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भारतीय मार्शल आर्ट भूला, विदेशों ने बनाया पहचान


मार्शल आर्ट गुरु एवं सामाजिक कार्यकर्ता रेंशी श्याम गुप्ता का संदेश – भारतीय दर्शन को पुनः अपनाने की जरूरत।

भारत की धरती सदैव से ज्ञान, संस्कृति और अद्भुत परंपराओं की जननी रही है। योग, व्यायाम, मल्लखंभ, कुश्ती और युद्धकला जैसी विधाओं ने न केवल शरीर को बल प्रदान किया बल्कि मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान की राह भी प्रशस्त की। यही भारतीय जीवन दर्शन आगे चलकर चीन, जापान और ओकीनावा जैसे देशों तक पहुँचा और वहाँ विभिन्न रूपों में मार्शल आर्ट्स के नाम से स्थापित हुआ।

मार्शल आर्ट गुरु एवं सामाजिक कार्यकर्ता रेंशी श्याम गुप्ता का मानना है कि यह भारतीय समाज के लिए दुखद स्थिति है कि जिस कला का जन्मस्थान भारत रहा, वह आज विदेशों की पहचान बन गई। चीन और जापान ने युद्धकला को अपनी संस्कृति और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बनाया, वहीं भारत में यह धरोहर धीरे-धीरे भुला दी गई।

रेंशी गुप्ता कहते हैं –
"अब समय आ गया है कि भारतीय समाज इस कड़वे सच को स्वीकार करे और अपनी जड़ों से जुड़े। मार्शल आर्ट केवल आत्मरक्षा का साधन नहीं, बल्कि यह अनुशासन, एकाग्रता, साहस और आंतरिक शक्ति का मार्ग है।"

उन्होंने विशेष रूप से युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि यदि नई पीढ़ी इस प्राचीन कला को अपने जीवन का हिस्सा बनाए तो वह न केवल अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकती है बल्कि राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

रेंशी गुप्ता ने गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें अपने देश और विदेशों के महागुरुओं का सानिध्य प्राप्त हुआ है, और इसी प्रेरणा से वे भारत की महान जीवनशैली मार्शल आर्ट्स को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत हैं।

उन्होंने समाज और सरकार से भी अपील की कि इस कला को शिक्षा और संस्कृति का हिस्सा बनाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी विरासत को भूलने के बजाय उसे आत्मसात कर सकें और पूरे विश्व को पुनः भारत की युद्धकला और दर्शन का संदेश दे सकें।



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