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एनडीए का महा-शक्ति रैली, रामगढ़ में दिखा कार्यकर्ताओं का जोश और दिखा रियासत का स्पष्ट संदेश..

रामगढ़ (कैमूर) : बिहार राज्य के 38 जिलों में से एक कैमूर जिला जो कि लगभग तीन दशक पूर्व अस्तित्व में आया जिसमें कुल चार विधानसभा है।

भौगोलिक स्थिति:

कैमूर -भभुआ बिहार के कैमूर जिले का एक शहर और जिला मुख्यालय है. यह उत्तर में बिहार के बक्सर जिले और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से घिरा हुआ है. इसके दक्षिण में झारखंड का गढ़वा जिला है, जबकि पश्चिम में उत्तर प्रदेश के चंदौली और सोनभद्र जिले स्थित हैं. पूर्व दिशा में बिहार का रोहतास जिला है, जो सुवरा नदी के किनारे बसा है. माना जाता है कि भभुआ की स्थापना 1532 में शेरशाह सूरी ने की थी।

ऐतिहासिक स्थिति :

भभुआ का ऐतिहासिक महत्व मुंडेश्वरी मंदिर और कैमूर की पर्वत श्रृंखला से जुड़ा हुआ है. यह स्थल प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है. भभुआ से वाराणसी की दूरी लगभग 84 किलोमीटर पश्चिम में, सासाराम 60 किलोमीटर पूर्व में, मोहनिया 14 किलोमीटर उत्तर में और चंदौली शहर 50 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है. यह क्षेत्र कर्मनाशा और दुर्गावती नदियों से घिरा हुआ है, जो कैमूर की पहाड़ियों से निकलती हैं और क्षेत्र की कृषि और सिंचाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. यहाँ का भू-भाग पहाड़ी और समतल दोनों प्रकार का है. दक्षिण में कैमूर पठार और उत्तर में उपजाऊ मैदान फैले हुए हैं.

कैमूर का इतिहास आदिम युग से जुड़ा हुआ है. यहां के पठारों में भरों, चेरों और सावरों जैसी जनजातियां निवास करती थीं. किंवदंतियों के अनुसार, खरवारों ने सबसे पहले रोहतास की पहाड़ियों में बसावट की थी, जबकि उरांव समुदाय का मानना है कि वे कभी रोहतास से पटना तक के इलाके पर शासन करते थे. यह भूमि राजा सहस्रार्जुन से भी जुड़ी मानी जाती है, जिन्हें भगवान परशुराम ने पराजित किया था.

यह इलाका मगध साम्राज्य का हिस्सा रहा है और गुप्त तथा मौर्य वंश के शासकों के अधीन रहा. बाद में यह कन्नौज के राजा हर्षवर्धन के शासन में आया और फिर मध्य भारत के शैल वंश, बंगाल के पाल वंश तथा चंदौली के अधीन रहा. गुप्तों के बाद यहां कई आदिवासी और स्थानीय शासकों ने अधिकार जमाया, जिन्हें बाद में राजपूतों ने पराजित किया, लेकिन अंततः यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अधीन चला गया. यह इलाका जौनपुर का हिस्सा बना और बक्सर की लड़ाई के बाद ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया. स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र के लोगों ने अहम भूमिका निभाई. 1972 में रोहतास जिले की स्थापना हुई और 1991 में कैमूर को रोहतास से अलग करके एक नया ज़िला बनाया गया, जिसका मुख्यालय भभुआ बना.

भभुआ को "ग्रीन सिटी" के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां की इमारतें हरे रंग से रंगी हुई हैं और चारों ओर हरियाली है, ठीक वैसे ही जैसे जयपुर को उसकी गुलाबी इमारतों के कारण "पिंक सिटी" कहा जाता है.

जनगणना 2011 के अनुसार, भभुआ की कुल जनसंख्या 3,01,440 थी, जिसमें से 50,179 लोग शहरी और 2,51,261 लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे. जनसंख्या घनत्व 924 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था. लिंगानुपात 1,000 पुरुषों पर 909 महिलाएं था. साक्षरता दर 57.85% रही, जिसमें पुरुष साक्षरता 66.04% और महिला साक्षरता 48.84% थी. इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 259 गांव हैं, जिनमें से 132 गांवों की जनसंख्या 1,000 से कम है और केवल दो गांवों में 5,000 से अधिक लोग रहते हैं.

1957 में स्थापित भभुआ विधानसभा क्षेत्र सासाराम (अनुसूचित जाति) लोकसभा क्षेत्र के छह खंडों में से एक है. यहां कोइरी और कुर्मी जातियों के रूप में पिछड़ी जातियों की बड़ी संख्या है. इसके बाद ब्राह्मण और कायस्थ ऊंची जातियों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है. अनुसूचित जातियां 22.25% और अनुसूचित जनजातियां 2.09% मतदाता हैं, जबकि मुसलमानों की आबादी 8.2% है. यह एक मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, जहां केवल 12.86% मतदाता शहरी हैं.

जहां जिले की सबसे हाट सीट रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र है। इस विधानसभा की स्थापना 1951 में हुई थी इसके बाद 1952 से 1984 तक इस विधानसभा में राजनैतिक कमान क्रमशः कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टी की रही ।
पुनः 1985 में पहली बार लोकदल के प्रत्याशी के रूप में जगदानंद सिंह ने कांग्रेस को बड़ी शिकायत दी फिर 1985 से 2005 तक एक लंबी पारी खेली।
वही समाजवादी गढ़ माने जाने वाली सीट पर दो दशक 1985-2005 तक राजद के कद्दावर नेता जगदानंद सिंह विधायक रहे। और पहली बार 2009 में उनके सांसद बनने के बाद उनके राजनीतिक शिष्य अंबिका यादव वहां से विधायक बने।
तब से इस विधानसभा में अभेद किला को ध्वस्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी की एंट्री हुई परिणाम स्वरूप अशोक कुमार सिंह भारतीय जनता पार्टी का एक उभरता हुआ चेहरा निर्दलीय से आगमन हुआ और रामगढ़ की पसंद बने।
आज आलम यह है कि विधानसभा चुनाव 2025 जो कि नवंबर में निर्धारित है जिसका पूरे दमखम के साथ सभी दलों के प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं वही भारतीय जनता पार्टी के रूप में अशोक सिंह के नेतृत्व का जूस उमंग और अपारशक्ति के साथ कार्यकर्ताओं की जो महाशक्ति रैली रविवार दिनांक 21 सितंबर 2025 को दिखाई दी वह एक बार फिर से इतिहास को मुकम्मल करने के लिए दिखता हुआ प्रतीत हो रहा है।
ज्ञात हो कि इस विधानसभा में त्रिकोणात्मक (भाजपा, बसपा और राजद) राजनीतिक युद्ध का बिगुल बज चूका है । और एनडीए के समर्थन में जिस प्रकार से जन सैलाब दिखा वह राजनीतिक सियासत का स्पष्ट संदेश दिखता हुआ नजर आ रहा है।

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