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कुड़मी को एसटी बनाने की मांग का विरोध, गिरिडीह में आदिवासी छात्र संघ के बैनर तले बुधवार को आक्रोश रैली निकाली गई।

आदिवासी समाज की एकजुट मांग - न्याय, संरक्षण और आरक्षण की रक्षा के लिए आंदोलन।

गिरिडीह-झारखंड: आदिवासी छात्र संघ गिरिडीह के बैनर तले आज समस्त आदिवासी समाज गिरिडीह ने एकजुट होकर अपनी मांगों को सामने रखा है। यह आंदोलन न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समुदाय की आवाज को बुलंद करने का प्रयास है। गिरिडीह जिले के विभिन्न आदिवासी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मिलकर इस प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सरकार से न्याय की गुहार लगाई है। इस आंदोलन का मुख्य फोकस सूर्या नारायण हांसदा के कथित एनकाउंटर पर सीबीआई जांच, अनाथ बच्चों की शिक्षा, परिवार को मुआवजा और सरकारी नौकरी, तथा ओबीसी कुड़मी समुदाय को एसटी सूची में शामिल न करने की मांग पर केंद्रित है। यह मांगें आदिवासी समाज की वर्षों से चली आ रही पीड़ा और संघर्ष को दर्शाती हैं, जहां सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की कमी ने समुदाय को हाशिए पर धकेल दिया है।

पृष्ठभूमि: सूर्या नारायण हांसदा का मामला और आदिवासी समाज की पीड़ा

सूर्या नारायण हांसदा, एक प्रतिष्ठित आदिवासी नेता और शिक्षाविद्, जिन्होंने गिरिडीह क्षेत्र में आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए, हाल ही में एक विवादास्पद एनकाउंटर में मारे गए। यह घटना न केवल स्थानीय समुदाय को झकझोर देने वाली है, बल्कि पूरे आदिवासी समाज में आक्रोश पैदा कर रही है। हांसदा जी द्वारा संचालित विद्यालय ने सैकड़ों अनाथ और गरीब आदिवासी बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान किया, जो अन्यथा वंचित रह जाते। उनकी मृत्यु के बाद, समुदाय ने महसूस किया कि यह केवल एक व्यक्ति की हानि नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी संघर्ष की हानि है।

आदिवासी छात्र संघ गिरिडीह के अध्यक्ष प्रदीप सोरेन ने कहा, "सूर्या नारायण हांसदा हमारे समाज के एक मजबूत स्तंभ थे। उनके एनकाउंटर की सच्चाई सामने लाने के लिए सीबीआई जांच आवश्यक है, क्योंकि स्थानीय जांच में पक्षपात की आशंका है। हम सरकार से मांग करते हैं कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, ताकि न्याय की जीत हो सके।" यह मांग आदिवासी समाज की उस लंबी लड़ाई का हिस्सा है, जहां पुलिस और प्रशासनिक कार्रवाइयों में अक्सर आदिवासियों को निशाना बनाया जाता है। इतिहास गवाह है कि झारखंड जैसे राज्यों में आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए कई आंदोलन हुए हैं, लेकिन न्याय की प्रक्रिया धीमी और अपर्याप्त रही है।

मुख्य मांगें: न्याय और समर्थन की अपील

समस्त आदिवासी समाज गिरिडीह की ओर से निम्नलिखित मांगें रखी गई हैं:

1. सूर्या नारायण हांसदा एनकाउंटर की सीबीआई जांच: इस कथित एनकाउंटर की सच्चाई जानने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच कराई जाए। समुदाय का मानना है कि स्थानीय पुलिस की जांच में विश्वास की कमी है, और केवल सीबीआई ही निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकती है। यह मांग न केवल हांसदा जी के मामले तक सीमित है, बल्कि पूरे आदिवासी समुदाय में फैले डर और असुरक्षा को दूर करने की दिशा में एक कदम है।

2. अनाथ बच्चों को पीजी तक मुफ्त शिक्षा और अन्य खर्च: सूर्या नारायण हांसदा द्वारा संचालित विद्यालय में पढ़ने वाले अनाथ बच्चों की शिक्षा का पूरा खर्च सरकार उठाए। यह शिक्षा स्नातकोत्तर (पीजी) स्तर तक मुफ्त होनी चाहिए, साथ ही अन्य आवश्यक खर्च जैसे किताबें, आवास और स्वास्थ्य सुविधाएं भी शामिल हों। हांसदा जी का विद्यालय आदिवासी बच्चों के लिए एक आशा की किरण था, और उनकी अनुपस्थिति में इन बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है। सरकार द्वारा यह समर्थन न केवल इन बच्चों की मदद करेगा, बल्कि आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रसार को बढ़ावा देगा।

3. परिवार को तत्काल 1 करोड़ रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी**: हांसदा जी के परिवार को तुरंत 1 करोड़ रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए, साथ ही परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए। यह मुआवजा न केवल आर्थिक सहायता प्रदान करेगा, बल्कि परिवार की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करेगा। आदिवासी समाज में ऐसे मामलों में मुआवजा की मांग एक सामान्य प्रथा है, क्योंकि अक्सर परिवार आर्थिक रूप से टूट जाते हैं।

ये मांगें न केवल तत्कालिक हैं, बल्कि आदिवासी समाज की लंबी अवधि की आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करती हैं। झारखंड राज्य में आदिवासी आबादी लगभग 26% है, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में वे अभी भी पिछड़े हुए हैं। सरकार द्वारा इन मांगों को मानना आदिवासी अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

दूसरी प्रमुख मांग: ओबीसी कुड़मी को एसटी सूची में शामिल न करने का विरोध

इस आंदोलन में एक और महत्वपूर्ण मांग भारत सरकार और झारखंड सरकार से की गई है कि ओबीसी कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल न किया जाए। समुदाय का तर्क है कि कुड़मी लोग वर्तमान एसटी समुदाय से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से कई गुना मजबूत हैं। वे पहले से ही ओबीसी श्रेणी में लाभ प्राप्त कर रहे हैं और एसटी सूची में शामिल होने से आदिवासियों के आरक्षण और भूमि अधिकारों पर कब्जा हो सकता है।

आदिवासी छात्र संघ के सचिव मदन हेंब्रम ने कहा, "कुड़मी समुदाय की मांग आदिवासियों की जमीन और आरक्षण को हड़पने की साजिश है। हम इसका जोरदार विरोध करते हैं। एसटी सूची आदिवासियों के लिए संवैधानिक सुरक्षा है, और इसे कमजोर करने की कोई कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी।" यह मुद्दा झारखंड में लंबे समय से विवादास्पद रहा है, जहां भूमि अधिकार और आरक्षण आदिवासी पहचान के केंद्र में हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत एसटी सूची में शामिल होने के लिए सख्त मानदंड हैं, और कुड़मी समुदाय की स्थिति उनसे मेल नहीं खाती। यदि यह शामिल होता है, तो आदिवासियों का आरक्षण प्रतिशत कम हो सकता है, जो उनके विकास को प्रभावित करेगा।

आदिवासी समाज इस मुद्दे पर एकजुट है और चेतावनी देता है कि यदि सरकार ने इस दिशा में कोई कदम उठाया, तो बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा। यह विरोध न केवल गिरिडीह तक सीमित है, बल्कि पूरे झारखंड और भारत के आदिवासी क्षेत्रों में फैल सकता है।

सम्मिलित संगठन: एकजुटता की ताकत

इस आंदोलन में निम्नलिखित संगठन शामिल हैं, जो आदिवासी समाज की विविधता और एकता को दर्शाते हैं:

1. आदिवासी छात्र संघ गिरिडीह।
2. संवता एभेन अखड़ा खटौरी देवरी।
3. गीधा वैसी देवरी।
4. आदिवासी युवा मंच गंडेय, बेंगाबाद, पीरटांड़।
5. संवता सुसर वैसी पीरटांड़।
6. मरंग बुरु संस्थान गिरिडीह।
7. ASSSB तीसरी।
8. डूबा महल कहुवाई वैसी।
9. हुडिंग बुरु जुग जाहेर गढ़ देवरी, तीसरी।
10. SK संथाल जुवान गंवता, गंडेय।
11. सिद्धू कान्हु युवा खेल क्लब, गंडेय।
12. अडवारा वैसी झांझ, धनवार, तीसरी।
13. अमझार बैसी जमडार, गांवा

ये संगठन विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं और शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण, युवा विकास और खेल जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं। उनकी भागीदारी आंदोलन को मजबूती प्रदान करती है।

आंदोलन में उपस्थित सदस्य: नेतृत्व और समर्थन

आंदोलन में निम्नलिखित प्रमुख सदस्य उपस्थित थे, जिन्होंने अपनी उपस्थिति से आंदोलन को गति दी:

1. छात्र संघ अध्यक्ष प्रदीप सोरेन, सचिव मदन हेंब्रम।
2. मीडिया प्रभारी ( रमेश मुर्मू)
3. कोषाध्यक्ष चांद सोरेन

ये सदस्य आदिवासी समाज के प्रतिनिधि हैं और आंदोलन के दौरान अपनी मांगों को जोरदार तरीके से रखा।

निष्कर्ष: सरकार से अपील और आगे की योजना

आदिवासी छात्र संघ गिरिडीह और समस्त आदिवासी समाज सरकार से अपील करता है कि इन मांगों पर तत्काल ध्यान दिया जाए। यदि मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा, जिसमें धरना, प्रदर्शन और कानूनी कार्रवाई शामिल हो सकती है। यह प्रेस विज्ञप्ति मीडिया, जनप्रतिनिधियों और आम जनता तक पहुंचाने का माध्यम है, ताकि आदिवासी आवाज को अनसुना न किया जाए। प्रदीप सोरेन, अध्यक्ष, आदिवासी छात्र संघ सचिव मदन हेंब्रम सोना लाल,रमेश मुर्मू,भोला राम,रेणु हांसदा,किरण टुडू,अक्षय मुर्मू,सचिन मुर्मू,समीर मुर्मू,श्याम सुंदर हांसदा ,प्रवीण मुर्मू,हिंगामुनि मुर्मू ,दशरथ किस्कू ,न्यूनुलाल मरांडी ,किशोर मुर्मू ,दिमोल मरांडी ,प्रेमराज हेंब्रम ,बेंजामिन मुर्मू
प्रेमचंद मुर्मू ,किशोर हांसदा ,नारायण मुर्मू ,दिलीप मुर्मू ,अशोक हेंब्रम ,सुशांत सोरेन ,अजय टुडू,किरण टुडू ,अनीता हेंब्रम,इभा हांसदा,रिंकी हांसदा ,जगदीश मरांडी ,सुरेश मुर्मू
गिरिडीह में आदिवासी छात्र संघ के बैनर तले बुधवार को झंडा मैदान से आक्रोश रैली,
सूर्या हांसदा एनकाउंटर CBI जांच की मांग तेज, कुड़मी ST मांग के विरोध आदिवासियों का जोरदार आंदोलन किया

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