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भगवान श्रीशंकर - पार्वती, श्रीकृष्ण रुक्मिणी से सम्पर्कित *मां मालिनीथान (मंदिर)*

भगवान श्रीशंकर - पार्वती, श्रीकृष्ण रुक्मिणी से सम्पर्कित
*मां मालिनीथान (मंदिर)*

-उमेश खंडेलिया, धेमाजी।
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मालिनीथान पौराणिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक संसाधनों से समृद्ध एक धार्मिक तीर्थ स्थल है । अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम सीयांग जिले के लिकाबाली के पास एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। धेमाजी जिला सदर से करीब 35 किलोमीटर व सीलापथार से लगभग आठ किमी की दुरी पर अवस्थित है। ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण के डिब्रूगढ़ शहर से इसकी दुरी करीब 100 कि मी होगी। यह हिंदू धर्म में एक पवित्र शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है, जहां सती पार्वती की अठारहवीं भुजा व देवी मालिनी की आराधना की जाती है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस मंदिर की पौराणिक कहानी, पुरातात्विक अवशेष और सांस्कृतिक विरासत ने इसे उत्तर पूर्व भारत के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक केंद्रों में से एक के रूप में स्थापित किया है।
मालिनीथान का आध्यात्मिक महत्व धार्मिक मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है, यह प्राचीन कामरूप की कला, वास्तुकला और इतिहास की गहराई से जुड़ा हुआ है।

मालिनीथान के नामकरण से जुड़ी कई किंवदंतियाँ इसे धार्मिक दृष्टिकोण से एक अद्वितीय स्थान के रूप में चिह्नित करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कुंडिल साम्राज्य के राजा भीष्म की बेटी रुक्मिणी का अपहरण करने के बाद द्वारका लौटते समय कुछ देर के लिए यहां विश्राम किया था। उस समय देवी पार्वती मालिनी के भेष में कृष्ण और रुक्मिणी के सामने प्रकट हुई और उनका स्वागत-सत्कार किया। उनके आतिथ्य से मोहित श्रीकृष्ण देवी पार्वती के वास्तविक स्वरूप को पहचान लिया। उन्होंने देवी को मालिनी कहकर संबोधित किया और वादा किया कि इस स्थान पर भक्त हमेशा-हमेशा के लिए मां-मालिनी के रूप में उनकी पूजा करेंगे। इस कहानी के कारण उस स्थान का नाम मालिनी थान पड़ गया। इस पौराणिक कहानी से जुड़े आध्यात्मिक महत्व के कारण मालिनीथान पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है यह कहानी मालिनीथान के नामकरण की आध्यात्मिक महिमा को और गहरा करती है। मंदिर से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण पौराणिक कथा कालिका पुराण से संबंधित है। इस कथा के अनुसार, दक्ष के यज्ञ स्थल पर सती के बलिदान के बाद, भगवान शिव ने उनके शरीर को अपने कंधों पर लेकर दुनिया की यात्रा की। शिव को मोह से उबारने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की सहायता से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। माना जाता है कि सती की भुजा यहीं गिरी थी। इस घटना के फलस्वरूप मालिनी थान को हिंदू धर्म का शक्तिपीठ माना जाता है। शक्तिपीठों को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है, जहां देवी की शक्ति प्रकट होती है। यह पौराणिक कथा मालिनीथान को शाक्त धर्म के एक केंद्रीय स्थान के रूप में स्थापित करती है, जहाँ देवी मालिनी, देवी पार्वती की अठारहवीं भुजा की पूजा की जाती है। एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार उस क्षेत्र में एक पुष्प उपवन था, जहां मालिनी नाम के कुछ माला बुनने वाले रहते थे। उनमें से एक मालिनी, भगवान शिव की ओर आकर्षित थी, और पार्वती के क्रोध के कारण उसने अपना सिर खो दिया। किंवदंती है कि इस घटना के कारण ही इस स्थान का नाम यह पड़ा।
विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि यहाँ खुदाई में दुर्गा, शिव, गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ मिलीं, जिससे मंदिर में कई देवी-देवताओं की पूजा होने की संभावना का पता चलता है। इनमें से अधिकांश मूर्तियाँ ग्रेनाइट पत्थर से बनी हैं, जिनकी सुंदरता प्राचीन भारतीय शिल्प कौशल की उत्कृष्टता को दर्शाती है। इन मूर्तियों की स्थापत्य शैली गुप्त काल से प्रभावित है, जिसमें लोहे की गैति से पत्थर के टुकड़ों को काटने और जोड़ने की तकनीक शामिल है। यह तकनीक मंदिर की संरचनाओं और मूर्तियों के निर्माण में अत्यधिक जटिल और कलात्मक कौशल को दर्शाती है। मालिनी थाने की वास्तुकला भी बर्मन और शालस्तंभ राजवंशों के समान है, जो इस स्थान के ऐतिहासिक और कलात्मक महत्व को स्थापित करती है। मंदिर की पत्थर की सीढ़ियों और चौराहों पर की गई नक्काशी गंधर्वों, अप्सराओं और पौराणिक पात्रों को दर्शाती है, जो कला की विविधता और समृद्धि को दर्शाती है। ये मूर्तियां मालिनी थाना की कला के सार्वभौमिक चरित्र को दर्शाती हैं।
उत्तर पूर्व भारत की स्थानीय शैली के साथ प्राचीन भारतीय कला का एक सुंदर मिश्रण बनाया है। इस मंदिर की वास्तुकला दक्षिण भारत की है
विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के समान

यह उड़ीसा के कोणार्क के सूर्य मंदिर की मूर्तियों से अद्भुत समानता रखती है। मालिनी थान की वास्तुकला असम के अन्य ऐतिहासिक स्थलों की भांति ही है। अन्य पुरातात्विक शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि मालिनी थाना की वास्तुकला और मूर्तियां पूर्व-अहोम काल की हैं, खासकर 9वीं और 12वीं शताब्दी ईस्वी के बीच। इस काल को प्राचीन कामरूप के इतिहास में स्वर्ण युग माना जाता है, जब वर्मन राजवंश, शालस्तंभ राजवंश और पाल राजवंश के शासन के तहत हिंदू धर्म के शाक्त और शैव समुदायों का प्रभाव बढ़ गया था। इन राजवंशों के शासनकाल के दौरान, मंदिर निर्माण और कला के विकास को प्रमुख रखा। मालिनी थाना व मंदिर की मूर्तियां इस सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान का जीवंत प्रमाण हैं। बर्मन राजवंश के राजा भास्कर बर्मन के शासनकाल के दौरान कामरूप की पूर्वी सीमा मालिनी थाने के आसपास स्थित थी। यह तथ्य मालिनी थाने के ऐतिहासिक महत्व को और अधिक रेखांकित करता है, क्योंकि यह प्राचीन कामरूप की सीमा पर एक केंद्रीय स्थान है। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि मालिनीथान को न केवल एक धार्मिक तीर्थ स्थल बनाती है, बल्कि प्राचीन भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी बनाता है। इस जगह के खंडहरों से पता चलता है कि मंदिर की मुख्य संरचना के कई हिस्से किसी प्रलयंकारी भूकंप या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गए थे। खंडहर असम की मध्ययुगीन संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के बारे में गहन जानकारी प्रदान करते हैं। इस मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की गहराई इसकी कलाकृतियों की जटिलता और धार्मिक महत्व से स्पष्ट होती है, जिसने इस स्थल को इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना दिया है। इसके चलते यह हुआ
हालाँकि मंदिर के निर्माण की तारीख के बारे में सटीक जानकारी का अभाव है, लेकिन कई इतिहासकारों का मानना ​​है कि मालिनी थाना का निर्माण चुटिया के शासनकाल के दौरान किया गया था। चुटिया राजवंश के शासनकाल के दौरान, असम के विभिन्न हिस्सों में शक्ति धर्म का प्रभाव बढ़ गया। सदिया चुटिया साम्राज्य का मुख्य केंद्र था, और ताम्रेश्वरी मंदिर जैसे शक्ति पीठों के उदय ने क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ मालिनी तीर्थ के खंडहरों में पाए गए
विशेष चिह्न 1442 ईस्वी के ताम्रेश्वरी मंदिर से मेल खाते हैं, जिससे पता चलता है कि मालिनी थाना भी चुटिया राजा लक्ष्मीनारायण के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। यह मंदिर चुटिया राजवंश की शाक्त परंपरा और उनके शासनकाल के दौरान बनाए गए विभिन्न धार्मिक मंदिरों से जुड़ा है। बसंत दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों के माध्यम से यह मंदिर शक्ति धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। ये त्यौहार न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से भक्तों की आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करते थे, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक एकता का माहौल भी बनाते थे। इन धार्मिक मंदिरों ने चुटिया राजवंश के शासनकाल के दौरान राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंदिर के निर्माण के बाद बने राजनीतिक और धार्मिक माहौल ने मालिनी थाने को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल बना दिया है। मंदिर की शाक्त परंपरा से जुड़े त्योहार असम के धार्मिक जीवन के गहन पहलू को उजागर करते हैं, जो इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को बढ़ाता है।
मालिनी थान के पास ही या ये कहें जुड़ा हुआ आकाशीगंगा जलप्रपात इसकी आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता का एक अभिन्न अंग है। झरना मंदिर से मात्र 600 मीटर की दूरी पर स्थित है और हिन्दू मानस में इसे पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, कृष्ण और रुक्मिणी ने इस झरने में स्नान किया और द्वारका के लिए प्रस्थान किया। इस झरने का उल्लेख कालिका पुराण में भी किया गया है, जहां इसे सती के शरीर के गिरने से जोड़ा गया है। इस झरने से एक तेज़ बहने वाली नदी बहती है और गायनदी से होते हुए कानिबिल में मिल जाती है। यह प्राकृतिक सौंदर्य और पौराणिक महत्व मालिनीथान के आध्यात्मिक वातावरण को एक अनूठा आयाम देता है। झरनों की ध्वनि, पहाड़ों का हरा-भरा वातावरण और पवित्र जल का स्पर्श भक्तों के मन में शांति और आध्यात्मिकता की गहरी भावना जागृत करता है। इस झरने से जुड़ी पौराणिक कथाओं ने इसे न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्यटन बल्कि आध्यात्मिक केंद्र भी बना दिया है। प्राकृतिक और पौराणिकता के इस संयोजन ने मालिनी थान के आकर्षण को और बढ़ा दिया है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों पर गहरी छाप छोड़ता है।

यह मंदिर पहाड़ी मैदानों की सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। मंदिर ने पहाड़ी और मैदानी जनजातियों के बीच सांस्कृतिक पुल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विभिन्न जातीय समूहों के लोग त्यौहार मनाने के लिए यहां एकत्रित होते हैं, जिससे समाज में एकता और सद्भाव का माहौल बनता है। बसंत पूजा मालिनीथान धार्मिक जीवन का एक प्रमुख पहलू है। यह पूजा हर साल बोहाग बिहु के दौरान चैत्र महीने के अंत में मालिनी थाने में मनाई जाती है। इस दौरान, मंदिर के सामने खुले प्रांगण में 'मालिनी मेला' आयोजित किया जाता है, जो असम के विभिन्न हिस्सों और देश-विदेश से पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। मेले के दौरान, मंदिर का मैदान उत्सव के माहौल से जीवंत हो जाता है। भक्त मां मालिनी का आशीर्वाद पाने की आशा में उनकी पूजा करते हैं और स्थानीय समुदाय के बीच यह माना जाता है कि मां मालिनी का आशीर्वाद उनकी मनोकामनाएं पूरी करता है। इस महोत्सव के माध्यम से मालिनी थान न केवल एक धार्मिक केंद्र के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मिलन स्थल के रूप में भी स्थापित हुआ है। बसंत पूजा के दौरान आयोजित होने वाला यह मेला स्थानीय संस्कृति जैसे लोक संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। इसके अलावा, मालिनी थाने से जुड़ी स्थानीय मान्यताएं और परंपराएं इसके आकर्षण को बढ़ाती हैं। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि भगवान कृष्ण और रुक्मिणी ने रुक्मिणी मंदिर के पास एक विशाल पेड़ के नीचे विश्राम किया था। ऐसी मान्यता है कि इस पेड़ पर लाल फीता बांधने से अविवाहित युवकों की मनचाही दुल्हन पाने की इच्छा पूरी हो जाती है। इस तरह की लोक मान्यता ने मालिनी थाना या धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को लोकप्रिय बना दिया है। इन मान्यताओं के माध्यम से स्थानीय समुदाय के बीच मालिनी थाना के साथ एक गहरा भावनात्मक संबंध बन गया है। इन परंपराओं ने मालिनी थान की आध्यात्मिक पहचान को न केवल धार्मिक क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी विशेष स्थान दिया है। इसके अलावा, मंदिर के पास पुरातत्व संग्रहालय में खुदाई की गई। बरामद की गई मूर्तियों और कला कृतियों को संरक्षित किया गया है। संग्रहालय पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है क्योंकि यह मालिनीथाना की ऐतिहासिक और कलात्मक विरासत का एक जीवंत दस्तावेज प्रदान करता है। यह संग्रहालय मालिनी थाने के पुरातात्विक महत्व को दुनिया के सामने उजागर करने का एक अवसर है।

मालिनी थाना की प्राकृतिक सुंदरता इसके धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के साथ एक अद्भुत संयोजन बनाती है। हरा-भरा और सुंदर वातावरण भक्तों और पर्यटकों को आध्यात्मिक और सौंदर्यपूर्ण अनुभव प्रदान करता है। मंदिर के शीर्ष से आप प्रकृति की विशालता और शांति की एक अनोखी अनुभूति.। यह भाबला पर्वत पर स्थित है और प्रकृति के मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। इस प्राकृतिक संसाधन से जुड़ी परंपराओं और मान्यताओं ने स्थानीय समुदाय और मालिनी थाना के बीच गहरा संबंध स्थापित किया है। इस प्राकृतिक सुंदरता ने मालिनी थाने को न केवल एक धार्मिक केंद्र बल्कि एक संभावित पर्यटन स्थल भी बना दिया है। प्रकृति की इस खूबसूरत सुंदरता के साथ आध्यात्मिकता का संयोजन मालिनी थाना को एक अद्वितीय गंतव्य बनाता है जहां लोगों को धार्मिक संतुष्टि के साथ-साथ प्रकृति की शांति भी मिलती है।

मालिनी थानाब में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। हालाँकि, यह संभावना अभी तक पूरी तरह से साकार नहीं हुई है। परिवहन की कठिनाई, खराब सड़कों और प्रचार की कमी के कारण कई पर्यटक इस स्थान से दूर रहते हैं। धेमाजी में घूमने के लिए कई जगहें हैं, लेकिन मालिनी थाने का रास्ता पहाड़ी और खतरनाक है। सड़क की स्थिति निजी वाहनों के लिए भी उपयुक्त नहीं है। हालाँकि, इन प्रतिकूलताओं के बावजूद, हर दिन कई भक्त और पर्यटक इस स्थान पर आते हैं। यदि परिवहन व्यवस्था में सुधार किया जाए, सड़कों की मरम्मत और प्रचार-प्रसार किया जाए तो मालिनी थान उत्तर पूर्व भारत का एक प्रमुख धार्मिक और पर्यटन केंद्र बन सकता है। पर्यटन के विकास से मालिनी थाने की विरासत को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने का अद्भुत अवसर पैदा होगा। इस विकास से स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और मालिनी थाने की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बढ़ावा मिलेगा। पर्यटन विकास के लिए पर्यटक सुविधाओं और मालिनी थाने को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे के निवेश की आवश्यकता है

संभावनाओं को दुनिया के सामने प्रस्तुत करना संभव होगा। "हालाँकि मालिनी थान अब अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा है, मालिनी थान का असम की पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक परंपराओं से गहरा संबंध है। इसकी ऐतिहासिक सीमाएँ प्राचीन कामरूप के भीतर आती थीं। इस जगह से जुड़ी ऐतिहासिक परंपराएँ और पुरातात्विक संसाधन असम के इतिहास, कला, मूर्तिकला और धार्मिक जीवन की गहन तस्वीर दर्शाते हैं।

मालिनी थाने में मनाए जाने वाले धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार स्थानीय जातीय समूहों, पहाड़ी और मैदानी इलाकों के बीच एकता और सामाजिक सामंजस्य का एक अनूठा माहौल बनाते हैं। अपनी समृद्ध विरासत और पुरातात्विक संसाधनों के कारण मालिनी थाना को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की काफी संभावनाएं हैं। इसके लिए परिवहन व्यवस्था में सुधार, पर्यटक सुविधाओं के लिए बुनियादी ढाँचे का निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। पर्यटन के विकास से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा और मालिनीथान की विरासत को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने का अवसर पैदा होगा। यह विकास मालिनीथान की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को और स्थापित करेगा। इस स्थान का पौराणिक महत्व, ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक समृद्धि ने इसे भक्तों, पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना दिया है। अब समय आ गया है कि पुरातात्विक अनुसंधान और संरक्षण के माध्यम से मालिनी थाने की विरासत को दुनिया के सामने पेश किया जाए। मालिनी थानाब विरासत की महिमा, आध्यात्मिक महिमा और पुरातात्विक महत्व के प्रति उचित दृष्टिकोण और विकास पहल के साथ, यह थानाब निश्चित रूप से न केवल उत्तर पूर्व भारत में बल्कि पूरे भारत और विश्व में एक प्रमुख आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पुरातात्विक केंद्र बन सकता है।

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