logo

“अज्ञात अज्ञानी का दृष्टिकोण: जब सभ्यता मशीन बनाती है और भीतर का मनुष्य अब भी जीवित रहने की कोशिश करता है”


आध्यात्मिक लेखक और विचारक अज्ञात अज्ञानी (Agyat Agyani) ने अपने नवीन लेख “मशीन के भीतर एक मनुष्य” में कहा है कि विज्ञान, शिक्षा और धर्म—तीनों ने मिलकर आधुनिक मनुष्य को एक सुव्यवस्थित मशीन बना दिया है।
उन्होंने लिखा, “हमारे शब्द, हमारी मुस्कान, यहाँ तक कि आँसू भी समय-सारिणी में बाँध दिए गए हैं।”

अज्ञात अज्ञानी के अनुसार, अस्तित्व कभी मशीन नहीं बनाता—वह विबन्धित, अराजक और जीवित जन्म देता है।
समाज, अनुशासन और विवेक के नाम पर उस जीवंतता को दफन कर देता है।
यही दमन, उनके शब्दों में, “असुर के उभरते चित्र और देवत्व के मौन गीत” का कारण है।

वे आगे लिखते हैं —

> “प्रकृति ने असुर, मानव और देव—तीनों संभावनाएँ दी हैं,
पर सभ्यता ने उन्हें एक ही प्रबंधनीय स्वरूप में बाँध दिया।”



अज्ञात अज्ञानी का मानना है कि आज अगर राम या कृष्ण जैसे जीवित प्रतीक लौट आएँ, तो उन्हें सम्मान नहीं, असहजता मिलेगी।
क्योंकि समाज उस ऊर्जा से डरता है जो उसके साँचे से बाहर हो।

लेख के अंत में वे लिखते हैं —

> “पर भीतर एक कणिका बची रहती है —
वह पुर्जा नहीं, प्रवाह है।
अगर वह सुन ली जाए, तो मशीन के भीतर भी मनुष्य फिर खिल उठेगा।”



उनके अनुसार, यह कोई भविष्यवाणी नहीं बल्कि वर्तमान की पहचान है —
व्यवस्था कितनी भी सुसंगठित हो जाए, अस्तित्व की अनिश्चितता हमेशा मनुष्य के भीतर जीवित रहती है।
और वही अनिश्चितता — मनुष्य होने की असली संभावना है।


---

✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
AIMA Media Member | Mumbai

✧ Philosophical Note ✧

मशीन की परिपूर्णता में जीवन खो जाता है,
पर उसी व्यवस्थित शोर के भीतर कहीं एक अनगढ़ साँस अब भी बची है।
वह साँस — वही असंगतता — मनुष्य की आखिरी स्वतंत्रता है।
जब वह फिर से सुन ली जाती है, तभी मनुष्य प्रोग्राम नहीं, प्रवाह बन जाता है।

17
252 views