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शरद पूर्णिमा का अशांत सागर रूपी मन पर प्रभाव

जब चांद अपनी पूर्ण कलाओं में दमकता है, तब प्रकृति और मन दोनों शुद्धता का अनुभव करते हैं।”
🌸 आध्यात्मिक दृष्टि : अमृत बरसाती रात्रि
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है — अर्थात् “कौन जाग रहा है?”
मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी आकाश भ्रमण करती हैं और जो व्यक्ति जागरण, ध्यान या भक्ति में लीन रहता है, उसे कृपा प्राप्त होती है।
चंद्रमा इस दिन मन की शांति और शीतलता का प्रतीक होता है।
रात्रि में चंद्रमा की किरणों में रखी खीर को अमृत तुल्य माना जाता है — यह शरीर, मन और आत्मा तीनों को शुद्ध करती है।
🌼 “भक्ति में जागरण ही लक्ष्मी कृपा का द्वार है।”
🔭 तार्किक दृष्टि : प्रकृति और संतुलन का उत्सव
शरद ऋतु में वर्षा समाप्त होती है और वातावरण शुद्ध एवं शांत होता है।
इस समय शरीर और प्रकृति दोनों नई ऊर्जा ग्रहण करते हैं।
चांदनी में रखी खीर वास्तव में वातावरण की शीतलता और नमी को अवशोषित करती है —
जिससे उसका स्वाद और पाचन गुण बढ़ जाते हैं।
यह परंपरा हमें सिखाती है कि मानव और प्रकृति का तालमेल ही स्वास्थ्य और संतुलन का रहस्य है।
🌿 “जब प्रकृति के साथ तालमेल हो, तब हर भोजन प्रसाद बन जाता है।”
🔬 वैज्ञानिक दृष्टि : चंद्र किरणों का चमत्कार
चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण ज्वार-भाटा को प्रभावित करता है।
इसी तरह मनुष्य, जो जल से बना है, उस पर भी चंद्र किरणों का प्रभाव पड़ता है।
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता है —
उसकी रोशनी में मौजूद अल्ट्रावायलेट और ऊर्जा तरंगें शरीर की जैविक घड़ी को संतुलित करती हैं,
तनाव घटाती हैं और मन को शांत करती हैं।
🌕 “चंद्रमा का प्रकाश सिर्फ आकाश नहीं, मन को भी प्रकाशित करता है।”
🌺 संक्षेप में — शरद पूर्णिमा का संदेश
यह पर्व केवल पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति, चंद्रमा और मनुष्य के बीच सामंजस्य का उत्सव है।
यह सिखाता है कि जब मन चंद्र समान शांत हो जाता है,
तभी जीवन में समृद्धि, शांति और पूर्णता का अनुभव होता है।
✨ “शरद पूर्णिमा — जब चंद्रमा बाहर भी पूर्ण हो और भीतर भी।”

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