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हडदर गाँव में उबाल: किसानों की आवाज़ पर लाठीचार्ज, सवालों के घेरे में प्रशासन

हडदर गाँव में उबाल: किसानों की आवाज़ पर लाठीचार्ज, सवालों के घेरे में प्रशासन

बोटाद, गुजरात | 12 अक्टूबर 2025

बोटाद ज़िले के हडदर गाँव में किसान आंदोलन ने आज एक नया मोड़ ले लिया, जब किसानों के शांतिपूर्ण धरने पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। घटना के बाद पूरे इलाके में तनाव फैल गया और ग्रामीणों में ग़ुस्से की लहर दौड़ गई।

🌾 राजू करपड़ा का संबोधन: “बैठे रहो, पुलिस कुछ नहीं कर सकती”

Aam Aadmi Party के किसान नेता राजू करपड़ा जब आंदोलन स्थल पर पहुँचे, तो उन्होंने किसानों से अपील की —

“आप सब शांतिपूर्वक बैठ जाइए। जब किसान एकजुट होकर अपने हक़ की बात करता है, तो पुलिस कुछ नहीं बिगाड़ सकती।”

उनकी यह बात किसानों में हिम्मत और एकता का प्रतीक बन गई। लेकिन इसी बीच माहौल अचानक बदल गया।

👮‍♂️ पुलिस लाठीचार्ज और अफरातफरी

गवाहों के अनुसार, जब किसान शांतिपूर्वक बैठकर नारे लगा रहे थे, तभी पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज कर दिया।
कई किसानों को चोटें आईं, महिलाओं और बुज़ुर्गों में भगदड़ मच गई। इस कार्रवाई के बाद किसानों का ग़ुस्सा भड़क उठा और उन्होंने पुलिस पर पलटवार कर दिया।

ग्रामीणों का कहना है कि “हम सिर्फ़ अपने हक़ की बात कर रहे थे — कोई हिंसा नहीं थी। पुलिस ने बेवजह हमला किया।”

⚖️ संविधान और सवाल

भारत का संविधान नागरिकों को शांतिपूर्ण ढंग से अपने अधिकारों की माँग करने का मौलिक अधिकार देता है।
फिर सवाल उठता है —

क्या किसानों का अपने हक़ के लिए संघर्ष करना अपराध है?
क्या लोकतंत्र में सच्चाई की आवाज़ उठाने पर जेल भेजना न्यायसंगत है?

कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि किसानों की आवाज़ दबाने के बजाय, सरकार को संवाद और समाधान का रास्ता अपनाना चाहिए।

🏛️ सरकार और प्रशासन पर आरोप

स्थानीय लोगों का आरोप है कि भाजपा सरकार के अधिकारियों और प्रशासन की मिलीभगत से किसानों की समस्याओं को अनदेखा किया जा रहा है।
लगातार चार-पाँच दिनों से किसान खेत-फसलों के नुकसान, बाज़ार-यार्ड की मनमानी और कपास के “कल्दा” कटौती के विरोध में धरने पर हैं।
लेकिन अब तक उन्हें कोई ठोस जवाब नहीं मिला।

💬 जनता की आवाज़

गाँव के बुज़ुर्ग किसान कहते हैं —

“हम तो बस अपने परिश्रम की कीमत माँग रहे हैं। अगर यह भी अपराध है, तो फिर यह लोकतंत्र नहीं, दमनतंत्र है।”

🔍 निष्कर्ष

हडदर गाँव की घटना सिर्फ़ एक आंदोलन नहीं, बल्कि एक सवाल है —
क्या इस देश में किसान अपने अधिकारों के लिए खड़ा भी नहीं हो सकता?
जब संविधान मौलिक अधिकार देता है, तब सरकार का कर्तव्य है कि वह किसानों की तकलीफ सुने, न कि उनकी आवाज़ को लाठी और गिरफ़्तारी से दबाए।

आज हडदर की ज़मीन सिर्फ़ फसल से नहीं, बल्कि संघर्ष और सच्चाई की गवाही से भी भीग रही है।

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