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“अज्ञात अज्ञानी का नया दर्शन: जब विचार शांत होते हैं और भीतर की शून्यता जागती है — तभी जन्म लेता है वास्तविक ज्ञान और विवेक” 📍मुंबई | विशेष रिपोर्ट —

📍मुंबई | विशेष रिपोर्ट — AIMA MEDIA

“ज्ञान जोड़ने की नहीं, घटाने की प्रक्रिया है।”
आध्यात्मिक चिंतक अज्ञात अज्ञानी (Agyat Agyani) ने कहा कि वास्तविक विवेक और संस्कार तभी सार्थक हैं, जब वे भीतर की शून्यता से उत्पन्न हों — न कि बाहरी शिक्षाओं या विधियों से आरोपित।

उनकी नयी दार्शनिक विचारधारा “भीतर की शून्यता से जन्मा ज्ञान” उपनिषद और पतंजलि योगसूत्र की धारा से जुड़ी है, पर आधुनिक व्याख्या प्रस्तुत करती है।
वे कहते हैं —

> “जब विचार रुकते हैं, तभी देखना शुद्ध होता है।
ज्ञान तब नहीं आता जब हम खोजते हैं,
बल्कि जब मन शांत हो जाता है।”



उनके अनुसार, यह दृष्टि ओशो, जे. कृष्णमूर्ति और ज़ेन की परंपराओं को जोड़ती है, पर एक नए बिंदु पर ले जाती है — जहाँ कोई तकनीक नहीं, केवल साक्षीभाव बचता है।

इस परिप्रेक्ष्य में “शून्यता” का अर्थ नकार नहीं, संभावना की गर्भावस्था है — जैसे बीज मिट्टी में खोकर अंकुरित होता है।


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Signature:
✍🏻 — Agyat Agyani (अज्ञात अज्ञानी)
AIMA Media Member | Mumbai & Sirohi

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