
मनुष्य की जीवनशैली पर चिंतन
मनुष्य एक अद्भुत प्राणी है — विचारों, इच्छाओं और आकांक्षाओं से भरा हुआ। परंतु आज का मनुष्य अत्यंत स्वार्थी और स्वकेन्द्रित होता जा रहा है। वह हर जगह, हर क्षण, केवल अपने हित और सुख की ही कामना करता है। जब वह मंदिर जाता है तो प्रार्थना करता है “हे भगवान! मुझे और मेरे परिवार को सुख, शांति और समृद्धि दो।” जब किसी साधु-संत के पास जाता है तो कहता है “महाराज, आशीर्वाद दो, मेरा भला हो जाए।” हर बार उसकी प्रार्थना “मैं” और “मेरा” के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। काम करने के समय भी यही स्वार्थ झलकता है। पहले रेट तय करेगा, और जब काम पूरा हो जाए तो कहेगा “इतना तो ज़्यादा है, थोड़ा कम कर दो।”
कभी पैसे काट लेगा, कभी कहेगा “इतना काम क्या हुआ, बस यही तो किया।” पर यह नहीं सोचता कि सामने वाला भी मनुष्य है, उसका भी परिवार है, उसकी भी मेहनत की कीमत होती है। जब बिल्डिंग बनवाता है तो सरकार के नियमों की अवहेलना करता है। एक मंज़िल की अनुमति लेकर दो बना लेता है बस जल्दी फायदा चाहिए। ऐसा लगता है, मानो “नियम तो दूसरों के लिए हैं, मेरे लिए नहीं।” कभी-कभी सोचता हूँ आख़िर बुझती नहीं। फिर भी यही जीवन है — सीखने, समझने और संयम अपनाने का। यदि मनुष्य “लेने” की जगह “देने” की भावना सीख ले, तो यही संसार स्वर्ग बन सकता है।
✍️ लेखक – ओमप्रकाश लदोया