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रेबारी भी एक घुमंतू समुदाय इनका मुख्य रूप से भेड़ बकरी ऊंट पर अपना जीवन टीका होता हैं

आज दिन जो घुमंतू समुदाय में एक रेबारी समाज ऐसा समाज हैं इस समाज के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता हैं ये समूदाएं भेड़ बकरी ऊंट का पालन करते हैं।
ओर ये मालवा यानि mp तक जाते हैं और अक्टूबर से लेकर जून लास्ट जुलाई तक वापिस लौटते हैं इनके पास ज्यादा भेड़ बकरी होते हे लेकिन इनका कहना हैं कि हम जब गांव से निकलते हैं तो पता नहीं होता है कहां रुकने इंतजाम होगा चलते रहते हैं जहां दिन अस्त होता हैं वहां रुकना होता हैं।आज के बीस साल पहले जब जाते ओर आज जब जाते हैं उस समय में लोगों के रहन सहन व्यवहार में बहुत परिवर्तन आया हैं पहले लोग हमें घर बुलाते गांव में 2/2 दिन तक रुकते तो लोग हमें खाना भी खिला देते थे आज हम लोगों की स्थिति ये हैं कि खाना पता नहीं रात मुश्किल निकलता हैं। आजकल चवने टाइप लोग आते बोलने लगते हैं एक बकरा दो नहीं तो वापिस निकले कई बार लड़ाई का सामना करना पड़ता हैं । ऐसे धमकिया मिलती रहती हैं कभी कभी देना भी पड़ता हैं पहल अभी के लोगो मे रात दिन का फर्क हैं ये गिजिटल फोन की दुनिया में लोगों अपना पान खो दिया हैं जहां जहां जाते वहांपे लोग रुकने नहीं देते हैं।
ताजुब तो ये हैं जब वापिस गांव लौटते हैं तो वो ही हाल हैं में केवल खुद के रहने के लिए घर होते आजकल जैसे जैसे जनसंख्या बड़ी है घरों में जगह कम हुई हैं उनको गांव के बाहर रखना पड़ता हैं क्यों कि इतने भेड़ों को कहा ले जाओ तो इनको चारागाह के अलावाह ओर कोई जगह नहीं होती हे वहां पर कुछ गांव के नेता लोग हमें परेशान करते रहते हैं उनको मुद्दे की जरूरत होती हे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता हैं।
मैने जब महिलाओं से बात की महिलाये तो इसे बात कर रही थी कि उनको कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो इस मुझे समझ नहीं आया कि उन्होंने कहा जब हम भेज चराने जाते थे कोई प्रेगनेट महिला हैं उनके बारे पूछा तो बताया कि कई महिलाओं की डिलेवरी रस्ते में करवानी पड़ती ओर हां ताजुब की बात हे कि उस महिला को दूसरे तीसरे दिन भेड़ों के साथ चलना होता था ये उन महिलाओं की कहानी है जिनके साथ ये हुआ हैं खैर अभी ऐसा नहीं होता हैं

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