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सारंडा पर सियासी साज़िश का साया: वर्ल्डलाइफ सेंचुरी के नाम पर आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में

सारंडा पर सियासी साज़िश का साया: वर्ल्डलाइफ सेंचुरी के नाम पर आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में

कोल्हान : झारखंड का हरा-भरा दिल — सारंडा — आज संकट के दौर से गुजर रहा है. केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सारंडा को वर्ल्डलाइफ सेंचुरी घोषित करने के फैसले ने जहां पर्यावरण संरक्षण के नाम पर एक “कानूनी मोहर” लगाई है, वहीं इस निर्णय ने यहां के हजारों आदिवासी परिवारों की नींव हिला दी है. जंगल-जमीन और जल पर आश्रित सारंडा के मूल निवासी आज भय, पीड़ा और अनिश्चितता के बीच जिंदगी काटने को मजबूर हैं.
सारंडा झारखंड का सबसे बड़ा साल वन क्षेत्र है, जहां सदियों से आदिवासी समुदाय प्रकृति के साथ सहअस्तित्व में जीवन व्यतीत करता आ रहा है. लेकिन अब वही लोग, जिन्हें इस धरती का सच्चा रखवाला कहा जाता था, अपने ही गांवों से विस्थापित होने के खतरे में हैं. वर्ल्डलाइफ सेंचुरी घोषित करने के फैसले ने प्रशासनिक सीमाएं तो तय कर दीं, मगर इन सीमाओं के भीतर रहने वाले इंसानों की जिंदगी की कोई गिनती नहीं की गई.

आदिवासी मुख्यमंत्री के रहते भी आदिवासियों की नहीं सुनवाई — लॉरेंस जोजो
सामाजिक कार्यकर्ता श्री लॉरेंस जोजो ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, “जब-जब झारखंड सरकार केंद्र की उन योजनाओं का समर्थन करती है जो झारखंड के आदिवासियों के खिलाफ जाती हैं, तब-तब यह राज्य की आत्मा को चोट पहुंचाती है. सबसे बड़ी तकलीफ तो यह है कि एक आदिवासी मुख्यमंत्री के रहते भी आदिवासी इलाकों की पहचान और अस्तित्व को बचाने की कोशिश नहीं की जा रही. यह बहुत दुखद है.
श्री जोजो ने आगे कहा कि सरकार का यह रवैया बताता है कि अब विकास का अर्थ केवल खनन, उद्योग और दिखावटी हरियाली से है, न कि इंसानों और उनके अस्तित्व से. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार ने कभी सारंडा के गांवों का सर्वे किया? क्या वन ग्राम को राजस्व ग्राम को राजस्व बनाया? क्या किसी ने यह पूछा कि जिन जंगलों को सेंचुरी बनाया जा रहा है, वहां के लोग कहां जाएंगे?

सारंडा को वर्ल्डलाइफ सेंचुरी के नाम पर हथियाने की चाल— बिरसा सोय
वृहद झारखंड मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष श्री बिरसा सोय ने इसे सीधी साजिश करार दिया है. उन्होंने कहा, “सरकार जानबूझकर जनता को ‘आदिवासी बनाम कुड़मी’ के मुद्दे में उलझा रही है, ताकि सारंडा से ध्यान हटाया जा सके. जब लोग जातीय विवाद में व्यस्त रहेंगे, तब सरकार और कॉर्पोरेट कंपनियां मिलकर सारंडा के संसाधनों पर कब्जा कर लेंगी.
बिरसा सोय ने कहा कि सारंडा को वर्ल्डलाइफ सेंचुरी घोषित करना कोई मासूम पर्यावरणीय फैसला नहीं है, बल्कि यह झारखंड के आदिवासियों को उनके पैतृक अधिकारों से वंचित करने की एक योजनाबद्ध साजिश है. सारंडा सिर्फ जंगल नहीं है, यह हमारे पुरखों की आत्मा है. जब आप वहां के लोगों को हटाएंगे, तो सिर्फ घर नहीं टूटेंगे, पूरी सभ्यता मिट जाएगी.

नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच फंसी जनता
एक ओर सरकार विकास और संरक्षण की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर सारंडा के घने जंगलों में विस्फोटों की आवाज़ें आज भी गूंजती हैं. हाल ही में नक्सली संगठन ने मोबाइल टावर और कनेक्टिविटी संरचनाओं को उड़ाया है ताकि प्रशासनिक निगरानी कमजोर पड़े. इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि क्षेत्र में भय और अस्थिरता का माहौल बना हुआ है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस हिंसा का सबसे बड़ा शिकार वे खुद हैं. न तो सरकार उन्हें सुरक्षा दे पा रही है, न ही नक्सलियों से बचा पा रही है. अब वर्ल्डलाइफ सेंचुरी के नाम पर उन्हें अपने ही घरों से बेदखल करने की तैयारी हो रही है.

आदिवासी पहचान पर संकट
सारंडा के गांव आज भी भय और अनिश्चितता में जी रहे हैं. लोगों को डर है कि सेंचुरी बनने के बाद उन्हें “अवैध निवासी” घोषित कर दिया जाएगा. न भूमि अधिकार मिलेगा, न आवास योजना का लाभ. जो सरकार “जल, जंगल, जमीन” की बात करती है, वही आज आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने पर आमादा है. सारंडा की लड़ाई, अस्तित्व की लड़ाई
सारंडा की लड़ाई अब सिर्फ जंगल की नहीं रही, यह झारखंड की अस्मिता और आदिवासी पहचान की लड़ाई बन चुकी है. सरकार अगर सच में इस राज्य के लोगों के हित में सोचती है, तो उसे अदालतों और योजनाओं के पीछे छिपे शोषण को रोकना होगा.
कोल्हान की अनेकों सामाजिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द सारंडा की जनता की सुनवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में यह आंदोलन झारखंड की धरती से दिल्ली तक गूंजेगा.
सारंडा कोई सेंचुरी नहीं, यह झारखंड की आत्मा है — और आत्मा को कैद नहीं किया जा सकता.

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