गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना पर दादा हीरा सिंह मरकाम का उद्देश्य आखिर क्यों जरूरत पड़ी जो दादा को पार्टी की स्थापना करना पड़ा.....
दादा हीरा सिंह मरकाम ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना मुख्य रूप से गोंड या कोइतूर समुदाय के अधिकारों, पहचान और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए की थी। गोंडवाना क्षेत्र के आदिवासी लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक सुधार और उनके लिए स्वतंत्र और सम्मानजनक पहचान पाने का संघर्ष ही इस पार्टी के गठन की मुख्य वजह थी। 1970-80 के दशक में गोंडवाना आंदोलन के पुनर्जागरण के दौरान हीरा सिंह मरकाम ने इस पार्टी की नींव रखी, ताकि आदिवासी समुदाय के हितों को एक राजनीतिक मंच पर मजबूती से उठाया जा सके। वे एक प्राइमरी स्कूल शिक्षक से विधायक बने और गोंड समुदाय की राजनीतिक आवाज बनकर उनकी सामाजिक-राजनीतिक जागृति को आगे बढ़ाना चाहते थे। उनके प्रयासों में गोंड भाषा, संस्कृति और इतिहास के संरक्षण और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान था। यह पार्टी एसटी, एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के हितों की राजनीति के लिए कार्य करती है। इनके संघर्ष के पीछे यह भावना थी कि बिना संस्कृति के सामाजिक चेतना नहीं आएगी, और बिना सामाजिक चेतना के राजनीतिक सशक्तिकरण संभव नहीं होगा....
(गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना इस भारत की धरती और कल्याण हित के लिए हुआ ताकि पिछड़ों और शोषितों की आवाज दबाई न जा सके )
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी: शोषित जाति और समुदायों के हित के लिए एक संघर्षगोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना एक महत्वूपूर्ण राजनीतिक एवं सामाजिक आंदोलन के रूप में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले शोषित जाति एवं समुदायों के अधिकारों की रक्षा और उनकी उन्नति सुनिश्चित करना था। यह पार्टी उन लोगों के लिए एक आवाज बनकर उभरी, जिन्हें दशकों से सामाजिक अन्याय, आर्थिक पिछड़ापन, और सांस्कृतिक उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा था।गोंडवाना क्षेत्र मुख्यतः मध्य भारत के आदिवासी गर्भित इलाकों में आता है जहां गोंड सहित अनेक जनजातीय एवं पिछड़े समुदाय रहते हैं। इन वर्गों को हमेशा से शासकीय नीतियों, संसाधनों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उचित स्थान नहीं मिला। परिणामस्वरूप, उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मूलभूत अधिकार अछूते रह गए। ऐसे में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने इन शोषित और पिछड़े वर्गों की स्थिति सुधारने के लिए एक निर्णायक कदम उठाया।पार्टी की स्थापना के पीछे दादा हीरा सिंह मरकाम जैसे प्रेरक जीवनदायिनी नेताओं की दूरदर्शिता थी, जिन्होंने समझा कि जाति और समुदाय के आधार पर विभाजित समाज में केवल समेकित सामूहिक संघर्ष ही न्याय और विकास की दिशा में वास्तविक बदलाव ला सकता है। इस पार्टी ने गोंडवाना क्षेत्र के आदिवासी, दलित, पिछड़े, और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए राजनीतिक सशक्तिकरण की नींव रखी। उनका मानना था कि सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक सम्मान के अभाव में कोई भी राजनीतिक अधिकार टिकाऊ नहीं हो सकता।गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने शिक्षा, स्वास्थ, आर्थिक सशक्तिकरण, भूमि अधिकार और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के मुद्दों पर अपनी सक्रियता दिखाई। यह पार्टी इन समुदायों की संस्कृति, भाषा और परंपराओं की रक्षा में भी तत्पर रही। इसके साथ ही यह पार्टी विभिन्न चुनावी मंचों पर इन वर्गों के लिए विशेष आरक्षण, सरकारी योजनाओं की पहुँच और न्याय सुनिश्चित करने की मांग करती है।समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव, शोषण और उपेक्षा को खत्म करने के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने आज़माया है ऐसा रास्ता, जो समस्त शोषित जाति और समुदायों को सम्मानजनक जीवन, समान अवसर, और सामाजिक न्याय दिलाने का माध्यम बने। यह पार्टी गोंडवाना क्षेत्र के सामूहिक विकास का प्रतिनिधित्व करते हुए, शोषितों के संघर्ष को राजनीतिक मंच पर दबंग अंदाज में जारी रखे हुए है।इस प्रकार, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी केवल एक राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि शोषित जाति एवं समुदायों की सामाजिक-राजनीतिक पुनरुत्थान की आशा और शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने गोंडवाना क्षेत्र के हर पीड़ित, उपेक्षित और हाशिए पर रहने वाले व्यक्ति के अधिकारों के लिए निरंतर लड़ाई लड़ी है और यह संघर्ष आज भी स्थापित पार्टी के माध्यम से जारी है।इस पार्टी की स्थापना ने गोंड, आदिवासी और शोषित समुदायों को उनकी गरिमा और पहचान दिलाने में अनमोल योगदान दिया है और यह संघर्ष उनके आत्मसम्मान और न्याय की मांग का सशक्त रूप है।
(गोंडवाना जाति नही अपितु भारत राष्ट् का बोध है इसलिए पार्टी का नाम दादा हीरा सिंह मरकाम ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी रखा )
“गोंडवाना” मात्र किसी जाति या समुदाय का प्रतीक नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण भारत राष्ट्र की एकता, स्वतंत्रता और गणतांत्रिक चेतना का बोध कराता है। इसी कारण पार्टी का नाम “गोंडवाना गणतंत्र पार्टी” रखा गया, ताकि यह संगठन केवल किसी जातीय समूह का नहीं, बल्कि समग्र भारतवर्ष के जनसमान्य के अधिकार, समानता और स्वराज्य के सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करे यही पार्टी का उद्देश्य है ..
(गोंडवाना गणतंत्र पार्टी – स्थापना संकल्प और ऐतिहासिक लक्ष्य जिसके लिए पार्टी की स्थापना की गई)
दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने यह महसूस किया कि समाज के पिछड़े, आदिवासी और समस्त शोषित समुदाय का वास्तविक उत्थान केवल सामाजिक आंदोलनों से संभव नहीं है। जब तक इन वर्गों की सत्ता में सीधी भागीदारी नहीं होगी, तब तक उनके जीवन से जुड़ी नीतियाँ और अधिकार सुनिश्चित नहीं हो पाएंगे।
इसी सोच से उन्होंने एक ऐसा राजनीतिक मंच बनाने का निर्णय लिया जो इन वंचित समुदायों की आवाज़ को सीधे शासन-प्रशासन तक पहुँचा सके और उन्हें आत्मनिर्भर, सम्मानित जीवन की दिशा में अग्रसर करे।स्थापना का उद्देश्य:
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना इस विचार पर आधारित है कि सत्ता परिवर्तन के बिना सामाजिक परिवर्तन अधूरा है। पार्टी का प्रमुख उद्देश्य आदिवासी, दलित, पिछड़ा और किसान वर्ग को राष्ट्र के निर्णय प्रक्रिया में समान भागीदारी देना है ताकि वे अपने अधिकार, संस्कृति और संसाधनों की रक्षा स्वयं कर सकें।मुख्य लक्ष्य:भारत के संविधान में निहित समानता, न्याय और स्वतंत्रता के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से लागू करना।आदिवासी एवं पिछड़े समाज की सांस्कृतिक पहचान, भाषा और परंपराओं की रक्षा एवं संवर्द्धन।शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भूमि और जल-जंगल-जमीन पर स्वामित्व सुनिश्चित करना।सामाजिक एकता, आर्थिक आत्मनिर्भरता और राजनीतिक सशक्तिकरण के माध्यम से सम्पूर्ण समाज का पुनर्निर्माण।ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
दादा हीरा सिंह मरकाम जी का सामाजिक जीवन सदैव वंचित वर्गों की चेतना और आत्मसम्मान को जगाने में समर्पित रहा है। उन्होंने गोंडवाना को केवल एक जातिगत नाम नहीं, बल्कि भारत राष्ट्र की प्राचीन मूल चेतना का प्रतीक माना। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने “गोंडवाना गणतंत्र पार्टी” की स्थापना की — एक ऐसा संगठन जो जातिगत सीमाओं से ऊपर उठकर सामाजिक न्याय, स्वराज्य और समान अधिकारों के मार्ग पर चलने का संकल्प रखता है।इस प्रकार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी केवल एक राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि एक व्यापक जनआंदोलन है — जो हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान दिलाने का पर्व है
दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने अपने लंबे सामाजिक और जनसंघर्ष के अनुभव से यह गहराई से समझा कि केवल सामाजिक आंदोलन या सांस्कृतिक जागरण से पिछड़े, आदिवासी और शोषित वर्गों का संपूर्ण उत्थान संभव नहीं है। सदियों से यह समुदाय सामाजिक अन्याय, आर्थिक वंचना और राजनीतिक उपेक्षा का सामना करता आया है। प्रशासन और सत्ता में इनकी आवाज़ दुर्लभ होने के कारण इनके मुद्दे हमेशा हाशिये पर रहे।इसी यथार्थ से प्रेरित होकर मरकाम जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक समाज के इन वंचित तबकों को राजनीतिक शक्ति और निर्णय लेने की भूमिका नहीं मिलेगी, तब तक वास्तविक परिवर्तन संभव नहीं है। सत्ता में सहभागिता ही वह माध्यम है, जिससे आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और किसानों के मुद्दे नीतियों का केंद्र बन सकते हैं।इन्हीं विचारों से उन्होंने शोषित–पीड़ित जनता को एक मंच पर लाने और उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक अलग पहचान व सम्मानजनक स्थान दिलाने के उद्देश्य से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना की।
इस पार्टी का मूल उद्देश्य न केवल राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और भूमि अधिकार जैसे मूलभूत क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता और न्यायसंगत व्यवस्था स्थापित करना है।मरकाम जी का यह प्रयास गोंडवाना क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष के आदिवासी और पिछड़े समाज के लिए आत्मसम्मान और स्वराज्य की चेतना का प्रतीक बन गया है।
(बिना सत्ता के सामाजिक परिवर्तन मुश्किल सत्ता ही सारी सुखों की चाभी है इसलिए हीरा सिंह मरकाम जन आंदोलन राजनीतिक नेतृत्व खड़ा किया)
दादा हीरा सिंह मरकाम जी की विचारधारा – सत्ता और सामाजिक परिवर्तन का संबंधदादा हीरा सिंह मरकाम जी ने अपने सार्वजनिक जीवन और जनसेवा के अनुभवों से यह भलीभांति समझ लिया था कि किसी भी समाज के उत्थान का वास्तविक आधार केवल नारों या सामाजिक आंदोलनों में नहीं, बल्कि सत्ता में सहभागी बनने में निहित है। उन्होंने कहा था कि “बिना सत्ता के सामाजिक परिवर्तन असंभव है, क्योंकि सत्ता ही सभी सुखों और अधिकारों की चाभी है।”इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज़ शासन व्यवस्था में प्रतिनिधित्व नहीं पाती, तब तक बराबरी, न्याय और सम्मान जैसे आदर्श केवल कागज़ों पर सीमित रह जाते हैं। दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने इस सच्चाई को गहराई से पहचाना। उन्होंने देखा कि आदिवासी, दलित, पिछड़े, किसान और श्रमिक वर्ग केवल समाज के सबसे मेहनती लोग ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा हैं, फिर भी वे अधिकारों और अवसरों से सबसे वंचित रहे हैं।मरकाम जी ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति के परिदृश्य में यह कमजोरी स्पष्ट रूप से महसूस की कि इन वर्गों की आवाज़ सुनने या उनके हितों की रक्षा करने वाला कोई सशक्त राजनीतिक मंच नहीं था। इसी कारण उन्होंने केवल जागृति या सांस्कृतिक आंदोलन तक सीमित रहने के बजाय एक राजनीतिक विकल्प खड़ा किया — ऐसा विकल्प जो समाज के शोषित हिस्से को सत्ता में उचित भागीदारी दिला सके।उन्होंने यह मान्यता स्थापित की कि राजनीति ही समाज परिवर्तन की सबसे प्रभावशाली धारा है। जब सत्ता पर अधिकार मिलेगा तभी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भूमि, जल-जंगल-जमीन और संस्कृति की रक्षा व संवर्धन संभव होगा। इसी सोच और उद्देश्य से उन्होंने व्यापक जनजागरण अभियान चलाया और जनता के मध्य एक समर्पित नेतृत्व तैयार किया।इस जनआंदोलन की परिणति गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के रूप में हुई — एक ऐसी राजनीतिक शक्ति जो सामाजिक न्याय, समान अवसर और स्वाभिमान पर आधारित भारत के निर्माण के लिए समर्पित है। यह पार्टी केवल सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं, बल्कि समाज में संतुलन, समरसता और आत्मनिर्भरता की पुनर्स्थापना का संकल्प है।दादा हीरा सिंह मरकाम जी की यही विचारधारा आज भी हर उस व्यक्ति के लिए दिशा-सूचक है जो यह मानता है कि सत्ता केवल विशेषाधिकार नहीं, बल्कि समाज को न्यायपूर्ण और समृद्ध बनाने की जिम्मेदारी है।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना केवल एक राजनीतिक संगठन के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक आवश्यकता के रूप में हुई थी। यह उस विचार पर आधारित आंदोलन है जिसे दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने दशकों पहले देखा और साकार किया — “बिना सत्ता के सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं है, सत्ता ही सभी सुखों और अधिकारों की चाभी है।”मरकाम जी का मानना था कि जब तक आदिवासी, दलित, पिछड़े, मजदूर और किसान वर्ग स्वयं सत्ता के निर्णयकारी पदों तक नहीं पहुँचेंगे, तब तक उनके जीवन से जुड़ी समस्याएँ केवल कागज़ी घोषणाओं तक सीमित रहेंगी। इसलिए उन्होंने समाज के वंचित तबकों को एक ऐसे मंच पर संगठित करने का आह्वान किया जो राजनीतिक रूप से सक्षम हो और जो शासन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करे।वैचारिक आधार:
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मूल दर्शन सामाजिक न्याय, समान अवसर, और स्वराज्य पर आधारित है। पार्टी मानती है कि भारतीय लोकतंत्र का सही अर्थ तभी पूरा होगा जब प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार और सम्मान का अवसर मिलेगा।
मरकाम जी की विचारधारा तीन मूल स्तंभों पर टिकी है:सत्ता में समान भागीदारी के बिना समतामूलक समाज की स्थापना असंभव है।जल, जंगल, जमीन और संसाधनों पर अधिकार जनता का मूल अधिकार है।शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता ही सच्चा विकास है।राजनैतिक दृष्टि और उद्देश्य:
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का उद्देश्य सत्ता प्राप्त कर शोषित समाज के जीवन में न्यायपूर्ण बदलाव लाना है। राजनीति को पार्टी जनहित का साधन मानती है, न कि स्वार्थपूर्ण लाभ का माध्यम।
पार्टी के प्रमुख लक्ष्य हैं:
शासन तंत्र में आदिवासी, पिछड़े, दलित और श्रमिक वर्गों की उचित भागीदारी।संविधान में निहित समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों की रक्षा।स्थानीय संसाधनों पर स्वामित्व और ग्राम स्वराज की पुनर्स्थापना।शिक्षा और स्वास्थ्य को सार्वजनिक अधिकार बनाना, न कि सुविधा।युवाओं और महिलाओं को नेतृत्व की मुख्यधारा में लाना।
दर्शन और प्रेरणा:
दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने गोंडवाना को किसी जाति का नहीं बल्कि भारत राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक माना। उनके अनुसार, गोंडवाना शब्द समाज की उस चेतना का प्रतीक है जो हजारों वर्षों से प्रकृति, समानता और सत्य के सिद्धांतों में विश्वास रखती है।
उन्होंने यह संदेश दिया कि सत्ता परिवर्तन ही समाज परिवर्तन की दिशा में पहला कदम है, और जब तक वंचित समाज सत्ता में अपनी आवाज़ नहीं बनाएगा, तब तक सच्चा लोकतंत्र अधूरा रहेगा।
निष्कर्ष:
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सामाजिक परिवर्तन की वह धारा है जो सत्ता को केवल शासन चलाने का साधन नहीं, बल्कि जनता के अधिकारों के संरक्षण और न्याय की स्थापना का माध्यम मानती है। इस पार्टी का उद्देश्य भारत के संविधान की मूल भावना — “जनता के द्वारा, जनता के लिए” — को धरातल पर उतारना है।यह वही विचार है जिसे दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने अपने जीवन का ध्येय बनाया —
सत्ता जनता के हाथों में हो, तभी सच्चा गणतंत्र और सच्चा भारत निर्मित हो सकता है।
हम सबको मिलकर इस आंदोलन को बढ़ाना है
हर घर गोंडवाना घर घर गोंडवाना
हर घर रोजगार हर घर शिक्षा ऋण शोषण मुक्त समाज का निर्माण ही गोंडवाना का लक्ष्य है