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“आरक्षण से बनी शिक्षकों की फौज लेकिन ज्ञान शून्य—सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था हो रही बर्बाद”

देश में शिक्षा को लेकर स्थिति दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है। सरकारी स्कूल, जो कभी गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की पहली पसंद हुआ करते थे, आज वीरान होते जा रहे हैं।

वर्तमान आरक्षण व्यवस्था के चलते कई बार ऐसा देखा गया है कि शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में शून्य या माइनस अंक लाने वाले अभ्यर्थी भी चयनित हो जाते हैं। सवाल यह उठता है कि जो खुद परीक्षा पास करने की योग्यता नहीं रखते, वे बच्चों का भविष्य कैसे गढ़ेंगे? नतीजा यह है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। शिक्षक पढ़ाने की बजाय लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी में लगे रहते हैं। कई जगह शिकायतें सामने आई हैं कि शिक्षक ड्यूटी के समय शराब पीकर स्कूल पहुँचते हैं और पढ़ाई-लिखाई से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता।

इसी कारण अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने से कतराते हैं और मजबूरन महंगे प्राइवेट स्कूलों का सहारा लेते हैं। निजी स्कूल आज “धंधा” बन चुके हैं और आम आदमी की जेब पर भारी बोझ डाल रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी शिक्षक बने हैं, वही अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए निजी स्कूलों का रुख करते हैं। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि उन्हें खुद अपनी क्षमता और व्यवस्था पर भरोसा नहीं है।

यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में सरकारी स्कूल केवल औपचारिक भवन बनकर रह जाएंगे। गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे, जिनके लिए ये स्कूल बने थे, सबसे अधिक नुकसान उठाएंगे। दूसरी ओर, समाज में शिक्षा का स्तर और अधिक असमान होता जाएगा।

“आज शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण यही है कि शिक्षक चयन में योग्यता से अधिक जाति और आरक्षण को प्राथमिकता दी जा रही है। जब शिक्षक ही अयोग्य होंगे, तो भविष्य की पीढ़ी से कैसी उम्मीद की जा सकती है? समय आ गया है कि शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को आरक्षण और राजनीति से मुक्त किया जाए, अन्यथा सरकारी स्कूल पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे।”

✍️ महेश प्रसाद मिश्रा भोपाल----

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