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हाय रे सुप्रीम कोर्ट

इनसे मिलिए। ये हैं एडवोकेट मनीषा भंडारी। नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करती है। इनकी एक सुनवाई की फीस ही लाखों में होती है।

ये महिला पिथौरागढ़ की 7 वर्ष की कशिश के बलात्कारी एवं हत्यारे अख्तर अली की वकील है। इसी ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा पाए हुए अख्तर अली को बचाया है।

इसके बारे में एक और जानकारी आपको देता हूं। नोएडा के 2005 निठारी कांड में 16 से अधिक बच्चों के बलात्कारी और हत्यारे सुरेन्द्र कोली और मोनिंदर सिंह पांढेर को भी फांसी की सजा सुना दी गई थी। लेकिन ये मनीषा भंडारी ही वो वकील थी जिसने इन्हें सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा से मुक्त करवाया और आज वे दोनों खुले घूम रहे हैं।

इस महिला का ऐसा ही रिकॉर्ड रहा है। इसने अधिकतर केस ऐसे ही लड़े हैं। तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने में इसे महारथ हासिल है तभी तो ये हाई प्रोफाइल अपराधियों की पहली पसंद है।

पिथौरागढ़ की 7 वर्ष की कशिश अपने घरवालों के साथ हल्द्वानी अपने रिश्तेदार के विवाह में आई थी। 20 नवंबर 2014 को अख्तर अली नामक मुसलमान ने उसका अपहरण किया और बेरहमी से उसका बलात्कार करके उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी थी।

इस अख्तर को पहले तो ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, फिर हाईकोर्ट ने भी सुनाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ये इस वकील मनीषा भंडारी की मदद से आराम से छूटकर बाहर आ गया।

इस मनीषा भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट में जो दलीलें दी उसके कुछ उदाहरण देखिए। इसने कहा कि पुलिस ने पीड़िता के चचेरे भाई निखिल चंद की जांच नहीं की क्योंकि उसी ने पुलिस को सबसे पहले फोन करके पीड़िता के शव के बारे में बताया था। जबकि सच्चाई ये थी कि किसी खच्चर चलाने वाले मुसलमान ने पहले शव देखा था और फिर अन्य लोगों को उसकी जानकारी दी थी और तब निखिल ने पुलिस को फोन किया था। लेकिन इस मनीषा भंडारी ने निखिल को ही संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया।

इसने दूसरा बचाव ये किया कि पुलिस ने अख्तर अली को पहले ही पकड़ लिया था और छुपा कर रखा हुआ था। इस दौरान पुलिस ने जबरदस्ती अख्तर के ब्लड और सीमेन के सैंपल लिए। फिर पुलिस ने उसका ब्लड और सीमेन ले जाकर खुद ही पीड़िता के अंडरगारमेंट्स और जैकेट्स पर लगाया एवं जो वेजाइनल स्वेब DNA जांच के लिए लिया गया था उसमें भी मिलावट कर दी। इसी वजह से DNA जांच में अख्तर अली को फंसाया गया।

फिर पुलिस ने एक नाटक रचा और अख्तर को लुधियाना से गिरफ्तारी की झूठी कहानी बनाई जबकि वो हल्द्वानी से भागा ही नहीं था। ऐसी ऐसी कहानियां मनीषा भंडारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में रची गई। यहां ध्यान देना जरूरी है कि पुलिस द्वारा बहुत सी लापरवाहियां की गई थी जिनका पूरा फायदा मनीषा भंडारी ने उठाया और तथ्यों को एकदम ही तोड़ मरोड़कर प्रत्येक सबूत और गवाह को संदेहास्पद साबित कर दिया।

सरकारी वकील वंशजा शुक्ला द्वारा मामले में गंभीर लापरवाहियां बरती गई जिस कारण मनीषा भंडारी सुप्रीम कोर्ट को भ्रमित करने में सफल रही। पीड़िता के पिता अपने एक इंटरव्यू में बता रहे थे कि ये सरकारी वकील कई बार सुनवाइयों के दौरान कोर्ट ही नहीं जाती थी।

अंत में हमारा महान सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अख्तर अली के खिलाफ सभी सबूत परिस्थितिजन्य हैं अर्थात मामले का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं है अतः केवल संदेह के आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए उसे बाइज्जत बरी किया जाता है।

मतलब सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि जहां उस मासूम को इस अख्तर नामक शैतान द्वारा नोचा जा रहा था वहां कोई कैमरा लेकर खड़ा होना चाहिए था तभी ये कोठा मानता कि दुराचार किया गया है। PM और DNA रिपोर्ट चीख चीख कर गवाही दे रही है लेकिन जज साहब ने सबको फर्जी घोषित कर दिया।

अख्तर अली और प्रेम लाल वर्मा आज आजाद हैं। मतलब अब ये माना जाए कि 7 वर्ष की कशिश का बलात्कार हुआ ही नहीं था, हमें अब ये मान लेना चाहिए कि वो कभी धरती पर थी ही नहीं।

जो कोर्ट मात्र एक झूठे बयान के आधार पर लोगों को सालों जेल में सड़ाता है वो उस अपराधी को बाइज्जत बरी कर देता है जिसे पहले ही दो अदालतें फांसी की सजा सुना चुकी हैं। एक बार के लिए मान लेते हैं कि सबूत और गवाह संदेहास्पद भी थे लेकिन क्या इतने कमजोर थे कि हाईकोर्ट जैसी संस्था भी उनके आधार पर मृत्युदंड दे दे?

इस मनीषा भंडारी जैसी वकील जो एक सुनवाई का ही लाखों रूपये लेती है, इसे कौन इतना पैसा दे रहा था? इस अख्तर के पास इतने पैसे कहां से आए जो एक मामूली सा ट्रक ड्राइवर था? जाहिर सी बात है कि कोई बड़ा गिरोह इसकी मदद कर रहा था और करोड़ों खर्च करके इसे बचा रहा था।

जिस प्रकार से हास्यास्पद दलीलों के साथ इसे रिहा किया गया है उससे तो साफ संदेह होता है कि ये मोटा पैसा मात्र मनीषा भंडारी ही नहीं बल्कि जजों की जेब में भी गया है।
साभार

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