
न्यायपालिका और प्रशासनिक सेवाओं पर जातिगत हमले – संविधान के मूल्यों पर गंभीर प्रश्न
देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठे मुख्य न्यायाधीश (CJI) को जब उनकी जाति के आधार पर अपमानित किया जाता है, गालियाँ दी जाती हैं, यहाँ तक कि उन पर जूता उठाया जाता है — और एक आईपीएस अधिकारी जातिगत भेदभाव और अपमान से तंग आकर अपनी जान देने पर मजबूर होता है, तब यह साफ़ दिखता है कि संविधान में लिखी समानता और गरिमा आज भी ज़मीन पर लागू नहीं हो पाई है।
यह घटनाएँ केवल व्यक्तिगत हमले नहीं हैं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों पर सीधा प्रहार हैं।
जब समाज का सबसे शिक्षित, सक्षम और संवेदनशील वर्ग भी जातिगत विषमता का शिकार होता है, तो यह संकेत है कि व्यवस्था के भीतर गहरी सड़ांध है — जहाँ संविधान की आत्मा सिर्फ किताबों और भाषणों तक सीमित रह गई है।
हम मांग करते हैं कि –
1. जातिगत घृणा और अपमान के मामलों में तत्काल कठोर कार्रवाई की जाए।
2. संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए संस्थागत जवाबदेही तय हो।
3. सरकार, न्यायपालिका और नागरिक समाज मिलकर समानता और सम्मान की संस्कृति को वास्तविक रूप दें।
संविधान सिर्फ दस्तावेज़ नहीं, यह करोड़ों लोगों की आस्था है।
अगर न्याय और समानता की आवाज़ दबाई जाएगी, तो यह आस्था भी धीरे-धीरे मर जाएगी
हरबंस कक्कड़ माजरा
पूर्व महासचिव पर्यावरण विभाग
हरियाणा कांग्रेस कमेटी