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"आरक्षण रूपी कैंसर: जिसने भारत की मेरिट, समानता और सामाजिक एकता को निगल लिया है"

आज के भारत में जातिगत आरक्षण वह बीमारी बन चुकी है जो कैंसर या एड्स से भी अधिक खतरनाक है। यह एक ऐसा सामाजिक वायरस है जो धीरे-धीरे देश की आत्मा—"सामाजिक समरसता"—को खत्म कर रहा है। नेता कहते हैं कि "देश में पहले छुआछूत थी", लेकिन सच्चाई यह है कि आज की सबसे बड़ी छुआछूत आरक्षण की देन है। जिस व्यवस्था को सामाजिक न्याय के नाम पर लागू किया गया था, वह आज सामाजिक विद्वेष और संवैधानिक अन्याय का सबसे बड़ा कारण बन चुकी है। जब एक 98% अंक लाने वाला छात्र असफल माना जाए और -23% वाला उम्मीदवार “आरक्षित” कहकर चयनित हो जाए, तब असंतोष और वैमनस्य पैदा होना स्वाभाविक है। आज स्थिति यह है कि सामान्य वर्ग का युवक 28 वर्ष में बूढ़ा मान लिया जाता है, जबकि SC/ST/OBC वर्ग का उम्मीदवार 40 वर्ष तक “युवा” कहलाता है। क्या यही समानता है?
सच्चाई यह है कि अगर आज कोई वर्ग वास्तव में छुआछूत का शिकार है, तो वह है — “सवर्ण/जनरल वर्ग”, जो राजनीतिक और संवैधानिक छुआछूत से पीड़ित है। सवर्ण समाज के युवाओं ने जो कुछ पाया है, वह मेहनत, योग्यता और संघर्ष से पाया है। दूसरी ओर, जो वर्ग वर्षों से सभी सुविधाएँ मुफ्त में पाकर भी प्रगति नहीं कर पाया, क्या उसे अब "विकास की गोली" चाहिए? आरक्षण-जीवी मानसिकता ने इस देश की प्रतिभा, परिश्रम और आत्मसम्मान को कुंठित कर दिया है।
ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, जैन और अन्य सवर्ण समाज ने अपनी जगह अपनी योग्यता से बनाई है, किसी भी सरकारी “आरक्षण भिक्षा” से नहीं। अब समय आ गया है कि सरकारें चेतें —अगर आरक्षण देना ही है तो सिर्फ और सिर्फ आर्थिक आधार पर दें, न कि जातिगत आधार पर।वरना यह देश आज बारूद के ढेर पर बैठा है और एक छोटी सी चिंगारी से भी विस्फोट हो सकता है।
आरक्षण रूपी यह “भस्मासुर” भारत को विश्वगुरु नहीं बनने देगा।अमेरिका, जर्मनी, जापान और चीन जैसे देश इसलिए आगे हैं क्योंकि वहाँ मेहनत और योग्यता का सम्मान है, न कि जाति का ठप्पा। हाल ही में चीन के राष्ट्रपति ने कहा था —“चीन के छात्र अपने देश के विकास में लगे हैं, जबकि भारत के छात्र विदेशों के विकास में।”
यह कटु सत्य है कि विदेशों में टॉप IT और सॉफ्टवेयर इंजीनियर भारत के वही युवा हैं जो सवर्ण समाज से हैं, जिन्होंने बिना किसी आरक्षण के विश्व स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है। अब सरकार को निर्णय लेना होगा —क्या वह भारत को आरक्षण, जाति और धार्मिक राजनीति में उलझाकर रखना चाहती है,या फिर मेहनत, समान अवसर और सामाजिक समरसता से विश्वगुरु बनाना चाहती है?
देश का विकास आरक्षण से नहीं, समानता और योग्यता से होगा।और इसका एक ही समाधान है —जातिगत आरक्षण समाप्त कर आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करना।
महेश प्रसाद मिश्र, भोपाल (म.प्र.)

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