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Mussoorie: संग्रहालय जो कभी बन नहीं पाया — यादों की नींद में सोता पहाड़

मसूरी, अक्टूबर 2025

2020 में नगर पालिका परिषद ने रखी थी विरासत संग्रहालय की नींव

नवंबर 2020 में नगर पालिका परिषद, मसूरी ने Mall Road के पास पहाड़ की 200 साल पुरानी विरासत को सँभालने के लिए एक विशेष संग्रहालय का प्रस्ताव पास किया था। इस ₹1 करोड़ के प्रोजेक्ट का मकसद 19वीं सदी के दुर्लभ फोटो, नक्शे, पत्र और ऐतिहासिक दस्तावेज़ इकट्ठा कर आम लोगों के लिए एक खुला म्यूज़ियम और रिसर्च सेंटर बनाना था। योजना थी कि इसे Town Hall परिसर के पास स्थापित किया जाए, जिससे टूरिज़्म और स्थानीय विकास योजनाओं को भी जोड़ा जा सके।

दुर्लभ फोटो, नक्शे और कॉर्बेट की नेगेटिव्स

संग्रहालय में 1860 के दशक के फोटो, ब्रिटिश राज के पत्र, लैंडौर और कैमल्स बैक रोड के हाथ से बने नक्शे, और मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट द्वारा खींचे गए काँच के नेगेटिव्स शामिल थे। साथ ही, मसूरी के सबसे पुराने परिवारों की जुबानी कहानियाँ भी दर्ज की जानी थीं। इस सोच को स्थानीय इतिहासकारों और विरासत प्रेमियों का समर्थन मिला था।

महामारी और बजट कटौती में रुकी योजना

संग्रहालय का सपना कोरोना महामारी और बजट कटौती के कारण अधूरा रह गया। 2021 के लॉकडाउन में पैसों का इस्तेमाल सफाई और स्वास्थ्य के लिए होने लगा, जिस वजह से यह योजना फाइलों में ही बंद रह गई। न जमीन मिली, न टेंडर निकले, न कोई रिपोर्ट आई। आज, लगभग पाँच साल बाद भी मसूरी संग्रहालय सिर्फ एक प्रस्ताव ही है। ऐतिहासिक सामग्री अभी भी निजी मकानों, नगर कार्यालय की अलमारियों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे pahar.in या British Library Archives में बिखरी पड़ी है।

गुप्त संग्रह के संरक्षक: गोपाल भारद्वाज

स्थानीय इतिहासकार गोपाल भारद्वाज को “मसूरी का अभिलेख रखने वाला” कहा जाता है। उनके पास 250 से ज़्यादा दुर्लभ फोटो, पत्र, नक्शे और औपनिवेशिक ज़माने की वस्तुएँ हैं। बरसों से वे सरकार से माँग कर रहे थे कि मसूरी के इतिहास की रक्षा के लिए एक म्यूज़ियम बनाया जाए। 2020 की योजना में उनकी पूरी कलेक्शन को संग्रहालय की धुरी माना गया था। मगर आज भी उनकी सामग्री एक टिन के शेड में रखी हुई है और उन्हें डर है कि नमी और लापरवाही से यह सब नष्ट हो जाएगा।

जानकार बोले — खोया मौका

इतिहासकार और संरक्षणकर्ता कहते हैं, यह संग्रहालय सिर्फ औपनिवेशिक यादों का नहीं, बल्कि हिमालयी नगरों के बदलते स्वरूप का प्रमाण बन सकता था — कैसे जंगल संपदा बने, खच्चर रास्तों पर सड़कें बनीं, और समय के साथ नगर व्यवस्थाएँ बदलीं। “हर पहाड़ के अपने भूत होते हैं,” एक स्थानीय इतिहासकार ने कहा था, “मसूरी के भूत उसकी बंगलों में नहीं, उसकी खुली अलमारियों में छुपे हैं।”

भविष्य: नई उम्मीदें, नई पालिका बोर्ड से अपेक्षाएँ

2025 में नगर पालिका का नया बोर्ड गठित हो चुका है और विरासत संरक्षण को लेकर फिर से चर्चाएँ शुरू हुई हैं। उम्मीद है कि जो कार्य कोविड-19 के समय अधूरा रह गया था, अब उस पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। मसूरी जैसे ऐतिहासिक नगर के लिए अब समय आ गया है कि अपनी धरोहर को केवल यादों में नहीं, बल्कि दस्तावेज़ों और दीवारों में भी सहेजा जाए। नई पालिका के सामने यह अवसर है कि वह उस सपने को साकार करे जो पाँच साल पहले धुंध में खो गया था — मसूरी का अपना विरासत संग्रहालय।

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