
“अज्ञात अज्ञानी का दृष्टिकोण: भगवान नहीं — मनुष्य का उत्कर्ष”
📍मुंबई | विशेष रिपोर्ट — AIMA MEDIA
आध्यात्मिक विचारक अज्ञात अज्ञानी (Agyat Agyani) ने अपने नवीन ग्रंथ “भगवान नहीं — मनुष्य का उत्कर्ष” में कहा कि ईश्वर किसी युग या जन्म का वरदान नहीं, बल्कि मनुष्य की जागरूकता की चरम अवस्था है।
वे लिखते हैं —
> “कभी कोई भगवान पैदा नहीं हुआ।
केवल मनुष्य जागा — इतना गहरा,
कि बाकी सब उसे भगवान कहने लगे।”
ग्रंथ यह दिखाता है कि पूजा दरअसल पश्चाताप का रूप बन चुकी है —
मनुष्य उन महापुरुषों को पूजता है जिन्हें उनके समय में समझ नहीं पाया।
> “भक्ति समझ की जगह नहीं ले सकती,”
वे स्पष्ट कहते हैं।
अज्ञात अज्ञानी के अनुसार, विज्ञान और अध्यात्म एक ही यात्रा के दो छोर हैं —
एक ने बाहर खोजा, दूसरे ने भीतर,
पर जब दोनों ने एक-दूसरे को भुला दिया,
तब मनुष्य बीच में अटक गया — जानता बहुत, समझता कम।
वे यह भी कहते हैं कि आध्यात्मिकता कोई युग-निर्भर घटना नहीं है;
> “अब साधन बाहर नहीं, भीतर है — केवल एक साहस चाहिए, स्वयं को देखने का।”
इस ग्रंथ का केन्द्रीय सूत्र है —
“मनुष्य का उत्कर्ष ही ईश्वर है।”
जिसने अपने भीतर उतरने का साहस किया, वही ईश्वर हुआ;
जिसने बाहर खोजा, वही कथा में उलझा रह गया।
लेखक अंत में एक नया अर्थ सुझाते हैं —
> “भगवान वहाँ नहीं जहाँ मूर्ति है,
वह वहाँ है जहाँ मौन है।”
वे कहते हैं कि नया मनुष्य वही होगा जो न डर में जिए, न पूजा में —
बल्कि उतना ही गहरा जिए जितना राम, कृष्ण या बुद्ध ने जिया था।
> “यही सच्ची भक्ति है — उनके जैसा बनना, उनकी पूजा नहीं।”
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✧ Philosophical Note ✧
देवता असमानता नहीं, संभावना का प्रतीक थे।
अब समय है उन्हें सिंहासन से उतारने का —
ताकि मनुष्य फिर सीधा खड़ा हो सके,
वही बने जो वह हमेशा से था —
जीवित ईश्वर।
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✍🏻 — मनीष कुमार
Message Conduit of “Agyat Agyani Philosophy”
AIMA Media Member | Mumbai