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भारत की राष्ट्र-भाषा “हिन्दी” नहीं; “भारतीय” होनी चाहिए। | ठाकुर दलीप सिंह जी

हम “हिन्दू” नहीं, “सनातनी” हैं, “हिन्दुस्तानी” नहीं, “भारतीय” हैं; तो फिर हमारी राष्ट्र-भाषा भी “हिन्दी” नहीं कहलानी चाहिए। जिस प्रकार, इंग्लैंड की राष्ट्र-भाषा का नाम ‘इंग्लिश’ है; इसी प्रकार से भारत की राष्ट्र-भाषा का नाम भी “भारतीय” होना चाहिए।

भारत वासियो! यह सर्वमान्य सत्य है कि भारत के प्राचीन पंथ/धर्म का नाम "सनातन" है: "हिंदू" नहीं। इसी प्रकार से, हमारे देश का प्राचीन नाम "भारत" है: "हिंद" या “हिंदुस्तान” नहीं।

हमारे पंथ को "हिंदू" नाम तथा हमारे देश को "हिंदुस्तान" नाम: विदेशी आक्रांताओं, आक्रमणकारियों ने दिए थे। विदेशी आक्रांताओं का लंबे समय तक भारत पर शासन होने के कारण; यह दोनों नाम प्रचलित हो कर प्रसिद्ध हो गए और हम भारतवासियों ने भी, इन दोनों नामों को सही समझ कर, इन का उपयोग करना आरंभ कर दिया; जो कि पराधीनता (गुलामी) का चिन्ह है। इस लिए, राष्ट्र-भाषा को “हिन्दी” कहना: अयोग्य है।

यदि हम “हिंदू” नहीं: “सनातनी” हैं, हम “हिंदुस्तानी” नहीं: “भारतीय” है; तो हमारी राष्ट्र-भाषा भी "हिंदी" नहीं कहला सकती। हमारी “भारतीयों” की राष्ट्र-भाषा का नाम तो "भारतीय" ही होना चाहिए। जिस प्रकार, जापान की राष्ट्र-भाषा का नाम ‘जापानी’, रूस की राष्ट्र-भाषा का नाम ‘रूसी’ है तथा अरब की राष्ट्र-भाषा का नाम ‘अरबी’ है; इसी प्रकार से भारत की राष्ट्र-भाषा का नाम भी ‘भारतीय’ होना चाहिए।

“हिंदी” भाषा तो हिंदुस्तानियों की हो सकती है, भारत की नहीं। जब हमारे देश का मूल वास्तविक नाम ‘हिंदुस्तान’ ही नहीं: तो हम भी ‘हिन्दुस्तानी’ नहीं; हम तो भारतीय हैं। जिस प्रकार विदेशियों ने हमें “हिंदू” और हमारे देश को “हिंदुस्तान” नाम दे दिया, उसी प्रकार से उन्होंने हमारी भाषा को भी “हिंदी” नाम दे दिया। विदेशी आक्रांताओं ने हमें, जो भी गलत नाम दिए (भारतवासियों में स्वाभिमान न होने के कारण), हम ने उन गलत नामों को ही स्वीकार कर लिया।

आज, हम भारतीय स्वतंत्र हैं। इस कारण, हमें विदेशियों के दिए हुए इन नामों को त्यागना चाहिए। सभी भारतीयों को मिल कर, एक नई “भारतीय” भाषा बना लेनी चाहिए, जिस में भारत से उपजी, भारतीय मूल की सभी भाषाओं के शब्द सम्मिलित हों। (“भारतीय मूल की भाषा” का अर्थ है: जिन भाषाओं की शब्दावली तथा लिपि, भारत से उपजी हो; जैसे: संस्कृत, तमिल, तेलुगु, उड़िया आदि।) सभी भारतीय भाषाओं के अधिकतर शब्द, पहले ही आपस में मिलते हैं जैसे: दया, धर्म, करुणा, गुरु, नगर, शास्त्र आदि। इस कारण, सभी भारतीय भाषाओं के शब्द मिला कर, एक नई भाषा बनाने में कोई समस्या नहीं हो सकती; अपितु, भाषा की अधिकतर समस्याओं का समाधान हो जाएगा। केंद्र सरकार को, उसी नई भाषा को ‘भारतीय’ नाम दे कर; भारत की राष्ट्र-भाषा घोषित कर देना चाहिए। अभी तो भारत सरकार के सभी केन्द्रीय सचिवालय तथा न्यायालयों में, प्रत्येक कार्यों में अंग्रेजी का उपयोग होता है। जब सभी प्रांतों में तथा जनता में नई “भारतीय” भाषा प्रमाणित स्वीकारित हो जाएगी, तो अंग्रेजी की बजाय “भारतीय” भाषा का प्रयोग आरंभ हो जाएगा और हम गुलामी के चिन्ह ‘अंग्रेजी’ से छुटकारा पा सकेंगे।

ऐसा करने से, दक्षिण प्रांतों की तमिल, तेलगु, कन्नड़ आदि कुछ भाषाओं के जो हिंदी के साथ झगड़े हैं; वह भी पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएंगे। क्योंकि, उन की भाषाओं के शब्द भी, नई भाषा में सम्मिलित हो कर, “भारतीय” भाषा का अटूट अंग बन जाएंगे।

“भारत” देश, "भारतीय" भाषा: यह दोनों नाम उपयोग कर के, भारतीयों में आत्म सम्मान आएगा और एकता होगी। एकता से ही भारत की उन्नति होगी। इस प्रकार से, सभी भारतीय भाषाओं के शब्द मिला कर बनी नई “भारतीय” भाषा; राष्ट्र की उन्नति में अत्यंत सहायक होगी। इस लिए, भारत को नई "भारतीय" भाषा बना कर, अपना लेनी चाहिए। नई "भारतीय" भाषा को बना कर अपना लेना; भारत को "विश्व गुरु" बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य होगा।

विशेष: आज कल "हिंदी" भाषा में उर्दू और फ़ारसी के कई शब्द सम्मलित हो गए हैं, जिस के कारण "हिंदी" शुद्ध रूप में “भारतीय" भाषा नहीं रह गई। इस लिए भी, हमें "हिंदी" भाषा का त्याग कर के नई "भारतीय" भाषा का बना लेनी चाहिए। जय भारत।

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