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मूलतापी की पुकार — मां ताप्ती के प्रवाह की रक्षा हो मां ताप्ती केवल नदी नहीं, भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं

🌊 मूलतापी की पुकार — मां ताप्ती के प्रवाह की रक्षा हो

मां ताप्ती केवल नदी नहीं, भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं
मूलताई (मूलतापी), जनजाति बाहुल्य जिला बैतूल की वह पवित्र भूमि है जहाँ से आदिगंगा, पुण्यसलिला, सूर्यपुत्री मां ताप्ती (तापी) का शुभ उद्गम होता है। यही वह स्थान है जहाँ से मां ताप्ती का निर्मल प्रवाह मध्यभारत से होते हुए अरब सागर तक जाता है। यह केवल भौगोलिक प्रवाह नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और जीवन का अविरल स्रोत है।
मां ताप्ती केवल बैतूल जिले की नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति की आत्मा और आस्था की प्रतीक हैं।
उनकी धारा भारत की सनातन चेतना, श्रद्धा और जीवनदायिनी परंपरा की साक्षी है।

अतिक्रमणों की बेड़ियों में बंधी मां ताप्ती

दुर्भाग्यवश, आज इसी मां ताप्ती के पवित्र तटों पर अतिक्रमणों का जाल फैल चुका है।
नदी का स्वाभाविक प्रवाह बाधित हो रहा है, तटों की पवित्रता नष्ट हो रही है और मां ताप्ती की धारा अपनी वेगमयी पहचान खोने लगी है।
यह केवल भूमि पर नहीं, बल्कि हमारी संवेदनाओं, श्रद्धा और कर्तव्यबोध पर अतिक्रमण है।

राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता इस समस्या की सबसे बड़ी जड़ है।
किसी भी दल के जनप्रतिनिधि इस विषय पर केवल दर्शन, पूजन और घोषणा तक सीमित रहते हैं।
तीर्थस्थल पर सिर झुकाना सबको सुहाता है, लेकिन अतिक्रमण हटाने की बात आते ही वोट बैंक, पद की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वार्थ उनके कदम रोक लेते हैं।
अब जनता को ही आवाज़ बुलंद करनी होगी

समय आ गया है कि जनता स्वयं आगे आए और अपनी आवाज बुलंद करे।
कई लोग इसलिए मौन हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि “इससे हमें क्या लेना देना।”
कई व्यापारी इसलिए नहीं बोलते क्योंकि उन्हें शत्रुता पालने का भय है,
और कई ठेकेदार इसलिए चुप हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं उनके टेंडर रद्द न हो जाएँ।

परंतु यह मौन कब तक चलेगा?
क्या हम अपनी संस्कृति को राजनीतिक स्वार्थों और निजी भय के आगे यूँ ही कुर्बान कर देंगे?

सच्चा समाधान: निष्पक्षता और संवेदनशीलता के साथ संरक्षण

यह भी स्मरण रखना होगा कि केवल गरीबों और वंचितों के छोटे अतिक्रमण तोड़ देने से मां ताप्ती का मार्ग नहीं खुलेगा।
ऐसे दिखावे के कार्यों से मां का प्रवाह स्वच्छंद नहीं होगा।
यदि वास्तव में मां ताप्ती को मुक्त करना है, तो आवश्यक है कि पूरा उद्गम क्षेत्र — चाहे उसमें कोई भी प्रभावशाली व्यक्ति, संस्था या राजनैतिक हित क्यों न जुड़ा हो — पूर्ण रूप से अतिक्रमणमुक्त किया जाए।

मां ताप्ती का पावन मार्ग संपूर्ण श्रद्धा और निष्पक्षता के साथ खोला जाए,
और इस क्षेत्र को अन्य महान तीर्थों की भाँति संरक्षित, व्यवस्थित एवं सौंदर्ययुक्त रूप दिया जाए।

संस्कृति का संरक्षण ही पीढ़ियों का पोषण है

याद रखिए — संस्कृति का संरक्षण ही आने वाली पीढ़ियों का पोषण है।
यदि आज हमने मां ताप्ती के प्रवाह की रक्षा नहीं की, तो कल हमारी संततियाँ हमें दोष देंगी कि हमने अपनी ही जड़ों को नष्ट होने दिया।

मूलतापी केवल एक तीर्थ नहीं — यह हमारे अस्तित्व, हमारी अस्मिता और हमारी सभ्यता की धारा है।
इसलिए अब समय है कि प्रशासन, जनप्रतिनिधि और आम नागरिक एकजुट होकर इस पावन स्थल को अतिक्रमणमुक्त करें,
मां ताप्ती की अविरल धारा को उसका मूल स्वरूप लौटाएं,
और इस पुण्य भूमि को आगामी पीढ़ियों के लिए संरक्षित एवं सुरक्षित करें।
मां ताप्ती: जीवन की आत्मा, संस्कृति की चेतना

मां ताप्ती केवल नदी नहीं हैं —
वह जीवन की आत्मा, संस्कृति की चेतना और भारत की आध्यात्मिक जीवनरेखा हैं।
उनकी रक्षा करना केवल पर्यावरण की नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और सभ्यता की रक्षा है।

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