logo

भारत में अराजकता

जब देश में न्यायपालिका खुद असुरक्षित है तो आम जनता कितना सुरक्षित होंगे, सोचने की बात है। जबकि भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है। जिसका गवाह संविधान की प्रस्तावना है।जब एक वकील संविधान को नकार कर मार करने पर तैयार हो जाय। भला न्याय कैसे करते थे। जब एक विद्वान अधिवक्ता ही संविधान की मर्यादा क्या है ,नहीं जानता है आम जनता की सोच क्या होगी। बाहर देश जाने पर बौद्ध देश से आने पर सम्मानित होते हैं। शांति देश भारत को विश्व मानता है ।युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए। क्या संविधान में ये कहीं लिखा है मार करना गाली देना। फिर न्यायालय के रक्षक वकील ही मर्यादा का उलंघन कर देश में अशांति फैलाना चाहता है, देश की स्थिति क्या होगी। ये सभी प्रबुद्ध नागरिक को सोचनी चाहिए।इतनी बड़ी घटनाएं आजादी के बाद प्रथम बार हुई है।
दुख की बात है सरकार उस पर कोई संज्ञान नहीं ली है। इसी प्रकार की घटनाएं की पुनरावृत्ति भी हुई है। शासन के पीछे पीछे चलना ही अनुशासन है। संविधान की भय से लोग ग़लत काम नहीं करते हैं। यदि संविधान की भय समाप्त हो जाय तो अराजकता फैलने पर देश की सुरक्षा कौन करेगा। वकील के साथ एंकर भी झाल बजा रहा है। जनता भी सही ग़लत कहने से हिजखती है। किसी भी बीमारी का सहमय इलाज यदि न हो तो असाध्य रोग हो जाता है। जिसका इलाज असंभव हो जाता है।
अस्तू मैं सरकार, बुद्धिजीवियों, पदाधिकारियों एवं आम जनता से निवेदन कर रहा हूं की शांति अमन चैन की दिशा में देश हित में सोचें। मानव जाति सभी जीव पर शासन करता है। मानव जाति बने जाति नहीं।

428
10114 views