होता है की अम्बेडकर को खुद उनके समाज पर भरोषा नहीं था और ताउम्र एक अवसाद में जिंदगी जीते रहे हैं जहाँ पर सिर्फ और सिर्फ फरेब के आलावा कुछ नहीं था I

✍️ — महेश प्रसाद मिश्रा, भोपाल

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