
गोइलकेरा में शहीद देवेंद्र माझी का शहादत दिवस : जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए दी थी आहुति, लेकिन उनके सपनों से अब भी दूर है जनता
चाईबासा : आज गोइलकेरा की धरती पर शहीद देवेंद्र माझी का शहादत दिवस मनाया गया. यह वही धरती है जहाँ से झारखंड आंदोलन की कई कहानियाँ निकलीं, जहाँ आदिवासियों ने अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए अपनी जानें न्योछावर कर दीं. इन्हीं वीरों में एक नाम था देवेंद्र माझी, जिन्होंने शोषण और दोहन के खिलाफ आवाज उठाई और झारखंड की अस्मिता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. देवेंद्र माझी का संघर्ष केवल एक व्यक्ति का नहीं था, बल्कि वह एक आंदोलन था — आदिवासी अस्मिता, हक और अधिकार का प्रतीक. उन्होंने उस दौर में सरकार और कंपनियों के खिलाफ संघर्ष किया जब जल, जंगल और जमीन पर कॉर्पोरेट कब्जे की प्रक्रिया शुरू हो रही थी. उन्होंने न केवल विरोध किया, बल्कि अपने साथ ग्रामीणों को संगठित कर जल-जंगल-जमीन बचाने का आंदोलन खड़ा किया.
लेकिन आज, उनके बलिदान को याद करते हुए एक सवाल जनता के मन में गूंज रहा है — क्या उनके सपनों का झारखंड और उनका अपना इलाका मनोहरपुर वैसा बना, जैसा उन्होंने सोचा था?
🔹 शहादत से सत्ता तक — पर जनता अब भी वहीं की वहीं
देवेंद्र माझी के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी जोबा माझी ने राजनीति में कदम रखा. जनता ने उन्हें देवेंद्र माझी की विरासत के रूप में देखा और अपना भरपूर समर्थन दिया. जोबा माझी ने कई बार विधायक और मंत्री के रूप में झारखंड सरकार में महत्वपूर्ण पद संभाला. आज वे वर्तमान में झारखंड से सांसद भी हैं.
वहीं, देवेंद्र माझी के पुत्र जगत माझी भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए मनोहरपुर विधानसभा के विधायक बने.
परंतु अफसोस की बात यह है कि जिस जनता ने इन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर सदन तक पहुंचाया, वही जनता आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है.
🔹 क्षेत्र की हालत — सड़क, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सब अधूरा
_गोइलकेरा से लेकर मनोहरपुर तक विकास की कहानी अधूरी है._
_गाँवों में सड़क और बिजली की स्थिति जर्जर है._
_पेयजल संकट हर गर्मी में विकराल रूप ले लेता है._
सरकारी स्कूलों में शिक्षक नहीं, और जो हैं _भी, वे वर्षों से बिना संसाधन पढ़ा रहे हैं._
_स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर और दवाइयाँ नहीं, जिससे आम लोग आज भी छोटी बीमारियों में जान गंवा देते हैं._
_युवाओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं, जिसके कारण प्रवासन बढ़ता जा रहा है._
_यह सब उस क्षेत्र की सच्चाई है, जो कभी शहीद देवेंद्र माझी की कर्मभूमि रही._
🔹 जनता का आरोप — वोट केवल नाम के भरोसे
स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि “देवेंद्र माझी की शहादत का नाम लेकर वोट तो खूब बटोरे गए, लेकिन उनके आदर्शों पर कोई काम नहीं हुआ.”
जोबा माझी और जगत माझी पर आरोप है कि उन्होंने अपने पारिवारिक राजनीतिक लाभ को तो साधा, लेकिन जनता की समस्याओं की ओर कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया.
"देवेंद्र माझी का नाम जनता के दिलों में आज भी जिंदा है, पर उनके सपनों का झारखंड मर चुका है," — यह बयान कई ग्रामीणों के बीच गूंजता सुनाई देता है.
🔹 राजनीतिक प्रतीक बन गई शहादत
हर साल शहादत दिवस पर बड़ी-बड़ी बातें, मंच और माला चढ़ाने की रस्म पूरी की जाती है.
नेता आते हैं, श्रद्धांजलि देते हैं, भाषण होता है, और फिर सब खत्म. लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि देवेंद्र माझी के आदर्शों का क्या हुआ?
उनकी सोच थी कि जनता सशक्त हो, आदिवासी आत्मनिर्भर बने, और सरकार जनता के द्वार तक पहुँचे.
लेकिन आज उनके क्षेत्र के गाँव अब भी विकास की रौशनी से अछूते हैं.
🔹 जनता की आवाज — अब प्रतीक नहीं, परिवर्तन चाहिए
आज गोइलकेरा में जब शहादत दिवस मनाया जाता है तो युवाओं और बुजुर्गों दोनों की आँखों में एक ही सवाल होता है
“क्या शहादत सिर्फ याद करने के लिए है या उसे जीने के लिए भी?”
लोगों का कहना है कि अब समय आ गया है जब जनता नाम नहीं, काम के आधार पर प्रतिनिधि चुने.
यदि शहीद देवेंद्र माझी का नाम लिया जाए, तो उनके सपनों को साकार करने के लिए कदम उठाए जाएँ, न कि उन्हें राजनीतिक हथियार बनाया जाए.
शहीद देवेंद्र माझी की शहादत आज भी झारखंड के लिए प्रेरणा है. लेकिन यह प्रेरणा तभी सार्थक होगी जब उनके परिवार और वर्तमान प्रतिनिधि उनके आदर्शों को व्यवहार में लाएँ.
जल, जंगल, जमीन की रक्षा केवल भाषणों में नहीं, बल्कि धरातल पर दिखे — यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि.
वरना इतिहास बार-बार यही कहेगा —
“शहीद हुए देवेंद्र माझी, पर उनके सपने राजनीति के मंच पर कुर्बान हो गए.”
शाहिद देवेंद्र माझी की को शत शत नमन एवं श्रद्धांजलि 💐💐
वीर शहीद अमर रहे.अमर रहे अमर रहे.