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🌺मेरा गांव जीवन का संगीत 🌺

🌾🌸🌿 शीर्षक : मेरा गाँव – जीवन का
संगीत 🌿🌸🌾

💐🌾 (1) 🌾💐
🌻 बैलों संग किसान चला, कंधे पर हल भारी, 🌻
🎵 "हो-हो रे धरती माँ" — गूँजे सुर मधुर
पियारी। 🎵
🌸 मिट्टी की खुशबू में भीगा, उसका मन
मतवाला, 🌸
🌾 गीत गुनगुनाए खेतों में, जैसे हो बंसी वाला। 🌾

🌹🌼 (2) 🌼🌹
🌸 हल जोते संग मिट्टी बोले, "चल धीरे-धीरे रे", 🌸
🌿 पग धरे तो धरती बोले, “प्रेम मेरे सीरे रे!” 🌿
🌻 पसीने में नहाया किसान, हँसी लुटाए खेतों
में, 🌻
🌾 बैलों से बोले प्यार भरे, “चल रे साथी रेतों
में।” 🌾

🌷🌾 (3) 🌾🌷
🌺 “ओ मोती, ओ हीरा रे”, पुचकारे अपने बैल, 🌺
🌸 “थक गए हो क्या साथी तुम?” — पूछे सरल
सुमेल। 🌸
🌿 बैलों की आँखों में झलके, विश्वासों की
भाषा, 🌿
🌾 मानव-प्रकृति का संवाद, यही जीवन की
आशा। 🌾

🌼🌻 (4) 🌻🌼
🌷 साँझ ढले जब खेतों से, लौटे घर की ओर, 🌷
🌸 मन में गूँजे राग पुराने, जैसे मधुर मंजीरे की
डोर। 🌸
🌿 घर की चौखट, माँ की बोली — “कितनी देर
लगाई रे?” 🌿
🌾 “अम्मा बस हल जोता था, माटी ने महक
उठाई रे।” 🌾

🌺🌾 (5) 🌾🌺
🌸 बेटी दौड़ी मुस्काई — “आ गए पिताजी
आज!” 🌸
🌻 बीवी ने हँसकर पूछा — “कैसे रहे
दिनराज?” 🌻
🌿 थकान उतरती हँसी से, स्नेह भरा आलिंगन, 🌿
🌾 यही तो जीवन का सुख है, यही तो घर का
मन। 🌾

🌼🌹 (6) 🌹🌼
🌻 “क्या बना अम्मा?” — “अरे बस टीकरी,
आलू-चोखा”, 🌻
🌸 “धनिया, टमाटर, कलौंजी, लहसुन चटनी
मीठा धोखा।” 🌸
🌿 सुन किसान का मन हरषे, थाली में प्रेम
परोसा, 🌿
🌾 स्वाद नहीं बस याद है, माँ के हाथ का तो
सोना। 🌾

🌷🌾 (7) 🌾🌷
🌸 भोजन के बाद थकान में, बोले किसान
दुलारी, 🌸
🌻 “बहुत बदन में दर्द हुआ, दिन भर की थी
भारी।” 🌻
🌿 बीवी बोली हँसकर — “कल फिर जोतेंगे
खेत”, 🌿
🌾 “जीवन यही सुर ताल है, रोटी और प्रीति का
मेथ।” 🌾

🌺🌿 (8) 🌿🌺
🌸 गीत नहीं यह गाथा है, धरती माँ की वाणी, 🌸
🌻 खेतों में गूँजें स्वर ऐसे, जैसे शंख पुरानी। 🌻
🌿 गाँव की हर धड़कन में, कर्म और प्रेम की
रीत, 🌿
🌾 “मेरा गाँव” यही मेरा, जीवन, धर्म, संगीत। 🌾
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🌺 ✒️ यह मौलिक रचना कवि -: सुरेश पटेल ‘सुरेश’ 🖌️🖌️ की है,
किसी अन्य कवि की कृति से ली हुई नहीं है। 🌺

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