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पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र के शुभ संयोग में मनेगी विश्वकर्मा पूजा.. आचार्य सुजीत शास्त्री (मिट्ठू बाबा)

आश्विन कृष्ण एकादशी के दिन 17 सितंबर, बुधवार को देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा होगी। माना जाता है कि उनकी पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होती है और घर में लक्ष्मी का आगमन होता है।
​ *उत्तम संयोग और मुहूर्त*
​17 सितंबर को शाम 4:59 बजे सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन सुबह 9:24 बजे तक पुनर्वसु नक्षत्र और उसके बाद पुष्य नक्षत्र का संयोग बनेगा। इसके अलावा, परिध योग का भी शुभ संयोग बन रहा है। इन उत्तम योगों में विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से रोज़गार, कारोबार और नौकरी-पेशा में उन्नति होती है।
​ *पूजा विधि और महत्व*
​विश्वकर्मा पूजा में पंचदेव, श्री हरि विष्णु, कलश गणेश, नवग्रह, भगवती और महादेव की भी पूजा की जाएगी। वैशाली जिला के भगवानपुर प्रखंड अंतर्गत वान्थु गाँव निवासी सुप्रसिद्ध आचार्य सुजीत शास्त्री (मिट्ठू बाबा) के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने सतयुग में स्वर्ग लोक, त्रेता युग में लंका, द्वापर में द्वारिका और कलियुग में हस्तिनापुर की रचना की थी। उन्होंने सुदामा पुरी का भी निर्माण किया था। ऋग्वेद के 18वें अध्याय के 121वें सूक्त के अनुसार, धरती, आकाश और जल की रचना भी भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही हुई थी। इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था।

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