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शीर्षक:-🌹 "कांटे तरस रहे प्यार को"🌹

🌹 शीर्षक : कांटे तरस रहे प्यार को 🌹
(छंद शैली में श्रृंगार रस की मौलिक रचना)

१️⃣
फूलों से भी प्यारे थे वो, अब दूरी का जाल बुनें,
हवा में महक थी उनकी, अब अश्कों में धुनें।
कांटे भी पूछें हाल मेरा, वो मुस्कान कहाँ खोई,
प्यार की वो पगडंडी अब, तन्हाई में सो गई।

२️⃣
आँखों की झील सूखी, सपनों का नाव डूब गया,
मन का मोर थम गया जैसे, नर्तन सारा टूट गया।
दिल की धड़कन अब कहे, उनका नाम पुकार,
कांटे भी अब रो पड़ते, जब होता नहीं वह प्यार।

३️⃣
मलमल से लिपटे शब्द,अब चुभन सी महसूस है,
स्मृतियों की बेलों पर, अब बस काँटों की धूस है।
चाँद भी उदास हो गया, जब छाया नहीं वह रूप,
सांसों में सुलगता धुआँ, यादों का घना अनूप।

४️⃣
साजन का वादा टूट गया, जैसे सवेरे का सपना,
पायल की ध्वनि थम गई, रह गया मौन अपना।
कांटे तरस रहे प्यार को, फूलों की मुस्कान गई,
मन मंदिर में दीप जले, लौ भी अब जान गई।

५️⃣
छाँव में थी जो मोहब्बत, अब धूप में साया बन गई,
बातों में थी जो मिठास, अब जहर की माया तन गई।
हर आहट में लगता है, जैसे वो लौटेंगे फिर कभी,
पत्थर भी पिघलते नहीं, आँसूओं में दिखे छवि।

६️⃣
रातों में तारों की बस्ती, अब खामोश लगती है,
दिल की धड़कन उनकी, पहचान से जगती है।
कांटे कहते रोज मुझसे, वो दिलबर कब लौटेंगे,
प्यार की वो तपती राहें, अब कैसे किससे सजेंगे।

७️⃣
सूरज भी शरमाया जब, देखा उसका चेहरा,
मन में आग लगी जैसे, पर छिप गया वह पहरा।
वो मुस्कान थी गुलाब सी, अब दर्द की छाया है,
कांटे तरस रहे प्यार को, बस यादों की माया है।

८️⃣
सांसों में उनकी खुशबू, अब आहों में ढलती है,
बातों में उनकी प्रतिध्वनि, अब तन्हाई पलती है।
दिल में उठती हूक कहे, "क्यों छोड़ा था यूँ मुझे?"
कांटे अब भी पूछ रहे, “वो आएँगे कब सज के?”

९️⃣
वो मौसम, वो सावन, सब बिन रंग के रह गए,
उनकी आँखों के जादू, अब धुँधले से बह गए।
प्रीत की वो पायल टूटी, स्वर सूने गलियारों में,
कांटे तरस रहे प्यार को, मन रोता है अंगारों में।

🔟
चांदनी भी अब ठहरी, दिल की झीलों में डूब गई,
सपनों की नाव अकेली, तन्हाई में सूख गई।
वो आएं तो फिर खिलेगा, मन का सूखा बाग,
कांटे भी देंगे एक दिन खुशबू, मिट जाएगा विराग।

११️⃣
स्मृतियों के तार झनकते, जब भी मैं उन्हें पुकारूं,
हवाओं से संवाद करूं, जब भी उनको मैं प्यार करूं।
वो लौटें तो जीवन फिर से, संगीत बन जाएगा,
कांटे तरस रहे प्यार को, गुलशन फिर खिल जाएगा।

१२️⃣
समय की धूल में उड़ते, वो कदमों के निशान,
अब भी ढूंढ रहा मन ही मन, वो मीठे अरमान।
प्रेम दीप जले तो फिर, अंधियारा हार मान ले,
कांटे भी गुनगुनाएँ तब, जब वो मेरा नाम ले।

१३️⃣
भूले नहीं वो लम्हे जो, दिल में आग सुलगाते हैं,
हर अश्कों में वो साये अब, गीत अधूरे गाते हैं।
कांटे भी सजदे में झुकें, जब यादों की बेला आए,
प्रेम अमर है इस जग में, चाहे जो भी साया छाए।

१४️⃣
मन मंदिर में अरमानों की, घंटी अब बजती है,
वो आएं तो हर साँसों में, फिर जीवन सजती है।
कांटे भी तब फूल बनें हैं, जब देखूँ उनका किरदार,
प्यार सदा ही अमर रहेगा, जब तलक है अंबर सागर।

✒️ यह मौलिक रचना कवि -:
सुरेश पटेल "सुरेश" 🖌️🖌️ की है,
किसी अन्य कवि की कृति से ली हुई नहीं है।

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