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रामलीला उद्घाटन समारोह में पूर्व निर्देशक के बयान से मचा विवाद, पत्रकार की स्वतंत्रता पर उठे गंभीर सवाल



बमोली (द्वारीखाल)।
ग्राम बमोली में आयोजित “श्री रामलीला महोत्सव 2025” के उद्घाटन समारोह के दौरान एक अप्रत्याशित विवाद खड़ा हो गया, जब रामलीला समिति के पूर्व निर्देशक ने मंच से पत्रकार जयमल चंद्रा के खिलाफ तीखी टिप्पणी की।
पूर्व निर्देशक के इस बयान ने न केवल आयोजन की गरिमा को प्रभावित किया, बल्कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

कार्यक्रम के दौरान पूर्व निर्देशक ने कहा कि “कुछ लोग समाचार के नाम पर समाज को बाँटने का काम कर रहे हैं,” जिस पर कई लोगों ने आपत्ति जताई। उपस्थित ग्रामीणों के अनुसार, यह बयान सीधे तौर पर पत्रकार जयमल चंद्रा की ओर इशारा करता प्रतीत हुआ, जिन्होंने हाल ही में बमोली में रामलीला मंचन पर परिवारवाद और दबाव की बात उठाते हुए समाचार प्रकाशित किया था।

पत्रकार ने कहा—“सत्य लिखना अपराध नहीं”

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पत्रकार जयमल चंद्रा ने कहा कि —

“मैंने केवल वही लिखा जो गाँव के भीतर चल रही सच्चाई और जनभावनाओं पर आधारित था। यदि सत्य लिखना अपराध है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। रामलीला जैसी धार्मिक परंपरा को व्यक्तिगत विरोध का माध्यम बनाना अनुचित है।पूर्व निर्देशक को आगे करके
टम्टा परिवार व भूपेंद्र परिवार पूरे गाँव को दो भागो मे बाटने की कोशिश कर रहा है जबकि राकेश व भूपेंद्र प्रवासी है।

पत्रकार ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मंचीय बयान न केवल व्यक्ति विशेष पर हमला हैं, बल्कि यह ग्रामीण पत्रकारों के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता को चोट पहुँचाते हैं।

गाँव में बढ़ी चर्चा, सामाजिक एकता पर भी असर

इस घटना के बाद गाँव में माहौल तनावपूर्ण हो गया है। कई ग्रामीणों ने पूर्व निर्देशक के बयान को अनुचित बताते हुए कहा कि रामलीला का मंच धर्म, सद्भाव और मर्यादा का प्रतीक है—उसे व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का मंच नहीं बनना चाहिए।

ग्राम के बुद्धिजीवियों का कहना है कि यदि पत्रकारों को सच्चाई लिखने पर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाएगा, तो यह समाज में डर और अविश्वास का वातावरण पैदा करेगा।

पत्रकारिता की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक दबाव

इस घटना ने एक बार फिर पत्रकारिता की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक दबाव के बीच की खाई को उजागर कर दिया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत पत्रकार अक्सर बिना सुरक्षा और सीमित संसाधनों के साथ समाज की सच्चाई सामने लाते हैं, लेकिन जब वही सच्चाई कुछ लोगों को असुविधाजनक लगती है, तो वे पत्रकार को निशाना बनाते हैं।

सवाल यह है कि —

क्या किसी पत्रकार को सच लिखने की सजा दी जानी चाहिए?
क्या धार्मिक मंचों से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर हमला करना उचित है?
और क्या समिति का “अपना मान-सम्मान बचाने” के लिए किसी की स्वतंत्रता पर दबाव डालना न्यायसंगत है?

बमोली की रामलीला जहाँ श्रीराम की मर्यादा और सत्य की प्रतीक है, वहीं इस वर्ष यह आयोजन पत्रकारिता, सत्य और आत्मसम्मान की भी परीक्षा बन गया है।
यदि समाज अपने ही पत्रकारों पर सवाल उठाने लगे, तो यह केवल व्यक्ति की नहीं बल्कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की भी हार होगी।

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