
चुनाव का शोर और विकाश की खामोशी:शाहपुर पटोरी का दर्द ।
चुनाव का दौर आया है, और फिर शुरू हुआ है "वादों का शोर" l
हर पाँच साल की तरह, नेता आएंगे, माला पहनेंगे, और उन अधूरे सपनों को फिर से दोहराएँगे जो शाहपुर पटोरी के लोगों ने वर्षों से देखे हैं। यह कहानी केवल एक नगर की नहीं, बल्कि उस विडंबना की है जहाँ "दो विधायक(मोरवा और मोहिउद्दीनगर) एक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री (उजियारपुर)(सांसद) और नगर परिषद" का बड़ा फंड होने के बावजूद, विकास की किरणें आज भी दूर हैं।
हाल ही में "नगर परिषद" का दर्जा पाने वाले शाहपुर पटोरी को उम्मीद थी कि अब शहरी सुविधाओं की राह आसान होगी, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। स्थानीय लोगों के लिए जीवन आज भी "नर्क" बना हुआ है, और इसकी सबसे बड़ी वजह है "बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव" ।
स्वास्थ्य के मोर्चे पर, स्थिति अत्यंत दयनीय है। अस्पताल की इमारत तो खड़ी है, लेकिन उसमें "महिला और बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर" नहीं हैं। मामूली इलाज के लिए भी लोगों को पटना या अन्य शहरों की ओर भागना पड़ता है। यह कैसा दुर्भाग्य है कि स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकता के लिए भी क्षेत्र की जनता दर-दर भटकने को मजबूर है।
वहीं, शिक्षा के क्षेत्र में भी लापरवाही साफ दिखती है जहां "आरती जगदीश गर्ल्स कॉलेज" के सामने की सड़क की हालत इतनी खराब है कि छात्राओं का कॉलेज आना-जाना किसी चुनौती से कम नहीं है। शिक्षा के मंदिर तक पहुंचने का रास्ता ही अगर नारकीय हो, तो हम कैसे एक उज्जवल भविष्य की कल्पना कर सकते हैं?
शहर में हर तरफ "टूटी-फूटी सड़कें" विकास के दावों की पोल खोलती हैं। नगर परिषद की स्थापना के बाद भी सड़कों की मरम्मत और निर्माण में देरी यह साबित करती है कि स्थानीय प्रशासन की प्राथमिकताएं कहीं और हैं।
इसके साथ ही,"अतिक्रमण" के कारण शहर में "जाम की समस्या" आम हो गई है। बाजार क्षेत्र में पैदल चलना भी मुश्किल है, जिससे आम नागरिक, व्यवसायी और छात्र-छात्राएं सभी परेशान हैं। इस समस्या का स्थायी समाधान, जैसे "स्टेशन और चंदन चौक रेलवे गुमटी पर ओवरब्रिज" बनाने की मांग वर्षों पुरानी है, लेकिन हर बार यह केवल चुनावी घोषणा बनकर रह जाती है।
शाहपुर पटोरी रेलवे स्टेशन 20 से 25 किलोमीटर के क्षेत्र के लिए एक मुख्य यात्रा केंद्र है। यहाँ से प्रतिदिन हजारों लोग यात्रा करते हैं, फिर भी यहाँ "लंबी दूरी की ट्रेनों" का ठहराव न होना एक बड़ी निराशा है। लोगों को दिल्ली, मुंबई, या बेंगलुरु जैसी जगहों पर जाने के लिए आज भी पटना या अन्य बड़े स्टेशनों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह मांग केवल सुविधा की नहीं, बल्कि इस क्षेत्र के आर्थिक विकास और पहचान से भी जुड़ी है।
एक विकसित शहर की पहचान केवल सड़कों से नहीं होती, बल्कि उसके नागरिकों के जीवन-स्तर से होती है। शाहपुर पटोरी में "पार्क की सुविधा का अभाव" वृद्धों और बच्चों दोनों को प्रभावित करता है। बुजुर्गों के टहलने या बच्चों के खेलने के लिए कोई सुरक्षित और व्यवस्थित स्थान नहीं है।
इससे भी अधिक गंभीर है "सार्वजनिक पुस्तकालय" (लाइब्रेरी) की कमी । बच्चों, युवाओं और ज्ञान पिपासु बुजुर्गों के लिए कोई शांत जगह नहीं है जहाँ वे बैठकर पढ़ाई कर सकें या किताबें पढ़ सकें।
पार्क और लाइब्रेरी एक सभ्य समाज की नींव होते हैं, और इनका न होना क्षेत्र की उदासीनता को दर्शाता है।
अब सवाल उठता है कि किसे दें दोष ?
मुद्दा ये है कि जब क्षेत्र के पास "दो विधायक, एक केंद्रीय मंत्री और नगर परिषद का बड़ा बजट" है, तो भी ये समस्याएं जस की तस क्यों हैं?
क्या यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है ?
प्रशासनिक उदासीनता, या फिर जनता की आवाज़ को अनसुना करने की पुरानी आदत?
यह चुनाव का समय है। नेता फिर आएंगे और झूठे वादों का पुलिंदा खोलेंगे। लेकिन इस बार शाहपुर पटोरी की जनता को इन वादों के पार देखना होगा। उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों से सिर्फ वादे नहीं, बल्कि "समयबद्ध कार्य योजना" और "जवाबदेही" मांगनी होगी।
शाहपुर पटोरी के लोगों को यह याद रखना होगा कि आपका वोट ही आपकी शक्ति है, और इसे केवल उन्हीं को सौंपना है जो सच में इस नगर को 'परिषद' का दर्जा मिलने का सार्थक प्रमाण दे सकें।
"अब विकास की राह देखने का नहीं, विकास को ज़मीन पर उतारने का समय है"
मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT